Book Title: Uttamkumar Charitra
Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ रातदिन निमग्न रहने लगा । उसने बहुत से उपाय भी किये किन्तु अभी तक सफलता नहीं मिली !! वही, श्रावक बाला सहस्त्रकला अपने महल में बैठी हुई है । अपने भविष्य जीवन के विषय में वह नये-नये संकल्प-विकल्प कर रही है । इसी समय | एक दासी ने हाजिर हो सुन्दरी को प्रणाम किया और कहा - "बाईसाहिबा ! |आपको सेठ साहिब बुला रहे हैं।'' यह सुनते ही वह खड़ी हो गयी ओर पास के महल में जहाँ उसके पिता महेश्वर दत्त बैठे हुए थे, आकर विनयपूर्वक प्रणाम किया।पिता ने पुत्री को प्रेम से अपने पास बिठायी। वहाँ पहिले ही से एक विद्वान ज्योतिषी बैठा था । वह अपने निमित्त-ज्ञान के बल से भूत तथा भविष्य अच्छी तरह कह सकता था । उस ज्योतिषी को दिखाने के लिए ही सहस्त्रकला वहाँ बुलायी गयी थी। पिता के कहने पर सहस्त्रकला ने उस ज्योतिषी के चरण स्पर्श किये । शान्तमूर्ति ज्योतिषी ने उसे आशीर्वाद दिया । सहस्त्रकला का दैवी सौन्दर्य देखकर वह हृदय में आश्चर्य-चकित हो गया । कुछ देर बाद अपने गणित बल से तथा कन्या के सामुद्रिक लक्षणों को देखकर कहने लगा - "सेठजी ! इस कन्या की आकृति से मालूम होता है कि आज से एक महीने के अन्दर इसे योग्य वर मिल जायगा । आप निःशंक होकर विवाह की तैयारियाँ कीजिए।" ज्योतिषी महाराज के मुख से ऐसी बात सुनकर सेठ महेश्वरदत्त बहुत ही | प्रसन्न हुआ।चिंता दूर हो गयी । उसके हृदय में आनन्दामृत की अविरल धारा बहने लगी । उसने ज्योतिषी को अच्छी भेट दी - वह भी प्रसन्न होकर , सेठजी की आज्ञा |ले आशीर्वाद दे, अपने स्थान पर चला गया । यद्यपि सहस्त्रकला अपने विवाह की बात सुनकर मन में बड़ी ही प्रसन्न हुई तथापि ऊपर से लज्जा प्रदर्शित करती थी। वह अपने पिता से आज्ञा लेकर अपने महल में वापस आ गयी । उसके पास उसकी समान उम्रवाली सहेलियाँ आकर विवाह की बातचीत चलाकर हँसी दिल्लगी करने लगीं। 61

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116