________________
रणसिंह का चरित्र
श्री उपदेश माला
श्रीपार्श्वप्रभु के दर्शनकर पश्चाद् भोजन करने लगा। इस प्रकार अभिग्रह का पालन करते बहुत दिन व्यतीत हुए। एकदा चिन्तामणियक्ष उसकी परीक्षा करने के लिए सिंह रूप धारणकर द्वार पर खड़ा हुआ। मध्याह्न समय रणसिंहकुमार नैवेद्य ग्रहण कर जिनदर्शन करने आया। द्वार पर सिंह देखकर सोचने लगा प्राणांत में भी नियम का भंग नही करना चाहिए। यदि यह सिंह है तो मैं भी रणसिंह हुँ, यह मेरा क्या बिगाड़ेगा? इस प्रकार सोचकर उसने शूरता से सिंह को ललकारा। उसका साहस देखकर सिंह तिरोभूत हुआ। जिन भक्ति कर रणसिंह अपने खेत में आया और भोजन किया।
एकबार घर से तीन दिन तक खाना नही आया। जब चौथे दिन खाना आया तब जिनदर्शन कर नैवेद्य रखा और खेत में आकर सोचने लगा- यदि यहाँ पर कोई अतिथि पधारें तो उनको भाव पूर्वक देकर पारणा करूँगा। जब वह इन्हीं विचारो में निमग्न था तब भाग्यवश वहाँ पर दो मुनि भगवंत पधारें। उनके चरणों में गिरकर रणसिंह ने शुद्ध आहार वहोराया। साधुओं की भक्ति करने से वह खुद को धन्य मानने लगा और उसके मन में अतीव हर्ष हुआ। चिन्तामणि यक्ष ने प्रकट होकर कहा - वत्स! तुम्हारा सत्व देखकर मैं प्रसन्न हूँ। वर माँगो! रणसिंह ने कहा -- स्वामी! आपके दर्शन से मुझे नवनिधि की प्राप्ति हुई है, किसी चीज की कमी नही है। तो भी राज्य दे दो। यक्ष ने कहाआज से सातवें दिन तुझे राज्य की प्राप्ति होगी। कनकपुर नगर में कनकशेखर राजा राज्य कर रहा है। उसकी कनकमाला रानी है । उन दोनों की पुत्री कनकवती का स्वयंवर होनेवाला है। तुझे उस स्वयंवर में जाना है। वहाँ पर मैं तुझे आश्चर्य दिखाऊँगा। यदि तुझे कुछ कार्य हो तो मेरा स्मरण करना। इस प्रकार कहकर यक्ष तिरोभूत हुआ। दो छोटे बैलों को हल से जोड़कर उस पर बैठकर रणसिंहकुमार कनकपुर आया। उस समय वहाँ पर अनेक राजकुमार आएँ हुए थें। वह स्वयं एक कोने में खड़ा रहा। बहुत दासियों से घेरी हुई कनकवती नूपुर की रणकार करती हुई स्वयंवर में आयी। दोनो ओर राजाओं को देखती हुई, जहाँ रणसिंह किसान के वेश में खड़ा था, वहाँ आकर उसके कंठ में वरमाला डाली। यह देखकर सभी राजाओं के मन में क्रोध उद्भव होने लगा। उन्होंनें राजा को उपालंभ देते हुए कहा- राजन् ! यदि एक किसान को ही अपनी पुत्री देनी थी तो हमें यहाँ बुलाकर लज्जित क्यों किया? राजा ने कहा- यह मेरा दोष नही है, पुत्री ने अपनी इच्छा से वर चुना है। उसने अयोग्य क्या किया है? यह सुनकर सभी राजा क्रोधित होकर आयुध ग्रहणकर रणसिंह को घेरा। उन्होंनें पूछा -रे रंक ! तुम कौन हो ? तेरा कौन-सा कुल है? रणसिंह ने कहा कुल के बारे में कहने का यह उचित समय नही है। यदि में कहूँगा तो भी आपको विश्वास नही होगा। युद्ध से ही मेरे कुल की परीक्षा
4