Book Title: Uttamkumar Charitra
Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 74
________________ करने के लिए तैयार हूँ।" सुन्दरी ने भी अपना लुब्ध आशय प्रकट करते हुए कहा – “जो मनुष्य द्रव्य खरच ने को तैयार हो, उसके लिए संसार का कोई भी ऐसा कार्य नहीं है, जो न हो सके।" | सुन्दरी के मुख से यह वचन सुनकर, वह पुरुष अपने मन में बड़ा ही प्रसन्न हुआ और “अब मेरा काम बन जायगा।" जब ऐसी दृढ़ आशा उसके मन में पैदा हो गयी, तब उसने अपनी गुप्त बात कहनी शुरू की - "बहिन ! इस नगर में उत्तमकुमार नामक एक मेरा शत्रु रहता है । वह जब तक जीवित है, तब तक मेरे मन को शांति नहीं होती । इस शत्रु के नाम की याद आते ही, मेरी भूख, प्यास, और नींद उड़ जाती है, इसलिए किसी भी तरह उसे नष्ट करने की मेरी इच्छा है । मेरी इस इच्छा को पूरी करने वाले को मैं मुँह माँगा धन देने को तैयार हूँ।" यह बात सुनकर वह स्त्री कहने लगी - "भाई ! उस उत्तमकुमार को मैं अच्छी तरह पहिचानती हूँ । वह प्रति दिन जिनालय में पूजन करने के लिए आता है और | प्रभु की पूजा के लिए नित्य मेरे ही पास से फूल खरीदता है।" । स्त्री के यह वचन सुनते ही पुरुष ने उत्सुकता से कहा - "बहिन ! क्या तुम मालिन हो ? तब तो मेरा कार्य तुम्हीं से बन सकेगा । प्राचीन इतिहासों के देखने से मालूम होता है कि जो-जो कार्य मालिनों ने किये है वैसे कोई आज तक दूसरा नहीं कर सका है । भद्रे ! अब मुझे विश्वास हो गया कि आप मेरा काम जरूर सिद्ध करोगी ।" ऐसा कहकर उस पुरुष ने सोने की मुहरों का एक हार निकालकर उस मालिन के गले में पहिना दिया। लक्ष्मी एक ऐसी मोहिनी वस्तु है कि उसके द्वारा जिस तरह अच्छे से अच्छे | काम होते हैं, उसी तरह बुरे से बुरे काम भी बन जाते हैं । मानवी हृदय को लुभाने वाली यह लक्ष्मी ही है । लक्ष्मी द्वारा आकर्षित लोभी मनुष्य सब प्रकार के दुष्कर्म | करने के लिए तैयार हो जाते हैं । लक्ष्मी क्या नहीं कर सकती ? इस चपला का प्रभाव अवर्णनीय है । वह जिस तरह प्राणों का पोषण करती है उसी तरह उसको 67

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