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पाठक ! इस विषय पर आपको विचार करना चाहिए । इस संसार में गुण कितनी अच्छी वस्तु है, गुणी पुरुष हो अथवा स्त्री, सर्वत्र पूजा, आदर, और सम्मान प्राप्त करता है । गुण के प्रभाव से आत्मा कितनी उन्नति प्राप्त करता है, इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण राजपुत्र उत्तमकुमार है । उस धर्मवीर के हृदय में उपकार करने का स्वाभाविक गुण था । इसी गुण के कारण, वह विदेशी, अज्ञात और पराया होते हुए भी, स्वदेशी परिचित और स्वजन की भाँति हो गया । यह किसका प्रभाव था ? गुण ही का था न ? गुण-गौरवता के समान संसार में दूसरी गौरवता नहीं है । इस गौरव के आगे अन्य गौरव फीके पड़ जाते हैं । गुण के | विषय में जैनाचार्य श्री जिनहर्ष सूरिजी ने कहा है :
"गुण पूजित सब जगत में , गुण का आदर होय ।
राजा हो अथवा प्रजा, गुण पूजे सब कोय।" इससे प्रत्येक विचार शील मनुष्य को यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि मानव जीवन को सार्थक और सफल बनाने के लिए कुछ-कुछ उत्तम गुण अवश्य प्राप्त करने चाहिए । परोपकार-गुण सर्वश्रेष्ठ है । इस महान गुण के प्रभाव से मनुष्य तीर्थङ्कर बने, गरीब अमीर हुए, और दीन-अदीन हुए हैं । गुणों के प्रभाव से, गुणी पुरुषों के यशोगान अभीतक हरदेश में गाये जाते है। और इन्हीं गुणों के ही कारण-मनुष्य सिद्ध रूप होकर सिद्धशिला के आसन पर विराज मान हो सके हैं ।
अविचारी कुबेरदत्त अपना कृत्रिम प्रेम प्रदर्शित करने के लिए उत्तमकुमार के पास आया । उसने कपट पूर्वक बात चीत करनी आरम्भ की और अत्यन्त प्रेमभाव दिखाते हुए उसकी प्रशंसा करने लगा । बोला - "राजकुमार ! आपकी परोपकार वृत्ति अलौकिक है । आपकी दिव्य बुद्धि और वर्ताव प्रशंसा के योग्य है। आपके दर्शनों से मेरे चित्त में अत्यन्त आनन्द होता है। मेरे स्वजनों की अपेक्षा मेरा शुद्ध प्रेम आप की तरफ विशेष रूप से आकर्षित है। प्रत्येक समय मेरे हृदय में आपके गुण, चरित्र तथा अलौकिक प्रभाव की याद बनी रहती है । मेरे हृदय में आपके लिए सदा यही भावना रहती है कि - "मैं जीवन पर्यन्त आपकी संगति में
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