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के कारण वह अपने राज्य में प्रसिद्ध है । इसी कारण वह अपने राज्य के | लिए अत्यन्त उपयोगी मनुष्य है।"
यह बात सुनते ही राजा ने प्रसन्न होकर उस दूत को तत्काल बुलाने की आज्ञा दी । आज्ञा होते ही उसे राजा की सेवा में उपस्थित किया गया । महाराज ने उससे कहा - "भाई ! तुम खोज करने में अत्यन्त प्रवीण हो, इसलिए सारे भरतक्षेत्र में घूम फिरकर राजपुत्र उत्तमकुमार का पता लगाओ । इस कार्य के करने पर मैं तुम पर बहुत खुश होऊँगा और तुम्हें तुम्हारे इस कार्य के बदले में काफी ईनाम दूंगा।"
वाराणसी पति महाराजा मकरध्वज के यह वचन सुनकर वेगवान ने उत्साह पूर्वक कहा - "सरकार ! मैं आपकी कृपा से यह कार्य अवश्य कर सकूँगा । भरत के प्रत्येक गुप्त और प्रकट स्थानों को देखकर राजकुमार का पता लगाऊँगा । मैं आपका सेवक हूँ - स्वामी का कार्य करना हि सेवक का धर्म है। आप गरीबों के प्रति विशेष कृपालु हैं, इसलिए मुझ जैसे ताबेदारों को अपना कर्तव्य पालन करने में विशेष आनन्द आता है।"
दूत के यह वचन श्रवणकर, राजा मकरध्वज को पूरा विश्वास हो गया। पुत्र को शीघ्र देखने की उसे आशा हो गयी । राजदूत महाराज को प्रणाम कर अपना कर्तव्य पालन करने के लिए तैयार हो गया । चलते समय महाराज ने उसकी पीठ पर हाथ रखा । वह खर्च के लिए इच्छानुसार रुपये-पैसे लेकर दरबार से |चल दिया।
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