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________________ पनि भारणं Aru ide MATHSSCSeS // श्रीजिनाय नमः // होत Serving Jin Shasan 048900 gyanmandin@kobatirth.org (गूर्जरभाषान्तरसहित) // श्रीसुमित्रचरित्रम् // ( कर्ता-श्रीहर्षकुंजर उपाध्यायः) ___-: छापी प्रसिद्ध करनार :विठलजी हीरालाल हंसराज-(जामनगरवाळा) विक्रम सं. 1992 किं. रु. 3-0-0 POR सनी वीर सं. 2462 सने 1936 L. AMER G ENakeRESO2864Talk GANIK PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ ki. ToF // श्री जिनाय नमः // सुमित्र चरित्रम // 1 // com (गूर्जरभाषांतर सहितं) ॥अथ श्रीसुमित्रचरित्रं प्रारभ्यते // (कर्ता-श्रीहर्षकुंजर उपाध्याय) छापी प्रसिद्ध करनार-विठलजी हीरालाल हंसराज-(जामनगरवाळा) Shree+-c AIR की बहाचार अन बागवमानाचा सश्रीकः सुमनःसेव्यः / साधुशाखः सुरद्रुवत् // पल्लवैः पूरिताशः श्री-पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः // 1 // ___ अर्थ-केवलज्ञानरुपी लक्ष्मीवडे शोभता, अनेक देवोवडे सेवाता, कल्पवृक्षनी जेम अनेक साधुरुप सुंदर शाखाओवाळा तेमज कल्पवृक्षनी जेम पल्लवोवडे भव्यजनोनी आशाने पूरवावाळा श्रीपार्श्वनाथप्रभु तमारा कल्याणने माटे थाओ? // 1 // मनोगतफलश्रेणीः। श्रीयुगादीश्वरादयः / वर्तमानास्तथान्येऽपि / कुर्वतु श्रीजिनेश्वराः॥२॥ | अर्थ-श्रीयुगादीश्वर विगेरे वर्तमान चोवीशीना तथा अन्य अतीत, अनागत चोवीशीना अने विहरमान जिनेश्वरो मनवांछित | फळनी श्रेणिने आपो-करो? // 2 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र प्रसादमकरदेना-पूरितं सुविकस्वरं // भेजे भ्रमरवन्नित्यं / श्रीगुरुक्रमपंकजं // 3 // अर्थ-कृपारुपी सुगंधवडे प्रपूरित अने अत्यंत विकस्वर एवा गुरुमहाराजना चरणकमळने हुँ भ्रमरनी जेम सेQ छ // 3 // a नौमि जैनमुखांभोज-राजहंसी सरस्वतीं // यस्याः प्रसादतो रम्यं / कवित्वं कुरुते कविः॥४॥ अर्थ-जिनेश्वरना मुखरुप कमळमां राजहंसी जेवी सरस्वती के जेना प्रसादथी कविओ सारी कविताने करे छे तेने पण हुं नमुं छु. मंदामंदी भिया प्रीत्या / कुटिलप्रगुणाकृती // समं सौवकृते वंदे / तावसजनसजनौ // 5 // अर्थ-मंद अने अमंद एवा अर्थात् मुर्ख अने सुज्ञ एवा तेमज कुटिल अने सरल प्रकृतिवाळा दुर्जन अने सज्जनोने भयथी अने प्रीतिथी स्वस्थता (शांति)ने माटे समानभावे हुं प्रणाम करूं छु.॥५॥ एवं कृतनमस्कारो | धर्माख्यानमयं कियत् // भव्यजंतुप्रबोधाय / सारं शास्त्रं तनोम्यहं // 6 // P अर्थ-आ प्रमाणे नमस्कार करीने हुं भव्य प्राणीओना बोधने (ज्ञानने) माटे आ धर्माख्यानमय उत्तम चरित्रने रचवा इच्छु छु. (रचुंछु) धर्मः शर्मलतोल्लासी। धर्मः संपद्रुमांबुदः॥ धर्मः श्रेयो धराधारो / धर्मः स्वर्गापवर्गदः॥७॥ ___ अर्थ-धर्म सुखरुपी लताओने उल्लसायमान करनार छे, धर्म संपत्तिरुपी वृक्षोने मेघसमान छे, धर्म श्रेयकारी छे, धरा (पृथ्वी) नो आधारभूत छे अने धर्म स्वर्ग तेमज मोक्षने आपवावाळो छे // 7 // अतो धमोऽनिशं सेव्यः / प्राणिभिः सौख्यदः सदा // दानशीलतपोभाव-भेदात्त्वेष चतुर्विधः // 8 // P.P.Ar Gunnasur MS clamati
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________________ अर्थ-तेथी पाणीओए निरंतर मुखने आपवावाळो ए धर्म अवश्य सेवन करवा योग्य छे. ते धर्म दान, शील, तप ने भावएम चार प्रकारनो छे // 8 // तत्रापि प्रथमं दान-मुक्तं तीर्थकरैर्वरैः // येनेह सफलं जन्म / जायते गृहमेधिनां // 9 // अर्थ-तेमां पण तीर्थकरोए प्रथम दानधर्म कहेलो छे के जे धर्मना आराधनथी गृहस्थनो मनुष्य जन्म सफळ थाय छे // 9 // नसत्पात्रेभ्यः पुनर्दत्त-माहारादिकमिच्छया // संपत्करं भवेऽमुत्र / विपन्निर्नाशकं भवेत् // 10 // ____अर्थ-भावपूर्वक सत्पात्र प्रत्ये आपेलं आहारादिकनुं दान आ भवमां संपत्तिने आपनारुं अने परभवमा सर्व प्रकारनी विपत्तिनो नाश करनारुं थाय छे // 10 // मध्याहे च यथा साधो-भक्त्या दत्तं विशालया। सुमित्रस्य समित्रस्य / सकलत्रस्य चाभवत् // 11 __ अर्थ-के जेवी रीते मध्यान्हे विशाळ भक्तिपूर्वक साधुने आपेलुं अन्नदान मित्र अने स्त्री सहित सुमित्रकुमारने महाफळनु आपनार थयेल छे // 11 // तथाहि सुंदरो जंब-मायरच्छत्रमंडितः // जंवनामास्त्यसौ रम्यो / द्वीपराजो महीतले // 12 // ___अर्थ-आ पृथ्वीतळ उपर जंबृवृक्षरुप मयूरछत्रथी मंडित जंबू नामनो सर्वद्वीपना मध्यमां मुशोभित द्वीप छे // 12 // - सर्वे द्वीपसमुद्रा यं / सीमाला इव सेवितुं // यञ्चतुर्दिक्षु वर्तते / स्वगुणैर्निर्जिता इव // 13 // DDDDDDDDDDDDDDDDननननननल P.P.Ac Guntatrasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ / . I अर्थ-बाकीना सर्वे द्वीपो अने समुद्रो, पोताना गुणोबडे जंबुद्वीपे जाणे जीती लीधा न होय तेम फरता तेनी चारे दिशाए सुमित्र | सेवाने माटे आवेला सोमाडाना राजाओनी जेम फरी वळेला छे. // 13 // को वेत्ति लक्षणं तस्य / लक्षयोजनमानभृत् / सप्तवर्षोऽपि षड्वर्ष-धरो यः प्रोच्यते बुधैः // 14 // // 4 // | अर्थ-तेना लक्षणने कोण जाणी शके के जे जंबूद्वीप लाख योजनना विस्तारवाळो अने सात वर्ष (क्षेत्र)वाळो होवा छतां पण छ वर्षधरवाळो छ एम पंडितो कहे छे. अर्थात् ते जंबुद्वीपमा सात क्षेत्रो छे अने तेनी मध्यमध्यमा रहेला छ पर्वतो (वर्षधरो) छ।१४। तदंतर्भरतक्षेत्र-मनंतगुणशस्यदं // यत्रोप्तं वित्तबीजं तु | सत्पात्राकरभृमिषु // 15 // ___ अर्थ-ते द्वीपमा दक्षिण बाजुए प्रथम भरत नामर्नु क्षेत्र अनंत गुणोना स्थानरुप छे के ज्यां सत्पात्ररुप शुद्धभूमिमां वावेलु वित्तरुप बोज अनंतगुणा फळने आपनारुं थाय छे // 15 // तदंतरंगदेशस्य / भूमिस्त्रीतिलकोपमा // अस्ति चंपापुरो रम्या / सन्मुक्ताफलमालिनी॥१६॥ ___ अर्थ-ते भरतक्षेत्रमा अंग नामना देशमा पृथ्वीरुपी स्त्रोना ललाटमां तिलक समान अने मुशोभित मुक्ताफळवडे अलंकृत चंपा नामनी रमणिक नगरी छे. // 16 // धनधान्याढ्यलोकानां / शरीरस्य गृहस्य च // सश्रीकत्वं समीक्ष्याहुः। किं स्वगों भुवमागतः // 17 // ___ अर्थ-ते नगरीमा रहेला धनधान्ययुक्त लोकोना शरीरना अने गृहोना जैश्चर्यपणाने जोइने शुं स्वर्ग भूमिपर आवेल छे ? | एम सज्जनो कल्पना करे छे. // 17 // PP Ac Gunatnasuri M.S. [DRODDOG DOGaao DWED OTHE // 4 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 5 // DOORDED ODDDDDDDDDDDDD त्रासतापग्रहा यस्यां / मणिस्वर्णगुणेषु च // दंडश्छत्रेषु वास्तव्ये / प्रायेण न पुनर्जने // 18 // अर्थ-ते नगरीमा लास, ताप ने ग्रहण तो मणि, सुवर्ण अने गुणोने विषेज छे अने दंड छत्रने विषेज छे त्यां रहेनारा लोकोमा नथी. अर्थात् त्रास एटले विधावू ते मणिनेज थाय छे, सोनानेज तपावाय छे अने गुणोनेज ग्रहण करवामां आवे छे. // 18 // नीलमण्यंगणोदभूत-कांतिपरपयःस्थिताः // यत्राब्जिन्य इवाभांति / स्त्रियः स्मरमुखांबुजाः // 19 // ___अर्थ-त्यां रहेली विकस्वर मुखकमळवाळी स्वीओ नीलमणिना आंगणामां उगेली अने कांतिना समूहरुप पय (पाणी)मां न रहेली कमलिनी जेवी शोभे छे. // 19 // सुकुमारकरः सर्व-जनतारातिवल्लभः॥ निःकलंकोऽभवत्तत्र / राजा धवलवाहनः // 20 // - अर्थ-ते नगरमा सुकुमार करवाळो अने सर्वजनोने तेमज शत्रुओने पण वल्लभ एवो निष्कलंक धवलवाहम नामनो राजा छे. दाक्षिण्यौदार्यगांभीर्य-सद्धैर्यप्रमुखा गुणाः // यस्यान्योन्यं व्यरातो-पवनस्येव पादपाः // 21 // अर्थ-उपवनमा वृक्षोनी जेम ते राजामां दाक्षिण्य, औदार्य, गांभीर्य अने सदैर्य विगेरे गुणो अन्योन्य अवलंबीने रहेला छे.॥२१॥ जजुभविंशतिस्तस्य / संग्रामप्रमुखाः सुताः॥ कैलाशप्रतिबिंबेने-श्वरा द्विगुणिता इव / / 22 // ___अर्थ-ते राजाने संग्राम प्रमुख बावीश पुत्रो कैलाशमां प्रतिबिंब पडवाथी जाणे इश्वरना (अग्यार रुद्रना) द्विगुणित रुप | Hथयेला होय तेवा थयेला छे. // 22 // // 5 // PP.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम कल्पद्रमस्य शाखाव-जज्ञिरेऽनेकशः प्रियाः॥ एका प्रीतिमतीनाम्नी। सन्मानरहिताभवत् // 23 // . ___ अर्थ-ते राजाने कल्पवृक्षनी शाखाओनी जेम अनेक राणीओ छे, तेमां एक प्रीतिमती नामनी राणी राजाना सन्मान विनानी (अणमानेती) छे. / / 23 // तस्याः कुक्षौ भाग्ययोगा-पुत्रपात्रमवातरत् // कोऽपि गर्भतया जीवः / शुक्तो मौक्तिकवत्तदा // ___ अर्थ-भाग्ययोगथी तेनी कुतिमां छीपमा मोतीनी जेम कोइ उत्तम जीव गर्भपणे आवीने उपज्यो. // 24 // पुत्ररत्नं सुवेलायां / पूर्वाशेव दिवाकरं // प्राप्ते काले प्रसूता सा / सच्चक्रप्रमदप्रदं // 25 // ____ अर्थ-मस्थिति पूर्ण थये पूर्व दिशा जेम सूर्यने जन्म आपे तेम शुभ मुहूर्चे (ग्रह-नक्षत्रादिना सारा योगवाळा समये) सर्व आनंद आपे एवा एक पुत्रने ते राणीए जन्म आप्यो. // 25 // मातुस्तस्याप्रियत्वेन / बालकस्यात्तजन्मनः॥ जन्मोत्सवस्य का वार्ता / चक्रे नामापि नो नृपः॥ 26 // अर्थ-ते पुत्रनी माताना अभियपणाथी जन्म पामेला ते वाळकनो जन्मोत्सव तो शेनोज थाय परंतु तेनुं नाम पण राजाए पाडयु नहीं सूरसीधरसुत्राम-सागरास्तदिनेऽभवन् // सचिवारक्षकपरो-हितवार्धकिनंदनाः // 27 // अर्थ-तेज दिवसे सचिव (मंत्री), आरक्षक (कोटवाळ ), पुरोहित अने वार्धकी (बांधकामखाताना उपरी) ने पण सूर, II सीधर, सुत्राम ने सागर नामना पुत्रो थया. // 27 // ORGO बनबEDEREDDDDDDDED DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDOOT PP A. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् रेजे राजकुमारोऽसौ / तैश्चतुर्भिर्वृतः सदा // दानशीलतपोभावै-मूतों धर्म इवापरः // 28 // al अर्थ-ते चार कुमारोनी साथे सदा परवरेलो राजकुमार दान, शील, तप ने भावथी परवरेलो पांचमो साक्षात् धर्मज होय एवो देखातो हतो // 28 // | बाल्ये मित्रैः समं क्रीडन् / सस्नेहौधवोपमैः॥ स यथार्थाभिधश्चके / सुमित्र इति नागरैः // 29 // ____ अर्थ-बाल्यावस्थामा स्नेहवाळा अने बांधवनी उपमावाळा ते मित्रोनी संगाते क्रीडा करता ते राजकुमारनुं लोकोए यथार्थ | | सुमित्र एवं नाम पाडयु. // 29 // B कलार्थमन्यदा माता / कलाचार्यस्य तं ददो / अन्येऽपि नृपजास्तत्र / न्यस्ताः संति पुरैव हि // 30 // __अर्थ-अन्यदा माताए ते सुमित्रने कळा मेळववा माटे कळाचार्यने सोंप्यो, ते वखते प्रथम बीजा राजपुत्रो पण त्यां अभ्यास माटे मूकायेला हता. // 30 // ते सौख्यलालिता मत्ता / महादुर्ललिताः सदा ॥न कुर्वति कलाभ्यास / स्वेच्छाचारविहारिणः // 31 // ___अर्थ-ते राजपुत्रो मुखमा लालित थयेला, मदोन्मत्त, महादुर्ललित अने स्वेच्छाचारी होवाथी कळाभ्यास करता न हता.॥३१॥ किंचिदंतमाचार्य-सन्मुखं ताडयंत्यमी // न सहते वचोमात्रं / दुर्जया हि यतो मदाः // 32 // ___ अर्थ-तेने आचार्य कांइ शिखामण तरीके कहेता तो ते तरतज सामु बोलता हता. मदवाळा अने दुर्जय एवा ते वचन मात्रने पण सहन करता नहोता. // 32 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम् गत्वावासे जगुस्ते वै / मातृभ्यो निजताडनं // चुक्रुशुश्च तमंत्यंतं / कलाचार्य क्रुधाकुलाः // 33 // अर्थ-वळी ते राजपुत्रो पोताना आवासे जइने पोतानी माताओने आचार्थे ताडन कर्यानुं कहेता हता जेथी क्रोधाकुळ एवी ते माताओ कलाचार्यनो उपर अत्यंत.आक्रोश करती हती. // 33 // a उपेक्षते गुरुर्नित्यं / तानुन्मादवशंवदान् // छुरिका कांचनस्यापि / क्षिप्यते किं निजोदरे // 34 // . : अर्थ-आ प्रमाणे थवाथी उन्मादने वश थयेला ते राजपुत्रोनी गुरु निरंतर उपेक्षाज करता हता; कारण के सोनानी छरो पण कई पोताना पेंटमां मराती नथीं. // 34 // कलाचार्य जगौ माता / सुमित्रस्य कृते भृशं // स्वपुत्रवत्त्वयाध्येयो / यथा वेत्त्यखिलाः कलाः // 35 // ___ अर्थ-सुमित्रनी माता कलाचार्यने सुमित्रने माटे आग्रहपूर्वक कहेती हती के-तमारे पोताना पुत्रनी जेम सुमित्रने अभ्यास न कराववो के जेथी ते सर्व कळाने सारी रीते जाणी समजी शके. // 35 // स विनीतः कलाभ्यासं / प्रचक्रे गुरुताडितः // जायते हि कलावृध्ध्धै / विनयो मुख्यकारणं // 36 // I अर्थ-गुरु ताइन करे तो पण ते विनीत सहन करीने कलाभ्यास करतो हतो, कारण के गुरुनु ताडन कळानी वृद्धि माटे थाय | छे एम समजतो इतो. एन मुख्य कारण एनामां विनय गुण हतो ते इतुं. // 36 // . ....: ' सूरादयोऽपि. चत्वार-स्तस्यैव गुरुसंनिधौ // पठंतिम प्रयत्नेन / कलाः सर्वाः कुलोचिताः // 37 // lala नबननन Dog BODOD Daagaana DRDERलाननननन // 8 // PP.