Book Title: Uttamkumar Charitra
Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 100
________________ स्वप्न को देखकर मुझे उत्तमकुमार से मिलने की अत्यन्त अभिलाषा हो रही है। मेरे मन में अपने पुत्र को देखकर हृदय को शान्त करने की प्रबल इच्छा हो रही है।" महाराजा मकरध्वज की ऐसी चिन्ता जनक दीन वाणी श्रवणकर मंत्री ने हाथ जोड़कर कहा - "स्वामिन् ! आप किसी भी तरह की चिंता न कीजिए। यह आपका स्वप्न शुभ-सूचक है। राजकुमार कहीं आनन्द पूर्वक होंगे। नवीन पुष्यों से सुशोभित चार बेलों के बिच में जो आपने उन्हें क्रीडा करते देखा है - इसका यह अर्थ है कि, राजकुमार कहीं चार सद्गुणी महाराणियों के साथ आनन्द का अनुभव करते होंगे। प्रभो ! आप मेरे वचनों पर विश्वास कीजिए। मैंने कई विद्वानों के मुँह से 'स्वप्न शास्त्र' सुना है । आपका यह स्वप्न अत्यन्त शुभ-सूचक है । मैं | आपको निश्चय पूर्वक कहता हूँ कि राजपुत्र उत्तमकुमार किसी बड़े राज्य के राजा हुए है। उनके अन्तःपुर में चार राणियाँ हैं । वे चारों विदुषी महिलाओं के सहवास में रहकर सुख भोग रहे हैं।" मंत्री के यह प्रिय वचन श्रवणकर, महाराजा मकरध्वज का हृदय कुछ कुछ चिंता रहित हो गया। उसके शोकाकुल हृदय को कुछ समय के लिए तसल्ली| हो गयी । राजा ने उत्साह पूर्वक कहा - "मंत्रीराज ! आपकी अमृत के समान वाणी ने मेरे चित्त को बड़ी शान्ति पहुंचाई है । परन्तु राजकुमार को देखने की मेरी प्रबल इच्छा शान्त नहीं होती । जब मैं उसे अपनी आँखो से देख लूँगा तभी मेरे | मन को सच्ची शान्ति मिलेगी । वह राजकुमार कहां होगा और वह कहाँ का राजा बना होगा ? इसका पता अब शीघ्र ही लगाना चाहिए यदि कोई चतुर मनुष्य ढूँढने वाला मिल सके तो उसे समस्त भरतक्षेत्र में उत्तमकुमार की खोज के लिए भेजना चाहिए। महाराज के यह वचन सुनकर मंत्री ने उत्साह पूर्वक कहा - "राजराजेन्द्र ! मुझे एक बात याद आयी ! अपने दरबार में एक वेगवान नामक राजदूत है, वह खोज करने में अत्यन्त निपुण है । भरतक्षेत्र में चाहे जहां छिपा हुआ मनुष्य हो उसे वह ढूँढकर ला सकता है। उसमें शोधन कला का एक बड़ा ही गुण है । इस गुण 93

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