Book Title: Uttamkumar Charitra
Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 47
________________ गया और उसका सारा माल जब्त करके राजखजाने में जमा करा दिया । महाराजा नरवर्मा ने मदालसा से नम्रता पूर्वक कहा - "बेटी ! अब तूं निर्भय हो गयी है । मेरे तिलोत्तमा नामक एक पुत्री है, उसके साथ तूं मेरे अन्त: पुर में रह । तूं भी मेरी दूसरी धर्मपुत्री है। तेरी इच्छा हो उतना दान पुण्य करना । विविध स्वाध्याय और धर्म - ध्यान में अपना समय व्यतीत करना । " प्यारे पाठक ! पापी कुबेरदत्त की दशा देखकर जरा विचार कीजिए । " जैसी करनी वैसी भरनी" यह कहावत कुबेरदत्त के लिए चरितार्थ हुई । व्यापार में प्रतिष्ठा प्राप्त कर कुबेरदत्त ने मदालसा की तरफ बुरी नजर की और उसके निर्दोष, एवम् विश्वस्त पति उत्तमकुमार को धोके से समुद्र में डाल दिया । इस घोर पाप का फल उसे थोड़े ही समय में मिल गया । उस भयङ्कर पापों ने ही राजा नरवर्मा के हृदय में प्रेरणा की और न्यायी राजा ने पापी कुबेरदत्त को मिट्टी में मिला दिया - माल | जब्त कर के जेल खाने में बन्द कर दिया । मनुष्य चाहे जितनी युक्ति से, और चाहे जितने गुप्त रीति से भी पाप क्यों न करे, परन्तु उसके कड़वे - फल भोगे बिना उसका पीछा नहीं छूट सकता । पति विरहिणी मदालसा राजा नरवर्मा के अंत - पुर में उसकी पुत्री तिलोत्तमा के साथ रहने लगी । वह निरन्तर अपने पति को याद करके रोया करती तथा अपने धर्म की रक्षा में सावधान रहती थी । 40

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