Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 104
________________ व राजारक्षकपुत्राभ्यां / प्रधानव्यवहारिजो // हतो खड्गेन लोभात्तो। नियेतेस्म विषानतः // 10 // | अर्थ-ते स्वर्णपुरुषना लोभथी राजा अने आरक्षकना पुत्र बीजा वे मित्रने शस्त्रवडे हण्या अने ते वे जणा विषमिश्रित अन्न | नखावाथी मरण पाम्या. // 10 // न व्यंतरोऽपि जहर्षेति / वैरनिर्यातनं छलात् // मयाकारीति संप्रोच्य / चारणश्रमणो गतो॥१॥ न अर्थ-व्यंतर पोताना वैरनो धार्या प्रमाणे बदलो मळवाथी हर्ष पाम्यो अने ‘में बराबर छळवडे बदलो लीधो' एम तेणे मान्यु.' | आ प्रमाणे कहीने ते मुनिओ त्यांथी आगळ चाल्या गया. // 1 // | एवं लोभांधला जीवाः / संतोषांजनवर्जिताः // सहते भवकांतारे / कष्टान्येतेऽनिशं भृशं // 2 // ___ अर्थ-ए प्रमाणे लोभथी अंध बनेला अने संतोषरूपी अंजनथी रहित जीवो भवरूपी महाअरण्यमां हमेशां अत्यंत कष्टोने न सहन करे छे. // 2 // न तथा च येन केनापि / समं वैरं कृतं नृप / भवांतरे महदुःख-दायकं जायतेंगिनां // 3 // ॥इति तृष्णायां राजमंत्रिश्रेष्टितलारक्षकुमाराणां कथा समाप्ता // अर्थ-तेथी हे राजन् ! करेल वेर कोइपण प्रकारे अन्य भवमां पण माणीओने अत्यंत पीडाकारी थाय छे.' / / 3 // तृष्णास्पृहा-लोभ उपर राजकुमार, मंत्रीपुत्र, श्रेष्ठीपुत्र अने कोटवाळना पुत्रनी कथा संपूर्ण. DODOODDOG DOODOODOO ODDDDI P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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