Book Title: Uttamkumar Charitra
Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 95
________________ करता था "तुम अपने मन में इस जगत के सांसारिक विचारों को स्थान कभी मत | देना । वर्ना तुम्हारे अंतःकरण में अज्ञानरूपी घोर अंधकार छा जायगा।जब तक हृदय में ज्ञान और सद्विचार का प्रकाश न होगा तब तक संकल्प विकल्प के घोड़ों का सवार यह जीव पूर्ण संतोष नहीं प्राप्त कर सकता । जब हृदय का अंधकार दूर हो जाता है तब प्राणी ज्ञान रस के शुद्ध प्रेम से स्नान करता है, और तभी वह स्वयं कौन है ? यह बात उसे स्पष्ट रूप से समझ में आ जाती है । इसके बाद वह आत्मवस्तु का यथार्थ स्वरूप समझ जाता है और उसके सामने एक भी प्रश्न नहीं रह जाता । प्रत्येक बात आप ही आप स्पष्ट हो जाती है कुछ भी जानने योग्य नहीं रहता । स्वयम् ज्ञानी बन जाता है और ज्ञानदृष्टि से इस जगत के सब भावों को देखता तथा अनुभव करता है।" अपने पति के ऐसे आत्मिक विचार जानकर चारों स्त्रियाँ प्रसन्न होतीं, और अपने जीवन को उनके कहे अनुसार बनाने का प्रयत्न करतीं थीं । __महाराजा उत्तमकुमार की चारों पत्नियाँ आपस में हिलमिल कर रहतीं तथा विषय सुख एवम् धर्म ज्ञान का अनुभव करती हुई अपने श्राविका जीवन | को सार्थक करने वाले सन्मार्ग को ग्रहण कर, पति की आज्ञा के अनुसार आचरण करती थीं । उनका व्यवहार प्रशंसनीय था । मोटपल्ली नगर की प्रजा इन चारों रानियों को “चतुर चौकड़ी" के नाम से पुकारा करती थी । 88

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