Book Title: Uttamkumar Charitra
Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 50
________________ थीं । कभी-कभी तिलोत्तमा अपने शहर की अन्य विदुषी श्राविकाओं को बुलाकर सभा करती और उसमें मदालसा के अच्छे - अच्छे व्याख्यान करवाती थी । पवित्र हृदया मदालसा अपनी योग्यता के अनुसार अच्छे - अच्छे विषयों पर व्याख्यान देकर मोटपल्ली नगर की स्त्रियों को आनन्दित करती थी। बारहवाँ परिच्छेद विश्वकर्मा का अवतार लोगों का हो हल्ला मच रहा था । मजदूर झुंड के झुंड घूम - फिर रहे थे। कोई पत्थर चीर रहा था कोई गढ़ता था, कोई रेत रहा था और कोई मुखिया बनकर दूसरों को आज्ञा दे रहा था । एक तरफ कोरणी का काम चल रहा था, दूसरी ओर चित्रकार नये - नये रंग तैयार किये खड़े थे और एक तरफ बढ़ई| काष्ठपर कोरणी का काम करते थे। इसी समय उस जगह वहाँ एक तरुण पुरुष आ पहुँचा । वह वहाँ खड़ा होकर यह सब दृश्य देखने लगा। थोड़ी देर इधर - उधर देखकर वह वहाँ टहलने लगा। इसी समय उसे एक विशालकाय मोटा ताजा प्रौढ़ पुरुष दिखाई पड़ा । उस प्रौढ़ पुरुष ने इस तेजस्वी तरुण को देखकर प्रणाम किया । तरुण पुरुष ने उसका सम्मान करते हुए नम्रता पूर्वक पूछा - "आप कौन हैं ? और यह क्या हो रहा है ?"| ___"महाशय ! मैं मिस्त्री हूँ । हमारे महाराज की आज्ञा से उनकी राजकुमारी के लिए यह नया नहल बनाया जा रहा है । महाराजा ने उदार चित्त होकर बड़ी प्रसन्नता से इस महल का कार्य आरम्भ करवाया है। ऊँचे दर्जे की कारीगरी से इस महल की रचना की गयी है । इस महल को बनवा देने का सब काम मुझे सौंपा गया है और मेरी देख-रेख में यह काम चल रहा है।" मिस्त्री के यह वचन सुनते ही उस तरुण पुरुष ने कहा - "भाई ! इस महल की रचना बड़ी ही सुन्दर हुई है परन्तु इसमें कुछ त्रुटियां रह गयी हैं । यदि आप 43

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