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मदालसा के इन वचनों को सुनकर उत्तमकुमार कहने लगा - "प्रिये ! । यह तुम्हारी शंका व्यर्थ है । कुबेरदत्त परोपकारी पुरुष है । मेरे प्रति उसके हृदय में| पवित्र प्रेम है । उसकी वाणी में जो माधुर्य है वह बनावटी नहीं स्वाभाविक है।" मदालसा ने नम्रता से कहा - "स्वामिन् ! आपकी मनोवृत्ति निर्मल होने के कारण आपको सभी अपने समान सरल वृत्ति के दिखाई पड़ते है । परन्तु मेरी यह शंका सत्य है । संभवतः किसी समय यह सेठ आपके कथनानुसार पवित्र रहा होगा यह मैं मान सकती हूँ, किन्तु इस समय तो उसके विचारों में विकार भरा पड़ा है, यह बात निस्सन्देह है । कारण मेरे सौन्दर्य और मेरे रत्नों की समृद्धि देखकर उसके मन में बुरे भाव पैदा हुए हैं। इस विषय में मुझे नीति का एक श्लोक याद आता है -
- "पुष्पं दृष्ट्वा फलं दृष्ट्वा, दृष्ट्वा च नव यौवनाम् ।
द्रविणं पतितं दृष्ट्वा, कस्य नो चलते मनः" ॥ अर्थात् :- "पुष्प, फल, यौवन और पड़े हुए धन को देखकर किसका | मन नहीं चलायमान होता?"
___ और भी एक विद्धान का कहना है कि - "धूर्त मनुष्य दिखने में बड़े ही सज्जन गुणी मालूम होते हैं । कुलटा स्त्रिएँ बहुत लज्जा प्रदर्शित करती हैं । खारा पानी बहुत होता है और ऐसे फल जिन्हें लोग नहीं खाते वृक्ष पर खूब लगते हैं।"|
देवी मदालसा का यह कथन उत्तमकुमार के हृदय में कुछ जचा नहीं । उसने हँसकर कहा- "प्रिये ! तुम्हें ऐसी शंका नहीं रखनी चाहिए । सेठ कुबेरदत्त पवित्र है। उसके हृदय में मेरे लिये अगाधप्रेम है।"
___ पति के यह वचन सुनकर मदालसा मन-ही-मन विचार करने लगी । "देखो, कर्म की कैसी विचित्र गति है ? मेरे स्वामी इतने चतुर होकर भी इस समय कर्म के प्रभाव से कैसी भूल कर रहे हैं ? नीच कुबेरदत्त का कुटिल हृदय पहिचानने | में वे असमर्थ हैं । अरे कर्म ! तेरी सत्ता के आगे किसी का भी वश नहीं चलता । देव | हो अथवा मनुष्य हो किन्तु तेरे सामने सभी हार मान लेते हैं । विद्या सम्पन्न, तर्कशास्त्र | के पारदर्शी, नीतिनिपुण, और केवल देखकर ही मानव हृदय की परीक्षा कर लेने
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