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ CTEDROOOD DOIDDED O __ अर्थ-मंत्री विगेरेना सूरआदि पुत्रो पण तेज गुरुनी पासे पोतपोताना कुळने उचित सर्व कळाओ मयनवडे शीखत्ता हता. स्वल्पेनापि हि कालेन / पंचभिस्तैरनुक्रमात् // शस्त्रशास्त्रादिका रम्याः। शिक्षिताः सकलाः कलाः // 38 // - अर्थ-ए प्रमाणे अभ्यास करता थोडा काळमांज ते पांचे विद्यार्थीओ अनुक्रमे शस्त्र-शास्त्रादिनी रम्य एवी सर्व कळाओ शीख्या. |तं कुमारं चतुर्भिस्तैः / समानैः सखिभियुतं / / उदारचरितं चारु-रूपलावण्यशालिनं // 39 // - अर्थ-चार समान मित्रोथी परवरेला ते उदार चरित्रवाळा अने रुपलावण्यशाली // 39 // प्रविलोक्य जनाः सर्वे / प्रशंसंति यथा यथा // द्वाविंशतिः कुमारास्ते / दंदाते तथा तथा // 40 // ____ अर्थ-एवा कुमारने जोइने सर्वे जनो जेम जेम तेनी प्रशंसा करता हता तेम तेम ते सांभळीने बावीश राजकुमारो पोताना मनमा खेद धारण करता हता. // 40 // मातास्य चिंतयत्येवं / मा भूयाद्विघ्नमस्य वै / / कश्चित्सिद्धः समायात-स्तस्मिन्नवसरे पुरे // 41 // . ____ अर्थ-ममित्रनी माता हमेशां विचारती हती के-'मारापुनने कोइ.पकारनुं विघ्न न थाओ.' एवामां ते नगरमां कोई सिद्ध पुरुष आव्या. H-41 // स चाकार्यानया पृष्टः / वपुत्रहितकांक्षया // रक्षाविधानं किंचिद्भो / वेत्सि नो वेति सोऽब्रवीत् // 42 // ... अर्थ-तेने बोलावीने तेणे पोताना पुत्रना हितनी इच्छाथी ' तमे काइ रक्षाविधान जाणो छो के नहीं ?' एम पूज्यु. त्यारे | तेणे का के-॥४२ N EL Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ सुमित्र // 10 // | मयेदं ज्ञायते सम्य-क्तर्हि त्वं कुरु बांधव // तादृशं येन मत्पुत्रो / नापद्भिः पीड्यते कचित् // 43 // चरित्रम् ___अर्थ-'हु जाणुं छु' राणीए का के-'तो हे बांधव ! तमे एबुं रक्षाविधान करी आपो के जेथी मारो पुत्र कोइपण वखते - आपत्तिथी पीडाय नही. // 43 // जन्मपत्री सुमित्रस्य / समानाय्य विलोक्य च // भाविनीरापदो मत्वा / चक्रे रक्षाविधानकं // 44 // . अर्थ-पछी ते सिद्धपुरुषे सुमित्रनी जन्मपत्रिका मगावी जोइने तेने भविष्यमां अनेक आपत्तिवाळो जाणीने तेनु रक्षाविधान | करी आप्यु // 44 // दानसन्मानसंतुष्टो / दत्वा रक्षाविधि जगौ // कृतकर्मानुभावेना-गमिन्यः संत्यनेकशः // 45 // ___ अर्थ-पछी दानमानादियी संतुष्ट थयेला ते सिद्धपुरुषे रक्षाविधान आपता कयु के-" तमारा पुत्रने पूर्वकृत कर्मना प्रभावी अनेक प्रकारनी // 45 // आपदोऽमुष्य तेनेदं / सामीप्ये यत्नतोऽनिशं॥ रक्षणीयमतो नासा-वापदभ्यो भयमाप्स्यते ॥४६॥युग्म। अर्थ-आपत्तिओ आवशे, तेथी तेणे आ रक्षाविधान कायम पोतानी पासे यत्नपूर्वक जाळवीने राखवू, जेथी तेने कोइपण आपत्तिथी भय प्राप्त थशे नहीं. // 46 // गते हृते विनष्टे वा-मुष्मिन् रक्षाविधी समं // लगिष्यंत्यापदो ह्यस्मिन् / यथा गावो जलाशये // 47 // ___अर्थ-आ रक्षाविधान जशे, खोवाशे के नाश पामशे तो तेने कादवबाळा जळाशयमा खुची जवाथी गायनी जेम अनेक // 10 // @GOOOOOOOOOOOOOOODन PPA Gunratrasuri MS Jun Gun Aarndhak Trusi
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________________ सुमित्र | चरित्रम् // 11 // आपत्तिओ हेरान करशे. किंचासन्ने स्थितेऽवश्यं / कुमारस्तव नित्यशः॥ सुरासुरनरेंद्राणा-मजेयोऽस्मिन् भविष्यति // 48 // - अर्थ-बाकी आ रक्षाविधान पासे राख्वाथी तारो कुमार अवश्य निरंतर सुरासुरो तेमज नरेंद्रोथी पण अजेय थशे. / / 48 // | इत्थमुक्त्वा गते सिद्धे / खड्गमुष्टो निवेश्य तत् // पुत्रप्रत्यवदन्माता / हे वत्स शृणु मद्वचः // 49 // ___ अर्थ-आ प्रमाणे कहीने ते सिद्धपुरुष गये सते खड्गमी मुठमां ते रक्षाविधान गोपवीने माताए पुत्र प्रत्ये कड्यु के-'हे वत्स! मारुं वचन सांभळ, // 49 // ... तवासिमुष्टिमध्येऽदो। मया रक्षाविधानकं // सिद्धदत्तं प्रभावाढथं / क्षिप्तमस्ति महाद्भुतं // 5 // __- अर्थ-आ तारी तलवारनी मुठमां में सिद्धनुं करी आपेलु महा प्रभाववाळु महा अद्भुत रक्षाविधान गोपवेलं छे. // 50 // कः प्रभावोऽस्य पृष्टे सा / कुमारेणेति सादरं // सर्वमाख्याय सिद्धोक्तं / पुत्रप्रति पुनर्जगौ // 51 // . अर्थ-एटले पुत्रे आदरपूर्वक माताने पूछयु के-तेनो प्रभाव शुं छे ?' एटले तेणे सिद्धना कह्या प्रमाणे सर्व वात कही | अने पछी कड्यु के-॥५१॥ रक्षणीयमतो यत्ना-खड्गमुष्टिस्थमद्भुतं // न खड्गोऽपि त्वया हेयो / दूरं क्षणमपि खतः // 52 // 1. अर्थ-आटला माटे मुठमा राखेलं आ अद्भुत रक्षाविधान तारे यत्नपूर्वक जाळवq. आ खड्ग तारे क्षणमात्र पण ताराथी छेटुं राखवू नहीं; कायम पासेज राखवु. / / 52 / / DDDDDDDDDDDDDDDDDDROID PP Ae Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ C 12 // सुमित्र I हारिणी सर्वदुःखानां / पीयूषस्येव सारणिं // मातुर्वाणीमिति श्रुत्वा / स मेने सद्गुरूक्तवत् // 53 // | . अर्थ-आवी सर्व दुःखोने हरनारी अने अमृतना निर्झरणा जेवी मातानी वाणी सांभळीने तेणे ते वात सदगुरुना कहेला वचनोनो जेम अंगीकार करी // 53 // बाल्यमलंध्य स प्रोच्चै-रारुढो यौवनं नभः॥ चेतःसरसि नो कस्य / हंसवत्प्रतिबिंबितः॥ 54 // .. | अर्थ-सुमित्रकुमार बाल्यवयर्नु उल्लंघन करीने अनुक्रमे यौवनरूपी आकाशमां आरुढ थयो. ते वखते (तेना) चित्तरुप तळाव| ळीमां हंसनी जेम कोण प्रतिबिंबीत यतुं नथी. / / 54 / / सुखेनैव सुहृद्भिस्तैः / सूराथैः संयुतः पुरे // स्वेच्छाचारितथा स्थाने / स्थाने संचरति ह्यसौ // 55 // E HODM DOG DOGoogle Boo IDIODOOOOOGGEHDOODHD सशीलो भाग्यसोभाग्य-श्रिया सेवितसद्वपुः // रूपेण जितकामोऽपि / निर्विकारतया तदा // 56 // | अर्थ-ते बखते सुशील (सदाचारी), भाग्य सौभाग्यरुष लक्ष्मोबडे सेवाता सुंदर शरीरवाळो, रुपे करीने कामदेवने पण जीतनारो ते कुमार निर्विकारीपणे फरतो हतो. // 56 // .. ... यस्मिन् यस्मिन् पुरों मागें / कुमारः संचरत्यसौ // तंत्र तत्र स्वकार्याणि / त्यक्त्वा तदपमोहितैः // 57 // | अर्थ-परंतु नगरना जे जे मार्ग ते कुमार फरतो हतो ते ते मार्गे पोतपोताना कार्यो तजी दइने तेना रुपयी मोहित थइ,॥५७॥ P.P. Ac Gunrainasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust askedindia
