Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Harshkunjar Upadhyay
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 120 // राज्ये निवेश्य तनय-मिंद्रदत्ताभिधं बलात् // केवलिनोंतिके तस्य / व्रतं जगृहतुश्च तौ॥ 87 // अर्थ-पोताना पुत्र इंद्रदत्तने आग्रहपूर्वक राज्ये स्थापन करीने बत ग्रहण करवा माटे केवली भगवंत पासे मोटा महोत्सवपूर्वक | आव्या अने. चारित्र ग्रहण कयु.॥ 87 // सुरसीधरसुत्राम-सागरैरपि संयमः॥ जगृहेऽन्यैरपि घनैः / सम्यक्त्ववतकादिकं // 88 // ___ अर्थ-सूर, सीधर सूत्राम अने सागरे पण चारित्र ग्रहण कर्यु. बीजा पण घणा मनुष्योए सम्यक्त्व अने व्रतादिक ग्रहण कर्या.८८ कतिचिद्वासरांस्तत्र / स्थित्वान्यत्र महीतले // विजहार गुरुः सर्व-साधुभिस्तु समन्वितः॥ 8 // अर्थ-पछी केटलाक दिवस त्यां रहीने केवली भगवंते बधा साधुओनी साथे त्यांथी विहार कॉ. / / 89 // तप्त्वा सुरादयस्तोत्रं / तपो गत्वा सुरालयं // महाविदेहे सत्क्षेत्रे / सिद्धिमापुरकर्मकाः // 9 // ____ अर्थ-सूरादिक चार मित्रो तीव्र तप तपीने स्वर्गे गया. तेओ महाविदेह क्षेत्रमा मनुष्य थइने कर्ममात्रनो क्षय करी सिद्धिपदने पामशे. // 9 // शिक्षयंती द्विधा शिक्षा | तो द्वावपि विजतुः॥ सार्धं श्रीगुरुणा नित्यं / तप्यमानो तपांसि च // 91 // अर्थ- हवे राजा-राणी बने श्री गुरुमहाराजनी पासेथी बने प्रकारनी शिक्षाने ग्रहण कस्ता सता तेमनी साथेज विहार करवा लाग्या अने अनेक प्रकारना तपो तपवा लाग्या. // 91 // . // 120 // Jun Gun Aaradhak Trust PP Ac Gunratasun MS

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