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सा नगर है ? और यहाँ क्या-क्या देखने लायक वस्तुएँ है ?" उस नागरिक ने जवाब दिया - यह भृगु कच्छ ( भरुच) नगर है । गुजरात देश का यह एक अत्यन्त प्रसिद्ध नगर है । गुजरात की व्यापारश्री यहीं निवास करती है, और यह | स्थान आर्य-भूमि में एक बड़ा तीर्थ माना जाता है । इस नगर में मुनिसुव्रतस्वामी
की एक मनोहर मूर्ति है । असंख्य यात्री प्रभु की सुन्दर प्रतिमा के दर्शनार्थ यहाँ | नित्य आते हैं।"
उस नागरिक के ऐसे वचन सुनकर उत्तमकुमार शहर में गया और वहाँ | की रमणीयता देखकर उसके चित्त में अत्यंत प्रसन्नता हुई । प्रत्येक सड़को और गलियों में वस्त्राभूषणों से सुसज्जित स्त्रियाँ घूम रही थीं । छोटे-छोटे बालक जहाँ-तहाँ इकट्ठे होकर विविधभाँति के गवाक्षों से तथा खिड़कियों के पास में खड़ी हुई रमणियों के निकले हुए मुख आकाश में सैकड़ों चन्द्रमाओं के उदय होने का धोखा दे रहे थे । इस तरह के आनन्ददायक दृश्यों को देखता हुआ उत्तमकुमार शहर के मध्य-भाग में जा पहुँचा । आगे बढ़ने पर उसे एक अत्यन्त सुन्दर विमानाकार चैत्य दिखाई पड़ा । उसे देखते ही धर्मनिष्ठ उत्तम कुमार बड़ा ही प्रसन्न हुआ । उसने चैत्य में प्रवेश किया जहाँ उसने मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिमा देखी । निसीहि का उच्चारण करते हुए वह आगे बढ़ा और उसने प्रभु की प्रतिमा को वन्दना की । वन्दना करते समय उसके हृदय में भावोल्लास उत्पन्न हुआ और वह कहने लगा :
"प्रभु प्रतिमा मन मोहिनी, दुखभंजन सुखरूप। जन मन आनन्दकारिणी, राजत रूप अनूप ॥ वांच्छित फल दाता प्रभु, भव दुःख मेटन हार ।
मूरति अमृत स्यंदिनी, करे शीघ्र उद्धार । तूं जगबन्धू जगतपति, तूं जगदीश दयालु ।
तूं माता तूं ही पिता, करुणावंत कृपालु ॥ इस प्रकार प्रार्थना करने के बाद, भावना से पूर्ण राजकुमार घूमता
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