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________________ चरित्रम् 13 // समित्रगतलजभयैः स्वस्व-गृहेभ्यः कामिनीजनैः // शीघ्रमेव समागत्य / सविकारं विलोक्यते // 58 // न अर्थ-लज्जा तजी दइ अनेक कामिनीओ पोताने घरेथी नीकळी शीघ्र तेनी पासे आवीने सविकार दृष्टिथी तेने जोती हती. तस्मिन्नवसरे पश्चाद्वासरेऽपि हि तस्करैः // सर्वस्वं हीयते शून्य-हम्येभ्यो धनलालसैः॥ 59 // / | अर्थ-एटले ते लाग जोइने धननी लालसाबाळा चोर लोको ते ते शून्य गृहोमांथी सर्वस्व चोरी जता हता. // 59 // महाजनस्तु सर्वोऽपि / मिलित्वागान्नृपांतिकं / / खगृहाणां सुमित्रस्य / निवेद्य चरितं जगौ॥ 60 // | अर्थ-आ प्रमाणे बनवाथी सर्वे महाजने एकत्र यइ राजा पासे जई पोताना घरनुं अने सुमित्रनुं चरित्र निवेदन करीने कयु के| राजन् महाजनेनात्र / कार्यं चेद्भवतां तदा // निवार्यतां कुमारस्य / लीलाचंक्रमणं पुरे // 1 // ___ अर्थ-हे राजन् ! जो तमारे महाजन साथे कार्य होय तो कुमारने लीलावडे फरतो बंध करो. // 61 // तमेवावसरं प्राप्य / संग्रामाद्याः पितुः पुरः॥ शत्रुकल्पाः सुमित्रस्य / मिथ्यादोषान् बभाषिरे // 2 // | अर्थ-ते वखते अवसर पामोने संग्राम विगेरे वीजा राजपुत्रोए पण पितानी समक्ष सुमित्रना शत्रु जेवा थइने तेनी उपर - मिथ्यादोषनुं निरुपण कर्यु // 62 // . श्रुत्वा महाजनस्योक्तं / कुमाराणां तथैव च // पूर्वमेवाप्रियत्वाच्च / चुकोपास्मै नृपो भृशं // 63 // अर्थ-आ प्रमाणे महाजननी तेमज पुत्रोनी वात सांभळीने प्रथमथीज ते पुत्र अप्रिय होवाथी राजा तेनी उपर अत्यंत | DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD GODDDDDDRDEREOGOD GODDE // 13 // PP. Ac Gunratnasur MS Jun Gun Aaradha Trust
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________________ मुमित्र चरित्रम् 14 // कोपायमान थयो. // 63 // - महाजनं विसृज्याथ / क्रोधाध्मातवपुनृपः // सुमित्रं तं समाकार्य / भृकुटीभीषणोऽवदत् // 64 // अर्थ-पछी महाजनने रजा आपीने क्रोधवडे धमधमेला शरीरवाळा राजाए सुमित्रने बोलावी भयंकर भृकुटीवाळा थइने कड्यु के, रे मन्महाजनस्यास्या-निष्टकृद् दुष्टधीनिधे // मद्भूमौ न त्वया स्थेयं / क्षणमात्रमपि क्वचित् // 65 // - अर्थ-हे दुष्टबुद्धिना भंडार! मारा महाजनोर्नु अनिष्ट करनार! तारे क्षणमात्र पण मारी भूमिमां कोई स्थळे रहेंबु मही.।६५। - गृहीत्वा पितुरादेशं / जनन्यै स न्यवेदयत् // श्रुत्वा तद् दुःखिता सापि / बभूवाश्रुमुखी तदा // 66 // ___अर्थ-आ प्रमाणेनो पितानो आदेश मेळवीने कुमार माता पासे आव्यो अने ते हकीकत माताने निवेदन करी, एटले मातापण ते. सांभळीने जेना नेत्रोमां अश्रु आवेल छे तेवी अत्यंत दुःखी थइ. // 66 // समित्रो दुःखितामंबां। ज्ञात्वावादित्किमंबिके // खेदमेवं करोषि त्वं / देह्यादेशं व्रजाम्यहं // 67 // ___ अर्थ-माताने आ प्रमाणे दुःखी थयेली जोइने सुमित्रे कलु के-' हे माता ! तमे शा माटे दुःखी थाओ छो अने खेद करो छो? | मने आज्ञा आपो एटले हुँ देशांतर जाउं. // 67 // माता प्रोवाच हे वत्स / यद्येवं तत्त्वया समं // अहमप्यागमिष्यामि / त्वां विना स्थातुमक्षमा // 68 // अर्थ-माता कहे छे के-'हे वत्स ! जो तुं देशांतर जइश तो हु पण तारी साथे आवीश, केमके हुँ तारा विना अहीं रहेवाने | असमर्थ छु.॥ 68 // HDMORE DHIROGINE // 14 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 1 ममित्र | सुमित्रो जननी प्रोचे / स्थेयमत्रैव हि त्वया // यदन्ये विषमा देशाः / सुकुमारं वपुस्तव // 69 // ___ अर्थ-सुमित्र माताने कहे छे के-' हे माता! तमारे तो अहींज रहेg योग्य छे, कारण के परदेशो विषम होय छे अने तमारुं शरीर अति सुकोमळ छे. // 69 // . | सर्वथैव मया त्याज्यो / देशोऽयं पितुरात्मनः // अन्यथा मारयत्येव / राजा मित्रं न कस्यचित् // 7 // ___अर्थ-मारे तो मारा पितानो आदेश सर्वथा मान्य राखवो पडशे, कारण के तेम न करूं तो राजा मारा प्राण हरे. राज कोइना मित्र होता नथी.॥७॥ आगच्छंती निवायेति / मातरं मधुरोक्तिभिः ॥प्रणम्य परया भक्त्या। प्राप्याशिषमविघ्नदां // 71 // ___ अर्थ-आ प्रमाणे कहीने साथे आववाने इच्छती मातानु मधुर वचनवडे निवारण करी परम भक्तिथो तेने प्रणाम करी, अविघ्नकारी एवी तेनी आशीष मेळवी // 71 // | सूरसीधरसुत्राम-सागरैः सखिभिः सह // खड्गखेटकमादाय / नगर्या निर्ययौ बहिः // 72 / / युग्मं // अर्थ-सूर, सीधर, सुत्राम अने सागर ए चारे मित्रोनी साथे खड्गने सहायकपणे लइने ते नगरनी बहार नीकळ्यो. // 72 // उत्तरां दिशमाश्रित्य / बहुग्रामपुराकुलां / / पश्यन् वसुमतीमेतां / नानाश्चर्यसमन्वितां // 73 // - अर्थ-पछी उत्तर दिशा तरफ चालता घणा गामो अने नगरोवाळी अने अनेक प्रकारना आश्चर्योवाली पृथ्वीने जोतां // 73 // SIDDOOGOOGOOG DOODDE GODDDDDDDDDDDDDDDD BEE // 15 // PP.AC.Gunratnasuri MS. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ ममि DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD आससाद नदीमेकां / काष्टपाषाणवाहिनीं // अतिवेगां सुगंभीरां / दुस्तरां दुर्दशामिव // 74 // ..अर्थ-अनक्रमे काष्ट तेमज. पाषाणने पण खेंची जनारी, अति वेगवाळी, अति गंभीर अने दुःखे तरवा योग्य एक नदी दुर्दशानी जेम तेओनी नजरे पडी. // 74 / / .. . जलांतर्दत्तहक्कश्चिद-दृष्टस्तैस्तत्तटे नरः // ते गत्वा तत्पुरोऽपृच्छन् / भवता दृश्यते किम // 75 // ___ अर्थ-ते बखते त्यां जळनी अंदर जोइ रहेनार कोइक मनुष्यने ते नदीना तट उपर रहेलो तेओए जोयो. एटले तेनी पासे | जइने तेमणे पूंच्यु के-'तुं आमां शुं जुए छे. / / 75 // a सोऽवादीन्मे बलीवदों / मद्गृहाजगृहेऽद्य भोः॥ निशि चौरेण तत्पादं / पश्यन्नस्मि जलांतरे // 76 // . अर्थ-ते बोल्यो के-'मारो बळद आजे रात्रे मारे धेरथी चोरोए हरण करेल छे तेनुं पगलुं हुं जळमां जोउ छु. // 76 // | पुनः पृष्टं कथं मुग्ध / योतदृश्यते पदं / ईदशे चातलस्पर्शे / तेभ्यः श्रुत्वेति सोऽब्रवीत् // 77 // .. म. अर्थ-ते सांभळोने फरीने तेने का के-'हे मुग्ध ! आवा अत्यंत उंडा पाणीमां तेनुं पगलु शी रोते देखी शकाय? | ते बोल्यो के-।। 77 // रे मढाः किं न जानीथ / विद्यामणिमहोषधः // हस्तामलकवन्नित्यं / ज्ञायते भूतलेऽखिलं॥ 