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ताकि मैं अपने असली रूप में हो जाऊँ। ___ पक्षी की यह बातें सुनकर राजा तथा बैठे हुए सभाजन आनन्दित हो, आश्चर्य-सागर में मग्न हो गये । राजा नरवर्मा का हृदय आनन्द से खिल उठा । उसने स्वयं अपने हाथों से पक्षी के पैर में बंधा हुआ डोरा खोल दिया । उसी समय वह पक्षी उत्तमकुमार के रूप में परिवर्तित हो गया । उसने आदर और प्रेमपूर्वक पहिले महाराजा को और बाद में सभा के अन्य सज्जनों को प्रणाम किया । राजा आदि सभी लोग आश्चर्य पूर्वक उस राजकुमार से मिले । सर्वत्र आनन्दही-आनन्द दिखाई देने लगा । तिलोत्तमा और मदालसा के आनन्द का पारावार न | रहा । यह बात सारे नगर में फैल गयी। लोग आश्चर्यान्वित होकर इस विषय में नयेनये तर्क करने लगे । कोई अनंगसेना की शक्ति की तारीफ करने लगे, कोई उत्तमकुमार के गुणों की प्रशंसा करने लगे । कोई कर्म की अनुकूलता की प्रशंसा करने लगे तो कोई-कोई धर्म के महत्व की प्रशंसा करने लगे । कोई कर्म
की विचित्रता का वर्णन करने लगे और कोई पक्षी के पाण्डित्य की प्रशंसा करने लगे। | मानो मृत्यु होने के बाद उसका पुनर्जीवन हुआ हो, यह मान कर उत्तमकुमार | के स्नेही और मित्र उससे मिलने के लिए आने लगे । वे राजकुमार को देख-देख कर अपना अहोभाग्य समझने लगे।
राजकुमार के मिल जाने के हर्षोपलक्ष्य में राजा नरवर्मा ने समस्त जिनालयों |में महोत्सव करने की तथा बृहत्स्नात्र और बड़ी पूजा करने की आज्ञा दी। पाठशाला में पढ़ने वाले बालक बालिकाओं को मिठाई बाँटी गयी । विद्वान, कवि और गुणीजनों को मुरस्कार तथा असंख्य याचकों को दान दिया । इस प्रकार मोटपल्ली नगर में घर-घर आनन्दोत्सव मनाया गया।
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