Book Title: Uttamkumar Charitra
Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 19
________________ एक छोटी सी टुकड़ी भी है।घोड़ो की हिनहिनाहट से वन-भूमि गूंज उठी।थोड़ी दूर आगे जाने पर टुकड़ी के नायक ने अपने घोड़े को दौड़ाना चाहा, परन्तु उस घोड़े ने अपनी मन्द गति नहीं छोड़ी । चतुर सवार ने उसे दौड़ाने कि लिए बहुतेरे प्रयत्न किये किन्तु सब निष्फल । घोड़े ने अपनी चाल तेज नहीं की । अन्त में उसने अपना घोड़ा वहीं रोक दिया। पीछे से आने वाले घुड़सवार भी रुक गये । जब तक सैनिक सेना नायक के निकट आया तब उसने पूछा --- "मंत्रिवर्य ! आज यह क्या हुआ, कुछ समझ ही में नहीं आता ! यह घोड़ा बिलकुल नया बछेरा है, और बड़ा ही वेगवान भी है, परन्तु बहुत प्रयत्न करने पर भी यह नहीं चलता ! इसका क्या कारण है?" ___मंत्री ने उत्तर दिया - "महाराज ! बिना अश्वविद्या के जाने इस विषय में कुछ | भी नहीं कहा जा सकता। यदि कोई अश्व-विद्या का ज्ञाता हो तो कुछ बता सकता है।" मंत्री के इन वचनों को सुनकर मुख्य-नायक विचार सागर में निमग्न हो गया । इतने ही में एक सुन्दर पुरुष कुछ दूरी पर सामने से उसे आता दिखाई दिया। उस पुरुष ने इन घुड़सवारों को खड़े देखा तो सहज ही वहाँ आकर खड़ा हो गया। जब उसकी दृष्टी मुख्य सेना-नायक पर पड़ी तो उसने उसे सविनय प्रणाम किया । पाठक ! आपके हृदय में , इस अजनबी प्रसङ्ग को जानने की उत्कंठा हुई होगी। इसका स्पष्टी करण हो जाना ठीक है।जो यह मुख्य सेना-नायक अश्वारोही पुरुष है, वह मेदपाट-मेवाड़ का महाराजा महीसेन है। इसकी राजधानी का नाम चित्रकूट नगर है। इसके अधिकार में बहुत से देश हैं । यह महीसेन राजा बानवेलाख मालवा का स्वामी कहा जाता है। इसके कोई भी सन्तान नहीं है। इस राजा को अश्व क्रीड़ा का बहुत शौक है। यह आज अपने मंत्री तथा दूसरे सरदारों सहित घोड़ो पर चढ़कर वन में घूमने निकला है । दैव योग से यहाँ पर उत्तमकुमार से इसकी भेट हो गयी । उत्तमकुमार वाराणसी नगरी छोड़कर यहाँ कैसे आया? यह बात “कर्म परीक्षा प्रकरण" में अच्छी | तरह बता दी गयी है, - पाठक भूले न होंगे । महीसेन ने उत्तम कुमार से पूछा "भद्र ! आप मुझे कुछ विलक्षण पुरुष मालूम होते हो ! क्या आप बता सकते हैं

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