7 // . | अर्थ-अरे मूढो! विद्या, मणि ने महौषधिवडे हस्तामलकनी जेम आखी पृथ्वी जोइ शकाय छे. // 78 // OODOOOOOOOOOOOOOOOOबन PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम् सुमित्र तेऽवोचन् सत्यमेवेदं / परमेतत्पदं विभो // दृष्टेरगोचरं केन / दृश्यते हेतुना वद // 79 // - अर्थ-कुमारोए कत्यु के-'ते साचुं छे, परंतु हे समर्थ ! दृष्टिने अगोचर एबुं ते चोरन पगलं आ पाणीमां शी रीते देखी // 17 // शकाय? ते कहे. // 79 // गुरुदत्तास्ति में विद्या / यया षण्मासकावधि // द्विपञ्चतुःपदादीनां / सर्वतः पदमीक्ष्यते // 8 // ___अर्थ-पेलो मनुष्य बोल्यो के-'मारी पासे गुरुनी आपेली विद्या छे के जेना प्रभावथी छ महीना पर्यंत द्विपद-चतुष्पदनुं पगलं सर्वत्र जोइ शकाय छे, / / 80 // | श्रुत्वेति विस्मयस्मेर-लोचनास्ते कुमारकाः // अहो चित्रमहो चित्र-मित्यवोचन् परस्परं // 81 // / ___ अर्थ-आ प्रमाणे सांभळीने विस्मित लोचनवाला ते कुमारो " अहो आश्चर्यकारक, अहो आश्चर्यकारक !" एम माहोमांहे बोलवा लाग्या. // 81 // तदारक्षकपत्रोऽव-सुमित्रप्रति सीधरः // कुमार पृच्छयतामेष / दत्ते विद्यां कथंचन // 8 // al... अर्थ-ते अवसरे कोटवाळना पुत्र सीधरे सुमित्र राजपुत्रने कयु के-'हे कुमार ! कया प्रकारे आ विद्या आपे तेम तमे पूछो. |सुमित्रो विनयेनाम-मपृच्छद्दीयते न वा // कस्मैचिद्वल्गुविधेयं / भवद्भिरुपकारिभिः // 8 // | अर्थ-मुमित्रे मित्रना आग्रहथी विनयपूर्वक पूज्यु के-"आप उपकारीथी आ विद्या कोइनें आपी शकाय तेम छे के नहि ?" IDDEOHDDDDDDDDDDDED LORDIHOODOOOD HERODE // 17 // PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ न चरित्रम् सोऽभ्यधावत्स वृद्धोऽहं / जातस्तेनानिशं हृदि // चिंतयन्नस्मि पात्रं चे-लभे तस्मै ददाम्यतः // 8 // | अर्थ-त्यारे ते बोल्यो के-'हु वृद्ध थयो छु अने तेथी निरंतर हृदयमां विचारुं हुं के जो कोइ सुपात्र मळे तो ते विद्या तेने सुपत करुं, // 84 // | दातव्येयमवश्यं भो / बहुकालं परीक्षिते // अन्यथा नैव दातव्यं / विद्यारत्नं यतः क्वचित् // 85 // _____ अर्थ-परंतु घणा काळ सुधी परीक्षा कर्या बाद हुं जरुर आपुं. विद्यारत्म परीक्षा कर्या विना कोइने पण आपी शकाय नहीं.८५/सोधरस्तद्विरं श्रुत्वा / सुमित्रं स जगी प्रभो // दीयते भवतादेश-स्तदेयं गृह्यते मया // 86 // अर्थ-ए प्रमाणे सांभळीने सीधर सुमित्रने कयु के-'महाराज ! जो आपनी आज्ञा होय तो हुँ अहीं रहीने विद्या ग्रहण करूं किंचाहं भवतामेव / कार्यकारी सदास्म्यतः // समेष्यति भवत्कायें / मत्पावे यद्भविष्यति // 87 // | अर्थ-वळी हुं तो निरंतर तमारो कार्यकारी छ तेथी मारी पासे जे हशे ते आपनेज काम लागशे. // 87 // सत्यमक्तं त्वया मित्र / त्वद्वियोगं तथापि न // सहिष्णुरस्म्यहं तेना-नुज्ञां दातुं कथं क्षमः // 8 // - अर्थ-मुमित्रे का के-' हे मित्र ! तें सत्य कडं, परंतु तारो वियोग सहन करवाने हुं समर्थ नथी; तेथी तने केवी रीते रजा आपी शकुं? // 88 // यद्यप्येवं तथापीह / लाभालाभं विचारय / पुनः पुनरयं योगो / विद्याथें नो भविष्यति // 89 // // 18 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र // 19 // अर्थ-सुधोरे का -'जो के एम छे तो पण अहीं लाभालाभनो विचार करवा योग्य छे. कारण के अपर्व विद्या मेळववा माटे आवो योग वारंवार मळो शकतो नथी. / / 89 // विनयादिगुणैरेन-माराध्यानुपदं तव // षण्मासांतः समेष्यामि / प्राप्तविद्यः प्रसीद मे // 90 // अर्थ-तेथी विनयादि गुणोवडे आने आराधोने छ महीनानी अंदर विद्या मेळवी हुँ तमारी पासे जरुर आवीश, तेथो प्रसन्न थइने मने आज्ञा आपो. // 9 // न कुमारः स विचारज्ञः / श्रुत्वा तद्वचनं सुधीः // अक्षमोऽपि वियोगं स / तस्यादेशमदात्तदा // 91 // ___अर्थ-कुमार विचारज्ञ होवाथी ते बुद्धिमानना वचनो सांभळीने तेनो वियोग सहन करवाने असमर्थ छतां ते वखते तेने त्यां न रहेवानी रजा आपी. // 91 // पुनस्तस्य कृते विद्या-सिद्धं तं स व्यजिज्ञपत् // स्वामिन् भूयात्तवांतस्थः / सफलाशः सुहृन्मम // 92 // अर्थ-पछी तेना निमित्ते पेला विद्यासिद्धने विनंतिपूर्वक का के-' हे स्वामिन् ! तमारी पासे रहेनार आ मारो मित्र विद्या मेळववामां सफळ थाओ. // 92 // ओमित्युक्तवतस्तस्य / समीपे सीधरं ततः॥ मुत्क्वाशेषसुहृद्युक्तः / स चचाल विशालधीः // 93 // अर्थ-विद्यासिद्धे ते वात स्वीकारी एटले पछी सीधरने त्यां मूकीने बाकीना मित्रो साथे विशाळ बुद्धिमान् कुमार आगळ चाल्यो. PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम् सुमित्र // 20 // दूरं देशं जगामासा-वेकत्र रणभूमिषु // तत्कालजातयुद्धासु / रुधिरैः पूरितासु च // 94 // अर्थ-ए प्रमाणे घणा दूर देशमां गमन करतां एक जग्याए तरतमांज युद्ध थयेली रणभूमि जोइ. ते रुधिरवडे पथरायेली हती. संकुलासु रुलटुंड-मुंडहस्तपदादिभिः // शृगालगृध्रप्रमुखै-ाप्यमानासु तत्क्षणं // 95 // अर्थ-चोतरफ कपाइ गयेला हाथ, पग, शरीर अने मस्तकोबडे व्याप्त हती, तेमज शीयाळ अने गीध वगेरे पक्षीओ त्यां फरी रह्या हता. / / 95 // धौतवस्त्रावृतं यज्ञो-पवीतवरविग्रहं // सविशेष कृतस्नानं / दर्भमुद्रांकितांगुलीं॥ 96 // अर्थ-तेवी रणभूमिमां धोयेला वस्त्र पहेरेलो, यज्ञोपवीत धारण करेला श्रेष्ठ शरीरवाळो, सविशेष स्नान करेलो, दर्भनी मद्राओवडे अंकित आंगळीओवाळो // 96 // मृतानां रुंडमुंडानि / चालयंतमितस्ततः // पश्यतिम द्विजं कंचि-कच्छे कर्कटिका इव // 97 // अर्थ-कोइ द्विज मरण पामेला मनुष्योना रुंडमुंडोने आमतेम फेरवतो ने जोतो नाना जळाशयमा रहेला करचलानी जेवो 'तेमणे दीठो. // 97 / / . अपवित्र स्थले विप्र / किं करोष्यत्र कुत्सितं / इदृकर्माधमजन-योग्यमचे स तंप्रति // 98 // अर्थ-तेने ए प्रमाणे करतो जोइने सुमित्रे पूछयु के-'हे विप्र ! आवा अपवित्र स्थळे अधम जनोने योग्य एवं कुत्सित कार्य PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र // 21 // तमे शा माटे करो छो?' // 98 // ब्राह्मणोऽवक्कुमारेद-मज्ञात्वा प्रोच्यते किमु // यतो जीवदयाधर्म / उत्तम कर्म कथ्यते // 99 // | अर्थ-ब्राह्मण बोल्यो के-" हे कुमार! तुं अज्ञात होवाथी आ प्रमाणे पूछे छे; परंतु जीवदयारूप धर्म सर्व धर्ममां उत्तम कहेलो छे. // 99 // | सत्यमेतत्परं विप्र / कथं जीवदया वद // सोऽवादीत् श्रृणु सद्धर्म-कर्मकर्मठपुंगव // 10 // ___अर्थ-सुमित्रे का के-'हे विप्र ! ते वात साची छे परंतु अहीं जीवदया शुं छे ?' ते बोल्यो के-'हे सद्धर्मकर्ममां स्थित थयेला मनुष्योमा श्रेष्ठ ! सांभळ ! // 10 // अहं गुरुप्रसादेन / संजीविन्या सुविद्यया // संमील्यावयवानेतान् / जीवयिष्यामि देहिनः॥१॥ - अर्थ-हुँ गुरुप्रसादथी प्राप्त थयेली संजीविनी विद्यावडे आ मनुष्योमा पोतपोताना अवयवोने जोडी दइने तेने जीवता करीश.॥१॥ श्रुत्वेति तद्वचो याव-स्थितास्ते कुतुकप्रियाः // सुभटानां शरीरेषु / मूर्छितानां मुहुर्मुहुः // 2 // / अर्थ-तेना आवा वचनो सांभळीने कौतुकपिय एवा ते तेनी कृति जोगा माटे त्यां उभा रह्या-रोकाणा. एटले पेला विषे | मुछित एवा सुभटोना शरीरना विभागो वारंवार // 2 // यथायोग्यं गृहीत्वाशु / योजयित्वा करान् क्रमान् // कबंधेष्वर्धछिन्नानि / मस्तकानि तथैव च // 3 // Jun Gun Aaradhak Trust PP.Ac GunratnasuriM.S. .
