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इतनी बात कहकर पक्षी ने कहा - "महाराज ! आपके अन्तःपुर में मदालसा नामकी जो आपकी पुत्री की सखी है वह वही राक्षस पुत्री है। वह उत्तमकुमार की पहिली पत्नी तथा आपकी पुत्री की सपत्नी है । राजन् ! यह मदालसा और राजकुमार का वृत्तान्त मैंने आपको कह सुनाया । अब अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार आप सेठजी की कन्या और अपना राज्य मुझे सौंप दीजिये।"
पक्षी की यह बात सुनकर राजा नरवर्मा ने आश्चर्य-चकित हो कहा - "पक्षिराज ! इतनी बात कहने से राजकुमार का कुछ पूरा पता नहीं लगा । जिनालय में अचेत पड़े हुए उस राजकुमार का फिर क्या हुआ ? अब यह कहना आवश्यक है!"
पक्षी ने चतुराई से कहा - "महाराज ! यह तो ठीक है। परन्तु मैंने जितनी भी बातें आपसे कही वे सत्य हैं, इसलिए आपको मुझे सहस्त्रकला कन्या और राज्य दे देना चाहिए । मैं सहस्त्रकला से विवाह करके अच्छी तरह राज्य चलाऊँगा । राजन् ! मेरा मनोरथ पूरा कीजिए, मैं आपको शुद्ध मन से आशीर्वाद दूंगा।"
राजा ने आक्षेप करते हुए कहा - "पक्षिराज ! मुझे अपनी प्रतिज्ञा पालन करना आवश्यक है परन्तु एक पक्षी, राज्य कार्य कैसे चला सकेगा ! किसी प्रकार तेरे साथ विवाहकर देने पर मानव स्त्री क्या सख पा सकेगी?"
पक्षी ने क्रोध करते हुए उसी समय कहा - "श्रीमान् ! अब आपको ऐसी | शंका करने का कोई अधिकार नहीं है । यदि आपको अपनी प्रतिज्ञा पालन करना हो तो आप मुझे राज्य और कन्या दीजिए । मैं कुछ भी करूं इस विषय में आपको प्रश्न करने की आवश्यकता नहीं है . इसपर यदि आप अपनी प्रतिज्ञा भंग करना चाहें तो करें, इसकी मुझे कुछ चिंता नहीं है। मैं अपनी फल-फूलों की आजिविका पर स्वतंत्रता पूर्वक वन में घूमूंगा-फिरूँगा । आपका भला हो ? राजन् ! जरा अपने मन में सोचिए - आप पृथ्वीपति होकर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण नहीं करते - यह अन्याय है। मैंने आपको यह वृतान्त कहा है, अब आप मुझसे बात सुनकर मुझे निराश करते हैं ।" यह तो “फोड़ा फूटा और वैद्य वैरी" वाली बात हुई है ।
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