Book Title: Uttamkumar Charitra
Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 37
________________ सुखानन्द-सेठजी ! आप ऐसा न कहिए । आपको मुझ जैसे तुच्छ की सहायता की जरूरत ही क्यों पड़ेगी ? आप अतुल धनराशी के मालिक और मुज जैसे असंख्य सेवकों के पालक हैं। । कुबेरदत्त-भाई सुखानन्द ! मुझे एक बात कहनी है, ध्यान पूर्वक सुनना । परन्तु यह बात तेरे विश्वास पर ही कहता हूँ। किसी दूसरे के समक्ष प्रकट न होने पावे। सुखानन्द-सेठजी ! इस बात से निश्चिन्त रहिए । आज दिन तक मैं आपका जैसा विश्वासपात्र रहा हूँ वैसा ही आजन्म बना रहूँगा। ___सुखानन्द के यह वचन सुनकर कुबेरदत्त ने उससे कहा - "अपने जहाज में एक सुन्दर रमणी के साथ जो उत्तमकुमार नामक युवक रहता है, उसे तूं जानता है?" सुखानन्द ने कहा- “हाँ मैं उन दोनों स्त्री पुरुषों को निरन्तर देखता हूँ, किन्तु उनके विषय में और कुछ भी नहीं जानता । उनके साथ एक वृद्धा स्त्री रहती है, वह कौन है?" कुबेरदत्त ने कहा - "थोड़े दिन पहिले जब कि अपने जहाज में मीठे पानी | की जरूरत पड़ी थी तब वह उत्तम कुमार मल्लाहों के बताये हुए किसी एक पर्वत पर | के कुएँ में जल के लिए उतरा था । वहाँ मीठा जल दिलाकर वह कुएँ में एक मार्ग | द्वारा अन्दर गया, वहाँ किसी महल में उसे यह सुन्दरी और वृद्धा स्त्री दिखाई दी। उस बुढ़िया ने इस राजकुमार से उस सुन्दरी का विवाह कराया है। वहाँ से राजकुमार उस बुढ़िया और अपनी पत्नी को लिए अपने जहाज में आया । रास्ते में फिर जब हमलोगों को जल की जरूरत पड़ी तब उसने उस सुन्दरी से एक रत्न लेकर मीठे पानी की वर्षा की । इस स्त्री के पास पाँच चमत्कारी रत्न हैं । १ भूमिरत्न २ जलरत्न ३ तेजरत्न ४ वायुरत्न और गगनरत्न ये उन रत्नों के नाम हैं । भूमिरत्न से शयन, आसन, स्वर्ण पात्र. आभूषण वगैरह सब सामग्री प्राप्त की जा सकती है । जलरत्न के द्वारा इच्छानुसार पानी की प्राप्ति होती है । वायुरत्न शीतल और सुगन्धित पवन का संचार कर सकता है । तेजरत्न से शाक, सब्जी इत्यादि रसोई तैयार होजाती है और गगनरत्न से नवीन रेशमी वस्त्र आदि प्राप्त किये जा सकते हैं । 30

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