Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ चरित्रम् 13 // समित्रगतलजभयैः स्वस्व-गृहेभ्यः कामिनीजनैः // शीघ्रमेव समागत्य / सविकारं विलोक्यते // 58 // न अर्थ-लज्जा तजी दइ अनेक कामिनीओ पोताने घरेथी नीकळी शीघ्र तेनी पासे आवीने सविकार दृष्टिथी तेने जोती हती. तस्मिन्नवसरे पश्चाद्वासरेऽपि हि तस्करैः // सर्वस्वं हीयते शून्य-हम्येभ्यो धनलालसैः॥ 59 // / | अर्थ-एटले ते लाग जोइने धननी लालसाबाळा चोर लोको ते ते शून्य गृहोमांथी सर्वस्व चोरी जता हता. // 59 // महाजनस्तु सर्वोऽपि / मिलित्वागान्नृपांतिकं / / खगृहाणां सुमित्रस्य / निवेद्य चरितं जगौ॥ 60 // | अर्थ-आ प्रमाणे बनवाथी सर्वे महाजने एकत्र यइ राजा पासे जई पोताना घरनुं अने सुमित्रनुं चरित्र निवेदन करीने कयु के| राजन् महाजनेनात्र / कार्यं चेद्भवतां तदा // निवार्यतां कुमारस्य / लीलाचंक्रमणं पुरे // 1 // ___ अर्थ-हे राजन् ! जो तमारे महाजन साथे कार्य होय तो कुमारने लीलावडे फरतो बंध करो. // 61 // तमेवावसरं प्राप्य / संग्रामाद्याः पितुः पुरः॥ शत्रुकल्पाः सुमित्रस्य / मिथ्यादोषान् बभाषिरे // 2 // | अर्थ-ते वखते अवसर पामोने संग्राम विगेरे वीजा राजपुत्रोए पण पितानी समक्ष सुमित्रना शत्रु जेवा थइने तेनी उपर - मिथ्यादोषनुं निरुपण कर्यु // 62 // . श्रुत्वा महाजनस्योक्तं / कुमाराणां तथैव च // पूर्वमेवाप्रियत्वाच्च / चुकोपास्मै नृपो भृशं // 63 // अर्थ-आ प्रमाणे महाजननी तेमज पुत्रोनी वात सांभळीने प्रथमथीज ते पुत्र अप्रिय होवाथी राजा तेनी उपर अत्यंत | DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD GODDDDDDRDEREOGOD GODDE // 13 // PP. Ac Gunratnasur MS Jun Gun Aaradha Trust

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