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पता लगाकर शीघ्र आओ।" महाराज की आज्ञा पाते ही नौकर महल से उतर कर दौडता हुआ वहाँ पहुँचा जहाँ पर लोग इकट्ठे थे । वहाँ जाते ही "अहा ! पक्षी का पाण्डित्य कैसा अद्भुत है !" यह वाक्य प्रत्येक दर्शक के मुँह सुनाई पड़ा । उसने सोचा, “पक्षी का पाण्डित्य" यह कैसी विचित्र बात है ?" उसकी उत्सुकता और भी बढ़ गयी और लोगों की भीड़ में घुसकर उसने सभ्य पुरुषों से पूछा । उसे थोड़ी ही देर में इस बात का पूरा पता लग गया कि यह मामला क्या है ? तत्काल वह वहाँ से लौट आया और उसने महाराजा नरवर्मा से निवेदन किया - “सरकार ! प्रसिद्ध सेठ महेश्वरदत्त की ओर से यह ढिंढोरा पीटा गया है कि : जो कोई राजकुमारी तिलोत्तमा के पति को ढूँढ़ लायगा अथवा उसकी खबर देगा, उसी के साथ मैं अपनी सहस्त्रकला नाम की कन्या का विवाह कर दूंगा। इसके साथ ही सरकार की तरफ से एक दूसरी डोंडी पीटी गयी है कि - जो पुरुष राजकुमारी तिलोत्तमा के पति का पता लगायगा अथवा ढूँढ लायगा उसे महाराजा नरवर्मा अपना राज दे देंगे।"
इन दोनों बातों का ढिंढोरा नगर में फिर रहा था । जब घोषणा का ढोल बजता-बजता राज महल के पास वाले चौराहे पर आया तब एक तोते ने आकर उन दोनों ढोलों को छुआ । यह अद्भुत चमत्कार देखकर ढोल बजानेवाले चकित हो आश्चर्य से वहीं खड़े रह गये । इतने ही में उस पक्षी ने मनुष्य वाणी में बोलते हुए कहा - "भाइयो ! मुझे राजा के पास ले चलो, मैं राजा के जवाइ का वृतान्त कह दूंगा।" तोते की ऐसी स्पष्ट वाणी सुनकर लोग आनन्द तथा आश्चर्य प्रकट करने लगे। यह बात सारे चौराहे में फैल गयी, और लोग झुण्ड के झुण्ड इकट्ठे हो गये। लोग उस तोते के पाण्डित्य की प्रशंसा करते हैं।
नौकर के मुँह से यह बात सुनते ही राजा नरवर्मा अत्यन्त आनन्दित और आश्चर्य-चकित हो गया । उसकी मुरझाई हुई आशालता एकदम लहलहाने लगी । महाराजा ने तुरन्त आज्ञा दी कि - "उस पक्षी को जल्दी से जल्दी यहाँ ले आओ।" आज्ञा पाते ही नौकर चाकर दौड़े गये और ढोल बजाने वालों के साथ
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