________________
इतना कहकर पक्षी ने उड़ना चाहा - परन्तु राजा ने उसे हाथ से रोककर कहा – “शुकराज ! धैर्य रखो, मैं अपनी प्रतिज्ञा कदापि नहीं तोडूंगा । मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ कि तुम मुझे यह बताओ कि वह राजकुमार जीवित है या नहीं ? | मुझे सत्य-सत्य कहो।"
पक्षी ने धीरे से कहा - "राजेन्द्र ! मैंने आपको इतना वृतान्त कहा, परन्तु आप मुझे अपनी प्रतिज्ञा पर अटल नहीं मालूम पड़ते इसलिए अब आगे का हाल कहने की मेरी इच्छा नहीं होती ।" पक्षी के यह वचन सुनकर एक ओर बैठी हुई अन्तःपुर की स्त्रियों में से निकल कर मदालसा सामने आयी और उसने पक्षी के पैरों को छूकर कहा - "प्यारे पक्षिराज ! मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ । उस | मेरे प्राणाधार राजकुमार की सच्ची खबर सुनाओ।"
मदालसा की प्रार्थना सुनकर, उस पक्षी के हृदय में दया उत्पन्न हो गयी । | वह बोला - "सुनो ! वह राजकुमार जब बेहोश होकर जिनालय में पड़ा हुआ था; तब वहाँ मूर्तिमान अनङ्ग की सेना के समान ‘अनङ्गसेना' नामक एक वेश्या प्रभु के दर्शन करने के लिए वहाँ आयी। वह मंत्र-तंत्र में प्रवीण थी। उसने उत्तमकुमार को जिनालय में बेहोश पड़ा देखा । कुमार का अनुपम रूप देखकर वह वेश्या उस पर मोहित हो गयी । उसके पास विषनाशक एक मणि थी । वह उस राजकुमार को उठाकर अपने घर ले गयी । विषहारिणी मणि को जल में धोकर उस जल से | उसने राजकुमार के शरीर को छींटे दिये । जल सिंचन से राजकुमार का जहर तत्काल उतर गया और वह उठ बैठा । उसने प्रसन्न होकर वेश्या से कहा - "सुन्दरि ! तुमने मुझे जीवित किया है, इसलिए मैं तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ; जो तुम्हारी इच्छा हो मुझसे माँग लो।" वेश्या ने कहा - "प्रिय राजकुमार ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझसे अपना प्रेम सम्बन्ध करें । आपके प्रेम रस में मग्न | होने की मेरी इच्छा है ।" वचन में बंधजाने के कारण राजकुमार को यह बात माननी पड़ी । उसने वेश्या से अपना प्रेम जोड़ लिया और वेश्या के रूप-शृङ्गार में मग्न हो उसके यहाँ रहने लगा। महाराज ! वह पवित्र राजकुमार अपना वचन पालने
77