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________________ सुमित्र ADDDDDDDDDDDDDDDDDDED __ अर्थ-ग्रहण करीने हाथ-पम विगेरे अंगोने तेना शरीर साथे अने अर्ध कापेला एवा कबंधोने तेना मस्तक साथे जोडी दइने न रक्ताविलवहस्ताभ्यां / नराणां गजवाजिनां // अजीवयद् द्विजस्ताव-त्तान् सर्वान् प्राणिनः क्षणात // 4 // ___अर्थ-अनेक मनुष्योने अने हाथी-घोडा विगेरे घणा पाणीओने लोहीवडे खरडायेला पोताना हाथवडे क्षणमात्रमांजीवता कर्या. तदित्थं वीक्ष्य ते सर्वे / जाताश्चर्याः परस्परं // ऊचुः पीयूषवद्रम्या / विद्येयं भूमरुत्पतेः // 5 // अर्थ-आ प्रमाणे जोइने ते सर्व आश्चर्य पाम्या छता परस्पर बोलवा लाग्या के-'आ भूदेवपासे आ विद्या अमृतनी जेवी रम्य छे.' // 5 // अपृच्छदग्रजन्मानं / पुरोधोंगरुहाग्रहात् // सुमित्रः कलया वाचा / दीयतेऽपीयमुत्तम // 6 // ____ अर्थ-पछी पुरोहितपुत्रना आग्रहथी सुमित्रे ते विभने मधुर वाणीवडे पूच्यु के-' हे उत्तम द्विज! आ श्रेष्ठ विद्या तमे कोइने आपो खरा ? // 6 // सोऽप्युवाच कुमारेंद्र / विद्या कन्येव कुत्रचित् // दातव्येयं परं नैवा-परीक्षितजने मया // 7 // अर्थ-विम बोल्यो के-'हे कुमारेंद्र ! उत्तम विद्या कन्यानी जेम कोइकने आपवीज पडे, पण ते अपरीक्षित मनुष्यने आपुं नहीं. परिचयवडे परीक्षा कर्या पछी आपुं.' // 7 // |सुत्रामस्तं तदापृच्छ्य / कुमारं सुकुमारगीः॥ तस्थो विद्यावतः पावे | सुधीविद्याजिघृक्षया // 8 // अर्थ-आ प्रमाणे सांभळीने कोमल वाणीवाळो अने प्रखर बुद्धिमान पुरोहितपुत्र सुत्राम ते विद्या ग्रहण करवा निमित्ते ते // 22 // PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradha Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् 33 // विद्यावाळा विपनी पासे रह्यो. // 8 // शीघ्रमेव समागत्य | मीलनीयं त्वया मम // इति शिक्षा सुहृत्कणे / मंत्रवत्प्रोच्य भूपभूः // 9 // ____ अर्थ-ते वखते तारे शीघ्र आवीने मने मळवू, एम मंत्रनी जेवी शिक्षा राजपुत्रे तेना कानमां कही. // 9 // . | सगद्गदगिरादिश्य / तद्वियोगाक्षमोऽपि सः॥ ततोऽचालीद्विशालाक्षः / सूरसागरसंयुतः॥१०॥ अर्थ-गद्गद वाणीवडे तेने आज्ञा आपीने तेनो वियोग सहन करवाने अशक्त अने विशाळ नेत्रवाळो ते सुमित्रकुमार सूर ने | सागरनी संगाते त्यांथी आगळ चाल्यो. // 10 // | विलोकयन् विचित्राणि / कौतुकानि भुवस्तले // जगामैकत्र सुस्थाने / सन्निवेशसमीपगे // 11 // ___अर्थ-पृथ्वीतळ उपर अनेक प्रकारना विचित्र कौतुकोने जोता जोता तेओ एक सारा स्थानवाळा सन्निवेशनी पासे पहोंच्या. तत्रापश्यद्वयोवृद्धं / काष्टतक्षकमुत्तमं // एकमेव महत्काष्टं / घटतं वासिकाकरं // 12 // ___ अर्थ-त्यां तेमणे एक वयोवृद्ध सुतारने हाथमां बांसलो लइने एक मोटा काष्टने घडतो जोयो. // 12 // दारुणानेन किं कार्य / सूत्रधारशिरोमणे // इतिपृष्ठे समाचष्ट / खगामिस्यंदनं स तं // 13 // ___ अर्थ-तेने कुमारे पूछ्यु के-' हे सूत्रधार शिरोमणि ! आ काष्ट तमे शा माटे घडो छो?' ते बोल्यो के-'आकाशगामी | वाहन बनाववा माटे हुं घटुं छु. // 13 // %3D PP.AC.GunratnasunM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् 24 // रथः कथं नभोमागें / गच्छेत्काष्टमयो वद // सोऽभाषिष्ट कुमारेश / विद्याया प्रेरितो मम // 14 // . ___ अर्थ-कुमारे पूछयु के-'काष्टमय रथ आकाशगमन शीरीते करो शके ?' त्यारे सूत्रधार वोल्यो के-' हे कुमारेश ! मारी पासे रहेली विद्याना बळथो आकाशगमन करे. // 14 // समित्रोऽभीष्टमित्रं यः। सूत्रभृत्पुत्रसागरः॥ तदाग्रहात्तमाचष्ट / विद्येयं पात्र अर्हति // 15 // अर्थ-मुमित्रे पोताना अभिष्ट मित्र सूत्रधारना पुत्र सागरना आग्रहथी पूछयु के-' हे सूत्रधार ! तमे ए विद्या योग्यने आपो खरा ? // 15 // कथं नाहति तक्षोऽव-ग्योग्ये विद्येयमक्षिवत् // योग्यः स एव योऽस्माभिः। कियत्कालं परीक्षितः // 16 // अर्थ-सूत्रधारे कड्यु- योग्यने केम न आपुं ? पण मारी साथे केटलोक काळ रहे, हुं परीक्षा करुं अने पछी आपुं.' // 16 // |श्रत्वैतत्सागरस्तस्थौ / तमापृच्छय भवत्कृते // विद्यां नीत्वा समेष्यामि / शीघ्रमस्माजगाविति // 17 // __ अर्थ-आ प्रमाणे सांभळोने कुमारनी आज्ञा लइ सागर त्यां रह्यो अने कयु के-'आमनी पासेथी तमारे माटे आ विद्या मेळनवीने हु शीघ्र तमारी पासे आवीश.' // 17 // सुमित्रस्तमपि प्रीति-पात्रं मित्रं. विमुच्य च // जितसूरेण सूरेण / प्रतस्थे सेवितस्ततः // 18 // . अर्थ-सुमित्र ते प्रीतिपात्र मित्रने पण त्यां मूकीने जितसूर एवा सूरनी साथे तेनाथी सेवातो सतो आगळ चाल्यो. // 18 // DDDDDDDDDDDDDDDOOOOD // 24 PP A Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र // 25 // @D DOODDDDDDDDDDDDDDDDDE क्रमेण नगरं नाम / प्राप पुष्पपुरं वरं // सत्रागारं मनोहार-मपश्यत्तत्समोपतः॥ 19 // ___ अर्थ-अनुक्रमे तेओ पुष्पपुर नामना श्रेष्ठ नगरनी समीपे पहोंच्या. त्यां समीप भागमांज एक मनोहर सत्रागार (दानशाला) न तेमणे जोइ. // 19 // तत्रैक्षिष्ट लसन्मूर्ति-मंभोजदललोचनं // दयापीयूषसंपूर्ण / पुरुषं विश्ववत्सलं // 20 // ____ अर्थ-त्यां तेमणे उल्लसायमान आकृतिवाळा, कमळना पत्र समान लोचनवाला, दयारुप अमृतथो संपूर्ण अने विश्ववत्सल एवा एक पुरुषने जोयो. // 20 // अग्रप्रदेशसंस्थेभ्यो / भृतेभ्यो मोदकादिभिः // स्वर्णरूप्यमयेभ्यस्तु / भाजनेभ्योऽक्षयैधनैः॥ 21 // . अर्थ-के जे पुरुष पोतानी समीपमा रहेला सोना-रुपाना निबीड अक्षयपात्रमाथी काढीकाढीने स्वादिष्ट मोदकादिवडे // 21 // स्निग्धैः षोढा रसोपेते-नाहारीनिरंतरं // समाकार्य जनान भक्त्या / भोजयंतं सहस्रशः // 22 // ____ अर्थ-तेमज षड्रस भोजनवडे हजारो जनोने बोलावी बोलावीने भक्तिपूर्वक जमाडतो हतो. // 22 // कियत्कालं विलंब्यासी / तत्स्वरूपं निरीक्ष्य च // सुमित्रस्तंप्रति प्रोचे / सविस्मयमिदं वचः // 23 // | अर्थ-आ प्रमाणे निरंतर करता एवा तेने केटलाक वखत सुधी जोइने तेनुं स्वरुप बराबर समजीने केटलेक विलंबे विस्मयकारी वचनोवडे सुमित्रे पूछयु के-1 23 / / // 25 // Jun Gun Aaradnak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ ममित्र चरित्रम् // 26 // हे सत्पुरुष किं नामा / भवान् पात्रेषु दृश्यते // कथं चतुर्विधाहारः / पुनः पुनरिह त्वया // 24 // नीयमानोऽपि सत्कूपा-निर्मलाभ इवाक्षयः // सुगंधः सरसः सर्व-लोकानामर्थपूर्तये // 25 // अर्थ-हे साधुपुरुष ! आपनुं नाम शुं ते कहो ? अने सारा कुवाना निर्मळ पाणीनी जेम तमाराथी वारंवार मनुष्योनी वांछा व पूर्ण करवाने माटे सारा गंधवाळो अने शुभ रसवाळो चार प्रकारनो आहार देवाता छतां केम अक्षय-अखूट जोवाय छे ते जणावो ? // 24 // 25 / / श्रुत्वैतत्सीष्टवं प्राह / दंतकांति किरन्नसो // कुमार सचमत्कारं / मत्स्वरूपमिदं श्रुणु // 26 // - अर्थ-आ प्रमाणे साम्यता युक्त बचनो सांभळीने दातना किरणोने विस्तारतो ते बोल्यो के-'हे कुमार ! आश्चर्यने प्रगटाव नारं मारुं स्वरुप तमे सांभळो-॥ 