Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 116 // DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDO अशुश्रूषितवपुष / वनस्थमिव दंतिनं // प्रेक्ष्यमाणनसाजालं / सवल्लीकमिव द्रुमं / / 66 // | अर्थ-तेवामां बीलकुलं सुश्रूषा कर्या विनाना देहवाळा, वनमा रहेता हाथीनी जेवा, वेलडीवाला वृक्षनी जेम जेना शरीरनी नसो देखाय छे तेवा, // 66 // तपोभिर्दीष्यमानांग-मादित्यमिव तेजसा.॥सुव्यक्तपार्श्वकं क्षेत्र-मिव कृष्टभुवस्तलं // 67 // . अर्थ-प्रतापवडे सूर्यनी जेम तपना प्रभावथी कांतियुक्त अंगोवाला, खेडेला खेतरनी भूमिनी जेम जेना बने पडखां प्रत्यक्ष खाडावाला देखाय छे तेवा // 67 // कंचिद्यतीश्वरं तत्र / मासक्षपणपारणे // समागतं मूर्तिमंत-मिव पुण्यं व्यलोकत // 68 // .. a अर्थ-कोइ मुनिराजने मासखमणना पारणाने माटे आवेला जाणे साक्षात् पुण्यनी मूर्ति समान होय तेवा तेमणे जोया.६८॥ अभ्युत्थाय विशुद्धात्मा। शुद्धानात्स्त्रीसमन्वितः॥ तं मुनि कारयामास / मासक्षपणपारणं // 69 // ___ अर्थ-विशुद्ध आत्मपरिणतिवाळा तेणे उठीने स्त्री सहित विशुद्ध अन्नपानना दानथी ते महामुनिने मासखमणर्नु पारकराव्यु. जज्ञिरेऽवसरे तस्मिन् / पंचदिव्यानि तत्र च // पंचमी कथयंतीव | पात्रदानात्तयोर्गतिं // 7 // SODEODOORDEEDEDGEOGODEE मोक्ष गति प्राप्त थाय छे. / / 70 // ... सोमाद्याः सुहृदस्तत्र / समागत्य निरीक्ष्य च // तावदमोदयंस्ताभ्यां / मुनिं कारितपारणं // 71 // // 16 // PP Ac Gunratnaguri M.S Jun Gun Aaradhak Trust

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