Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ चरित्रम् // 2 // सुमित्र / ईदृक्पूर्वभवामृतं / स्वरूपं सकलं निजं // जज्ञे जातिस्मृतिस्तेषां / श्रुत्वा केवलिनो मुखात् // 82 // H ' अर्थ-आ प्रमाणे केवलीना मुखेथी पूर्वभव संबंधी पोतानो अनुभवेलो सर्व वृत्तांत सांभळबाथी तेने जातिस्मरण ज्ञान थयु. 82 / // 119 // विज्ञाय स्वचरित्रं तौ। यथा केवलिभाषितं // जातो संसारभीतांतः-करणो चरणोद्यतो // 83 // ___ अर्थ-ते ज्ञानवडे जेवू केवलीए कह्यु हतुं तेवू पोतानुं सर्व वृत्तांत यथास्थित जाणीने संसारथी भय पामेला अंतःकरणवाळा बने राजा-राणी चारित्र लेवाने उद्युक्त थया // 83 // तावूचतुःप्रभो कृत्वा / सौवराज्यस्य चिंतनं // आवां दीक्षां गृहीष्यावः। सत्वरं भवदंतिके // 84 // - अर्थ-तेमणे गुरुमहाराजने कह्यु के-'हे प्रभु! अमे राज्यसंबंधी घटित व्यवस्था करीने सत्वर आपनी पासे आवी दीक्षा ग्रहण कर .' / / 84 // न कार्यः प्रतिबंधो भो। इत्युक्त गुरुणाथ तो॥ नवागातां गृहं सोवं / राज्यचिंता च चक्रतुः // 85 // अर्थ-गुरुए का के-हे महानुभाव ! शुभ कार्यमा प्रतिबंध (विलंब) न करवो.' गुरुमहाराजने नमीने तेओ पोताने स्थाने आव्या अने राज्यनी योग्य व्यवस्था करी. // 85 / / ततश्चतुर्विध संघं / चतुर्गतिनिषेधकं // प्रपूज्यापूर्य दीनादि-जनान् धनसमुच्चयैः // 86 // ...अर्थ-पछी चार गतिने दूर करनार चतुर्विध संघनी यथायोग्य सेवा करीने, दीनजनोना वांछितने धनना समुच्चयवढे पूर्ण ।.करीने / / 86. // . . . // 119 / / PP A Gunnatasur MS

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