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मेरे पूर्व कर्म के संस्कारों से ही ऐसा हुआ मालूम पड़ता है। अन्यथा मेरे हृदय में | ऐसी चंचलता क्यों पैदा होती ? यह सोचते-सोचते राजकुमार का हृदय मोहविकार के वशीभूत हो गया । मोहित हृदय से वह विचार करने लगा - "अहा, कैसा अद्भुत सौन्दर्य है ? क्रूरकर्मी राक्षस कुल में ऐसी मनोहर बाला कहाँ से पैदा हुई होगी ? वज्र हृदयी राक्षस के घर में ऐसी सुकोमल सुन्दरी कहाँ से आयी ? उसका मुखचन्द्र पूर्णिमा के चन्द्र की भाँति कैसा सुन्दर चमक रहा है ? प्रवाल के समान होठों की लालिमा कैसी हृदय हारिणी है ? चकित हरिणी के समान उसके नेत्र कितने हृदय वेधक हैं ? उसकी सुन्दर नासिका, गुलाबी लिये हुए गौरकपोल, और अर्द्धचन्द्र के समान ललाट अवर्णनीय है । उसके सुकोमल अङ्ग तथा उपाङ्गों की रमणीयता सहज ही हृदय को अपनी ओर खींच रही है ।" । जब राजकुमार अपने मन में इस प्रकार सोच रहा था तब राक्षस-पुत्री भी |अपने उस सुन्दर कुमार को देखकर मोहित हो चुकी थी । उसके हृदय में भी राजकुमार के प्रति शुद्ध प्रेम का उदय हो चुका था । थोड़ी देर के लिए जब उनकी चार आँखे हुई तो परस्पर दर्शन के आनन्द से दोनों को रोमांच हो गया और आपस में दाम्पत्य भाव जोड़ने की भावना उनके हृदयों में जागरित हुई ।।
इन दोनों के भावों को ताड़कर उस बुढ़िया ने विचार किया - "दैवयोग से यदि इन दोनों का दांपत्य प्रेम हो जाय तो स्वर्ण और रत्न के योग के समान हो ।
जैसी मदालसा मनोहर है, वैसा ही यह राज कुमार भी मनोहर है। इसके अतिरिक्त | यह पराक्रमी और साहसी भी है । ऐसे वीर पुरुष को ब्याही जाने पर मदालसा सब तरह सुखी रहेगी, यह निस्सन्देह बात है । यह राजकुमार यदि इस मदालसा को यहाँ से हरण कर ले जावे तो बेचारी राक्षस-पिता के बन्धन से मुक्त हो; इतना ही नहीं साथ ही मेरा भी छुटकारा हो । इसलिए जैसे बने वैसे इन दोनों का विवाह कर देना ही ठीक है।
ऐसा सोचकर उस वृद्धा ने उत्तम कुमार और मदालसा का हाथ एक दूसरे के हाथ में देकर अपनी साक्षी से उनका वहीं पर गान्धर्व विवाह कर दिया।
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