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ने धन के प्रलोभन में पड़कर विष प्रयोग करने की तैयारी कर ली ।
उन्नीसवाँ परिच्छेद
मालिक और सेठ “सेठ महेश्वरदत्त अपनी पुत्री के लिए योग्यवर न मिलने पर भी उसके विवाह की तैयारियां कर रहा है, और विवाह के बाद अपने दामाद-जंवाई को अपनी सारी सम्पत्ति का मालिक बनाकर पंच महाव्रत ग्रहण करेगा।" इस समाचार को श्रवण कर राजा नरवर्मा के हृदय में सेठ महेश्वरदत्त से मिलने की उत्कट इच्छा उत्पन्न हुई, और उन्होंने अपने एक मंत्री को भेजकर सेठजी को बुलवाया। मंत्री ने जाकर महेश्वरदत्त को राजा की आज्ञा कह सुनायी । सेठ बड़ा ही प्रसन्न हुआ । उसके रोम रोम में राज-भक्ति जागृत हो उठी । वह महाराजा के | दर्शन करने को बड़ा ही उत्सुक हुआ और अपने को और उस दिन को वह धन्य | समझने लगा।"
राजा नरवर्मा अपने दामाद उत्तमकुमार के लापता हो जाने से चित्त में| अत्यन्त दुःखी था । इसीलिए उसकी मनोवृति में वैराग्य की भावनाएं प्रबल हो गयी थी । यह असार संसार उसे सूना मालूम पड़ता था । जगत के नश्वर पदार्थों पर | | उसे अरुचि उत्पन्न हो गयी थी।
विरक्त की तरह बैठे हुए महाराजा को द्वारपाल ने आकर सूचित किया - "प्रभो ! अपने नगर के प्रसिद्ध सेठ महेश्वरदत्तजी राजद्वार पर आपके दर्शनों की इच्छा से खड़े हैं।" द्वारपाल के यह वचन सुनते ही महाराजा संभ्रम से उठ खड़े हुए और उसके स्वागतार्थ राज महल के अन्तर्द्वार के पास जाकर खड़े हो गये । द्वारपाल सेठ को लेकर महाराजा के पास आया । महाराजा ने उसका सम्मान कर अपने सिंहासन के पास ही एक सुन्दर योग्य आसन पर आदर पूर्वक बिठाया।
कुशल प्रश्न के बाद महेश्वरदत्त ने कहा - "सरकार ! इस सेवक को क्या
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