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के लिए उस वेश्या के यहाँ रहा । इस पर से आपको सोचना चाहिए कि बड़े लोग अपने वचन का पालन करना कितना आवश्यक समझते हैं ! यह बात आपको ध्यान में रखनी चाहिए। आपने जो वचन मुझे दिया है, वह आपको अवश्य ही पूर्ण करना चाहिए । राजन् ! मैंने आपको यह सब वृतान्त कहा अब आप | मुझे सहस्त्रकला सहित राज्य दो । यदि आप ऐसा करना नहीं चाहते हैं तो, मुझे आज्ञा दो, मैं अपने निवास स्थान में जाकर आनन्द करूँ।"
तोते के मुख से यह बात सुनकर राजा ने कहा - "पक्षिराज ! आपका कहना कहाँ तक सत्य है, यह मुझे मालूम कर लेना चाहिए । इसलिए आप थोड़ी देर, यहीं आराम कीजिए । मैं अपने विश्वास पात्र नौकरों को उस अनङ्गसेना के घर भेजकर यह पता लगाये लेता हूं कि उत्तमकुमार वहां है या नहीं ? आपका कहना यदि सत्य है तो नौकर अभी देखकर आ जाते हैं।" यह कहते हुए राजा ने अपने विश्वस्त सेवकों को अनङ्गसेना के घर भेजा । तब तक वह पक्षी चुपचाप वहीं दरबार में बैठा रहा।
थोड़ी ही देर बाद राजा के नौकर अनङ्गसेना के घर जाकर लौट आये ।। उन्होंने महाराजा से नम्रता पूर्वक कहा - "प्रभो ! अनङ्गसेना वेश्या के घर में | तो राजकुमार नहीं है। हमने उसके घर के प्रत्येक गुप्त तथा प्रकट स्थानों को अच्छी तरह देख लिये, परन्तु उत्तमकुमार कहीं भी देखने में नहीं आये ।"|
सेवकों के यह वचन श्रवण कर, राजा निराश हो गया । उसने पक्षी को उलाहना देते हुए कहा – “कहिए ! शुकराज ! यह क्या मामला ? तुम्हारी बातों से तो मेरा विश्वास उठ गया । ऐसे असत्य समाचार पर प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएँ आपको किस तरह दी जा सकती है ? आपके कहे वृतान्त में मुझे थोड़ीसी सत्यता मालूम होती है इसलिए आप पर से मेरा विश्वास बिलकुल उठ नहीं गया है । आपके कहे हुए मदालसा के वृतान्त ने जो मेरे हृदयपर विश्वास स्थापित किया है वह विश्वास की छाप अभी तक मेरे हृदय से मिटी नहीं है । अतएव हे शुक ! कृपा करके अब इस विषय में जो कुछ भी सत्य बात हो वही कहो।"
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