Book Title: Uttamkumar Charitra
Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 72
________________ राजकुमारी कहने लगी : - “सखि ! यह भी किया जा चुका है। महाराज ने यह खबर सुनते ही राजकुमार की खोज बड़े जोरों से आरम्भ कर दी है - उसमें उन्हें सामान्य सफलता भी मिली है । सच्ची बात जानने के लिए मैंने भी एक दासी को भेजी है।" इस प्रकार तिलोत्तमा और वह दासी आपस में बातचीत कर ही रही थीं कि वह भेजी हुई दासी दौडती हुई वापस लौटी । उसने कहा - "बाई सहिबा ! मेरे जाने के पहिले ही महाराजा साहिब को खबर हो गयी थी कि, - "उत्तमकुमार जिनालय में पूजा करने गये थे, किन्तु वे वहाँ से न जाने कहाँ चले गये, इसलिए राजपुत्री तिलोत्तमा अत्यन्त दुःखी है।" इस खबर को सुनते ही उन्होंने अपने मंत्रियो को बुलाकर उनको ढूंढने के लिए चारों ओर इधर-उधर दौड़ाये है। यह बात नगर में फैल जाने से कई राजभक्त भी उत्तमकुमार की खोज में प्रयत्न शील है । नगर के हरेक प्रसिद्ध तथा गुप्तस्थानों को देख लिया गया, परन्तु उत्तमकुमार का पता कहीं भी नहीं लगा । इसलिए महाराजा, महाराणी मित्रवर्ग, तथा प्रजाजन अत्यन्त व्याकुल हो रहे हैं।" दासी के यह वचन सुनकर, राजकुमारी की चिंता और भी अधिक बढ़ गयी। राजपुत्री के हृदय में शोकानल की प्रचण्ड ज्वाला धधक उठी। वह थोड़ी देर बाद मूच्छित होकर पृथ्वी पर धड़ाम से गिर पड़ी । दासियों ने शीतोपचार द्वारा तिलोत्तमा को बड़ी कठिनता से ज्यों-त्यों करके होश कराया। 65

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