________________
में सहायक हो रही थीं।
इस रमणी का महल बड़ा ही सुन्दर और भड़कीला-चमकीला था । उसमें ऊँचे दर्जे की पच्चीकारी का काम किया गया था । उसके आस-पास और भी कई मनोहर विशाल महल थे । उनमें उस रमणी का धनाढ्य कुटुम्ब रहता था । महल के पास ही हाथी, घोड़े, गाड़ी, पालकी, म्याना वगैरह के लिए सुन्दर मकान बने हुए थे । प्रत्येक स्थान पर राज वैभव को लजाने वाले ठाठ-बाठ के दृश्य दिखाई देते थे । उसकी गृहलक्ष्मी राज्यलक्ष्मी का मुकाबिला करती थी । विशाल | आँगन में हजारों दास-दासी नये-नये वस्त्र पहिने इधर उधर फिर रहे थे ।
पाठक ! आपको इस सुन्दरी का पूरा वृतान्त जानने की उत्सुकता होगी। आपकी यह उत्सुकता शांत करना, लेखक का प्रथम कर्तव्य है। इस सुन्दरी का नाम सहस्त्रकला है । यह “यथा नाम तथा गुणा" है । सहस्त्र कलाओं की ज्ञाता होने के कारण इसका यह नाम सार्थक कहा जा सकता है । इसके पिता का नाम महेश्वरदत्त है । महेश्वरदत्त मोटपल्ली नगर का एक धनाढ्य वणिक है । राजा नरवर्मा के समृद्ध राज्य में वह बहुत ही प्रतिष्ठित धनी सेठ माना जाता है। | उसने व्यापार के द्वारा अत्यन्त ऐश्वर्य प्राप्त किया है। उसकी पूँजी छप्पन करोड़ मोहरों की गिनी जाती है। बड़े-बड़े पाँच सौ जहाज उसके अधिकार में हैं । पाँच सौ गाडियाँ, पाँच सौ दुकानें और पाँच सौ गोदाम कोठियों का वह मालिक है । | उसके वैभव के अनुसार हाथी, घोड़े , पालकी, सेवक और योद्धा आदि मौजूद हैं।
इस धन सम्पन्न सेठ महेश्वरदत्त के एक मात्र सन्तान यह सहस्त्रकला ही है । गुण, विनय तथा रूप सम्पन्ना यह सहस्त्रकला उस धनपति सेठ की प्राणों से | भी प्यारी बेटी है । पुत्री वत्सल पिता ने इस बाला को उत्तम शिक्षा देकर एक विदुषी बालश्राविका बनायी थी । ज्ञान एवम् कला सम्पन्न यह बालिका अपने पिता
के यहाँ रहती हुई ज्ञान तथा कला के आनन्द का पूर्ण रीति से अनुभव करती थी। | सहस्त्रकला जब बड़ी हुई तब उसके पिता को उसके योग्य पति ढूँढने की महान चिंता उत्पन्न हुई । पुत्री के अनुरूप गुणी तथा योग्यवर ढूँढने की चिंता में वह
60