Book Title: Tirthankar Bhagwan Mahavira
Author(s): Virendra Prasad Jain
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 13
________________ सन्देश और सम्मतियां [प्रस्तुत काव्य के प्रथम प्रकाशन पर कुछ विश्रुत और गण्यमान सन्त, नेता एवं विद्वान महानुभावों तथा इष्ट जनों ने अपने पाशीर्वाद, शुभकामनाएं एवं सम्मतियां भेज कर मुझे प्रोत्साहित एवं अनुग्रहीत किया, उन सबका मैं हृदयसे प्राभार मानता हूं। शुभ सन्देशों एवं सम्मतियों के कुछ अंश यहां साभार उद्धृत किये जा रहे हैं।] सन्तप्रवर क्षुल्लक स्व. श्री १०८ गणेशकोति (गणेशप्रसाद) जी वर्णी, उदासीनाश्रम, ईसरी "....""योग्य कल्याण भाजन हो । प्रापका पुस्तक मिली। मापने प्रकाशन में परिश्रम किया है, तदर्थ धन्यवाद । भ० महा. वीर के चरित्र में दो बातें मुख्य हैं १- ब्रह्मचर्य, २- अपरिग्रह । अन्य भी बातें हैं । परन्तु जो मनुष्य इन दो बातों को अपनायगा वह कल्याण का पात्र होगा । स्वयं महावीर हो जायगा।" (पत्र ता० १३६२५६) भारत के महामहिम प्रथम राष्ट्रपति डा.स्व. राजेन्द्र प्रसाद के पर्सनल सेक्रेटरी ने प्रस्तुत काव्य पर उनकी प्रोर से धन्यवाद प्रेषित किया(पत्र नं० एफ०४-एच । ५६ : जून २५, १९५६ : भाषाढ़ ४, १८८१ [शक] 1) वयोवृद्ध हिन्दो-सेवक राजषि स्व. श्रीमान पुरुषोत्तमदास जी टण्डन, नई दिल्ली"पापकी भेजो पुस्तक 'तीर्थंकर भगवान महावीर' मिली। धन्यवाद । मैंने उसके कूछ पन्ने इधर उधर पढ़े। मेरा स्वास्थ अब विशेष काम नहीं करने देता । मापको इस हिन्दी काव्य पर

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