26 // अत्रैव धननामाभू-व्यवहारिकपुंगवः // वरदत्तामिधस्तस्य / सुतोऽहं सुगुणोऽभवं // 27 // ____ अर्थ-" आज नगरमां धन नामनो श्रेष्ठ व्यवहारी वसतो हतो, तेनो हुं दरदत्त नामनो गुणयुक्त पुत्र छु. // 27 // कृतकोंदयाहाल्ये। पितुर्मातुर्वियोगजं // दुःखं लेभे क्रमेणाहं / त्यक्तो लक्ष्म्याप्यभाग्यतः // 28 // अर्थ-करेला पूर्वकर्मना उदय बळे मने बाल्यावस्थामाज माता-पिताना वियोगर्नु दुःख प्राप्त थयु. त्यारबाद भाग्यदेवीनी 9 अकृपाथी मारी सर्व संपत्ति पण नाश पामी. / / 28 / / DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD ला॥२६॥ A Gunnanasul M.S Jun Gun Aaradnak Trust
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________________ মিম चरित्रम् // 27 // क्रमेण यौवनारुढ-मित्यवेत्य धनेच्छया // कन्ययेव वृतस्तस्मा-दचलं द्यम्नहेतवे // 29 // ____ अर्थ-अनुक्रमे हुँ पोताने युवावस्था प्राप्त थयेलो जाणोने कन्यानी इच्छानी जेम धननी इच्छाबडे सुवर्ण मेळववा सारं चाली नीकळ्यो. // 29 // इतो दूरं दिशि प्राच्या-मतीसारामयी मया // मंदसिद्धः पटूचक्रे / भक्त्या शुश्रूषितो वने // 30 // अर्थ-पूर्वदिशामां घणे दूर जतां अतिसारना रोगवाळो कोइ सिद्धपुरुष वनमा रहेतो हतो तेने में भक्तिपूर्वक शुश्रूषा करीने निरोगी कों. // 30 // तुष्टः सोऽपि ददो मह्यं / विद्यामक्षीणसंज्ञकां // यस्याः प्रभावतः सर्व-मक्षयं वस्तु जायते // 31 // ___अर्थ-तेथी प्रसन्न थयेला तेमणे मने अक्षयपात्रनी विद्या आपी, जेना प्रभावथी बधी वस्तुओ अक्षय-अखूट थइ जाय छे.।।३१।। प्राप्य विद्यां विशालाक्ष / कल्पवल्लीसमामिमां // समागामत्र सिद्धस्य / नत्वा चलनयामलं // 32 // __अर्थ-हे विशाळाक्ष ! कल्पवृक्षनी जेवी ते विद्या पामीने हुँ ते सिद्धने नमस्कार करीने पगे चालतो अहीं पाछो आव्यो.।३२॥ व व्यंजनं यद्वदन्नस्य | यथा चांगस्य भूषणं // दानस्यान्ये गुणास्तव-त्परिवाराय केवलं // 33 // ___अर्थ-अन्नने जेम शाक शोभावे छे तेम मनुष्य-शरीर भूषण दान छे. अन्य गुणो तो केवळ तेना परिवारभूतज छे.॥३३॥ मदानमेकं ततः श्रेष्टं / महर्द्धिरपि मानवः // तेन हीनो विना क्षीरं / स्थला गौरिव नाति // 34 // DODDDDDDDDDDDDDDDDDIAS // 27 // P.P.AC.Gunrathasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD अर्थ-दान एकज आ जगतमा श्रेष्ठ छे. ते विनानो मनुष्य महर्द्धिक होय तो पण दुध विनानी स्थूळ (जाडी) गायनी जेम | मूल्यहीन गणाय छे. // 34 // धैर्यशौर्यादिकं द्वीपि-कोलादिष्वपि दृश्यते // दानं हि महतामेव / गजेंद्राणां प्रवर्तते // 35 // __ अर्थ-धैर्य शौर्यादिक गुणो तो सामान्य हाथी अने वराहादिकमां पण देखाय छे, परंतु दान एटले मदनु झरवू तो मोटा गजेंद्रमांज होय छे. // 35 // धनांगपरिवाराद्यं / सर्वमेव विनश्यति // दानेन जनिता लोके / कीर्तिरेकैव निश्चला // 36 // अर्थ-धन, शरीर, परिवारादि सर्व काळे करीने विनाश पामे छे, परंतु दानवडे जनोमा मेळवेली कीर्ति एकज निश्चळ-विनाश न पामे एवी छे. // 36 // * रसातलं समुद्रोऽपि / प्राप संग्रहतत्परः // दाता पयोधरः पश्य / सर्वस्योपरि गर्जति // 37 // __ अर्थ-मात्र संग्रह करवामांज तत्पर एवो समुद्र पण रसातळमां गयेलो छे, अने दाता एवो पयोधर (वरसाद) सर्वनी उपर | आकाशमां रहीने गाजे छे. // 37 // कला सा सफला विद्या / सैव सैव मतिस्तथा // यथार्थिजंतुराजीनां / संपूर्यते मनोरथाः // 38 // - अर्थ-ते कळा, ते विया अने ते बुद्धिज सफळ छे के जेनावडे अर्थीजनोनी श्रेणीना मनोरथोने पूरी शकाय. // 38 // विचायति मया विद्या-बलादानं निरंतरं // दीयते तु कृपासार / कुमार कृपयांगिषु // 39 // जनननDOHDDOOOOOOOOOGLORD // // 28 // Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.GunratnasuriM.S.
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________________ सुमित्र // 29 // DOGODDDDDDDDDDDEDED . अर्थ-आ प्रमाणे विचारीने हे दयाळु कुमार! पाणी उपरनो दयाने लइ हुँ विद्याना बळ्थी निरंतर दान आपुं छु. // 39 // सुमित्रः सादरं तस्य, / निपीय मधुरां गिरं // साधु साधु तमित्यूचे / त्वया दानैर्जितं जगत् // 40 // के अर्थ-आदरपूर्वक तेनी मधुर वाणी- पान करीने सुमित्रकुमार बोल्यो के-'सारुं, सारं, बहु सारु, तमे दानवडे जगतने जीती लीधुं छे. // 40 // पुनः पृष्टं कुमारेण / प्रेरितेन सुहृद्विरा // दानाहेयं न वा विद्या / कस्मैचिन्मे निवेद्यतां // 41 // ... अर्थ-आम कहीने पछी मित्रनी प्रेरणाथी सुमित्रे ते दातारने पूछ्यु के-'आ तमारी अक्षयपात्रनी विद्या कोइने दान आफ्वा | योग्य छे के नहीं? // 41 // श्रुत्वेति सोऽवदद्रुप-जितमार कुमार भोः॥कियत्कालं परीक्षायां प्रभृताहेयमदभुता // 42 // ... ___ अर्थ-ते सांभळोने रुपबडे जेणे कामदेवने जीत्यो छे एवो ते पुरुष बोल्यो के-'हे कुमार ! केटलाक काळ सुधी पासे राखीने परीक्षा कर्या पछी आ अद्भुत विद्या आपी शकाय तेम छे. // 42 // निशम्येति जिघृक्षुस्तां / विद्यां विश्वजनेष्टदां / सूरः सुमित्रमापृच्छय / स्थितो विद्याभृतोंतिके // 43 // अर्थ-आ प्रमाणेनो उत्तर सांभळीने विश्वजन- इष्ट करनारी आं विद्या मेळवकानो इच्छाथी सूर नामनो मित्र कुमारनी रजा लइने ते विद्यावारीनी पासे रह्यो. // 43 // एवं मित्रैश्चतुर्भिस्तै / रहितोऽप्यग्रतोऽसियुक॥ सुमित्रः संचरन्न। लोकपालैर्विनेंद्रवत // 44 // .. COOOOOOOODOOBDOORDED . 29 // PP A Gunratnasun MS. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् GeoGODDDDDDDOEEDED अर्थ-आ प्रमाणे चारे मित्रोथी वियुक्त थयेलो कुमार चार लोकपाळ विनाना इंद्रनी जेम मात्र खड्ग धारण करीने त्यांथी आगळ चाल्यो. // 44 // तमालतालहिंताल-रसालसरलवजैः॥ संकुलं पिष्पलप्लक्ष-वटदुंबरकादिभिः॥४५॥ अर्थ-मार्गमा एक अतिशय मोटुं वन आव्यु के जे बनमां तमाल, ताल, हिंताल, रसाल अने सरल तथा पिपळ, प्लक्ष, वड, उदुंबर विगैरे अनेक जातिना वृक्षो हतां. // 45 // Hव्याप्तमभ्रंकषैः शैलै-नदीभिर्दुस्तरांबुभिः // सिंहव्याघ्रद्विपद्वीपि-चोरनीरानलादिभिः // 46 // अर्थ-आकाशने जाणे अडता न होय एवा उंचा शिखरवाळा पर्वतो हता, जळबडे भरपूर तरी न शकाय तेवी नदीओ हती, सिंह वाघ, हाथी अने दीपडा विगेरे अनेक हिंसक पशुओ हता, चोर, नीर अने अनि विगेरेथी व्याप्त हतुं. // 46 // @GODDDDDDDDDDDDDDDDOG अर्थ-वळी सूर्य पण जेने जोइ न शके एवी राजानी राणीओनी जेम सूर्यनो प्रकाश पण ते वनमां पडतो नहतो. एवा भयंकर कानन (वन ) नुं मात्र खड्गज जेना हाथमा छे एवा कुमारे सुखपूर्वक उल्लंघन कर्युः // 47 // अथैकं नगरं वीक्ष्य / धनाढ्यापणमंदिरं // निर्मानुषं सुरम्यं च / विस्मितः प्रविवेश सः // 48 // | परंतु मनुष्य विनानुं हतुं. तेवू नगर जोइ विस्मय पामीने तेणे ते नगरमा प्रवेश को. // 48 // // 30 // लाख P.P.ACGunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhex Trust
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________________ समित्र चरित्रम् // 31 // तस्याभ्यंतरतो हर्म्य-प्रासादादिमनोहरं // पश्यन् सुविस्मयं सर्व / नाप मानुषमात्रकं // 49 // ___अर्थ-ते नगरमा मनोहर एवी हवेलीओ अने प्रासादो जोतो जोतो ते विस्मय सहित बधे फर्यो परंतु कोइ मनुष्य तेने मळ्यु नहीं. // 49 // ययौ राजकुले रम्य-मारूढो राजमंदिरं // तत्रैकांदोलपल्यंके-ऽपश्यन्मार्जारिकामसौ // 5 // ... अर्थ-अनुक्रमे ते राजकुलमां गयो अने मनोहर एवा राजमंदिर उपर चडवा लाग्यो. केटलाक माळ चब्यो एटले तेणे हींडोळा उपर रहेली बीलाडी दीठी. // 50 // | ददर्श तुंबकद्वंद्व / नागदंतेऽवलंबितं // अंजनेन समापूर्ण / महाप्राणमखंडितं // 51 // अर्थ-तेनी नजीकना नागदंता (बीली) साथे लटकावेली बे तुंबडीओ दोठी के जे अंजनवडे भरपूर अखंडित महामाण जेवी हती. // 51 // कौतुकेनैकमादायो-मुद्रं कृत्वांजनेन सः॥ दृष्टिमानंच तावत्सा / मार्जारी कन्यकाभवत् // 52 / / ___अर्थ-कौतुकवडे तेमांनी एक तुंबडी लइ उघाडीने तेमां रहेढं अंजन तेणे पेली बीलाडोनी आंखमां आंज्यु एटले ते तरतज कन्या बनी गइ. // 52 // प्रत्यक्ष सा तमालोक्य / सांगं काममिवागतं // कुमारी चिंतयामास / हर्षोल्लसितमानसा // 53 // .. DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD 16 // 31 // PP.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ त्रम IAL: अर्थ-ते वखते प्रत्यक्ष अंगधारी थइने आवेला कामदेव जेवा ते कुमारने जोइने हर्षवडे उल्लसित मनवाळी ते कन्या सुमित्र चितववा लागी के // 53 // | अहो सुकोमलो पादौ / कंकेल्लिपल्लवारुणौ // अहो कांतिभरोऽप्यस्य / नखदर्पणजः स्फुरन् // 54 // " अर्थ-अहो ! ककेल्लि वृक्षना पल्लव जेवा रक्त अने सुकोमळ आना चरणो छे. 'अहो ! आनो कांतिनो समूह नखरूपी दर्पणमां स्फुरी रह्यो छे. // 54 // अहो हस्तिकराकार-मूरुयुग्मं मनोरमं // अहो कटीतटाभोगो / नाभेश्चाहो गभीरता // 55 // ... अर्थ-अहो ! हाथीनी सुंढ जेवा मनोरम आना उरुयुग्म छे. अहो आनो कटीतटनो आभोग सुंदर छे. एनी नाभीनी गंभीरता प्रशंसनीय छे. // 55 // मष्टिग्राह्यमहो मध्यं / त्रिवलीमंडितं मृद // वक्षःस्थलेऽस्य विस्तीर्णे / कापि धन्या शयिष्यते // 56 / / अर्थ-एनो मध्य भाग (कटी) मुष्टिप्राय छे. त्रिवलीथी मंडित सुकोमळ उदर छे. विस्तिर्ण वक्षस्थळ छे के जेनी उपर कोई | धन्य स्त्री शयन करी शके तेम छे. // 56 // . . . . . दीर्घाविमौ भुंजादंडौ / गले कस्या लगिष्यतः॥ रेखाः शंखसमे तिस्रो / राजते कंठकंदले // 57 // / HI अर्थ-आना दीर्घ एवा भुजादेड छे ते कोना गळे लागशे ? शंखनी जेवा कंठरूप कंदळ उपर त्रण रेखाओ शोभी रही छे. न विद्रुमच्छदसच्छायः / स्वच्छो भात्यधरोऽप्ययं // जाने मां हृदयाद् दृष्टुं / नूनमभ्युत्थितो बहिः / 58|| 32 // P.PAC Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र @ODDDDDDDDDDDDDDDDDOD ___अर्थ-परवाळाना रंग जेवा रक्त एना होठ छे के जे मने जोवा माटे तेना हृदयमांथी जाणे बहार आव्या न होय एवा लागे छे. // नासिका सरला रम्या / कपोलौ दर्पणोपमो // नेत्रे कर्णातपर्यंते | श्रवणो स्कंधसंगतो // 59 // . ____ अर्थ-नासिका सरल अने रम्य छे, कपोळ दर्पण जेवा छे, नेत्र कान सुधी पहोंचेला छे, कान स्कंधने अडे तेवा छे. 159 / | कटरे मस्तके केश-पाशो भ्रमरसन्निभः // सुस्निग्धः श्यामलश्चारुः / कलापः किं कलापिनः // 6 // ___ अर्थ-माथे रहेलो केशपाश भ्रमर जेबो श्याम छे. ते सुस्निग्ध, गुच्छादार अने मनोहर मोरना कलाप जेवो लागे छे. // 60 // परयंतीति कमारं तं / सर्वावयवसुंदरं / / तस्थी यावत्कुमारी सा | चित्रन्यस्तेव निश्चला // 1 // का अर्थ-सर्वांगसुंदर एवा ते कुमारने जोती ते कुमारी चित्रमा आलेखायेलानी जेम निश्चल उभी रही. // 61 // सुमित्रोऽपि हि तां ताव-त्पश्यन् पर्यंकसंस्थितां ॥ध्यो बिडालिकाव्याजा-त्किं नु काप्यप्सरा स्थिता // ____ अर्थ-सुमित्रकुमार पण हीडोळापर रहेली तेने जोतो मनमां विचारे छे के-बिलाडीना स्थाने आ अप्सरा क्याथी ? // 2 // अहो रूपमहो रूप-महो लीलामनोज्ञता // समुल्ललत्तदंगेषु / लावण्यं लोचनप्रियं // 3 // | अर्थ-अहो ! शुं एन रुप छे ? अरे एनी लीला (चेष्टा )नी मनोज्ञता पण केवी छे! आंखने पिय लागे एवं लावण्य बधा H अंगोपांगमा उल्लसित छे. / / 63 // सर्पवस्कुटिलाः केशा-स्तुळं मध्यं कुचित्तवत् // सन्मनोरथवत्प्रोच्चै-रहो स्तनयुमं हृदि // 64 // .. . DOODOOOOOOOOOOOODE ol. // 33 // Jun Gun Aaradhal Trust PP A Gunnatasur MS
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________________ सुमित्र // 34 // DOODDDDDDIGEODEODEEEEED __अर्थ-सर्पनी जेवा वांका एना कंश छे, मध्यभाग माठा चित्तनी जेवो तुच्छ छे, हृदयमा रहेला उच्च मनोरथ जेवा उंचा | एना स्तनयुगल छे. // 64 // . सरला नासिका ह्यस्याः / साधूनां चित्तवृत्तिवत् ॥प्रलंबः केशपाशोऽस्या। मैत्रीभावः सतामिव // 65 // - अर्थ-साधुजननी चित्तवृत्तिनी जेवी सरल एनी नासिका छे, सज्जनोना मैत्रीभाव जेवो पलंब एनो केशपाश छे. / / 65 // लोचनद्वितयं स्निग्धं / रागिण्या इव मानसं // कटाक्षालोकनं त्वस्या। वक्रं दुर्जनकृत्यवत // 66 // अर्थ-रागिणीना मानसनी जेवा स्निग्ध एना बे लोचन छे, दुर्जनना कृत्यनी जेबो वक्र एनो कटाक्षालोक छे. // 66 // प्रवालदलवद्धाति / सरागोऽधरपल्लवः // गले रेखात्रयं स्त्रीणां / जयादिव जगतत्रये // 17 // .. अर्थ-प्रवाळना दळ जेवा रक्त एना अधरपल्लव शोभे छे. जगत्त्रयनो जय मेळवबाथी मळेली होय एवी एना गळे त्रण रेखाओ छे. // 67 // सोकुमार्य शरीरेऽस्याः / शालिग्रामसुवर्णवत् // रंभास्तंभोपमं जंघा-युगं चलनमंजुलं // 68 // ___ अर्थ-सुवर्णना शालिग्राम जेवु एना शरीरमा सौकुमार्य छे. केळना स्तंभ जेवु एनुं जंघायुग्म छे अने मंजुल एवं चलन छे.॥ कुमारस्तु विलोक्यना-मिति सर्वांगसुंदरीं // गाढानुरक्तया दृष्ट्या / निरीक्षेती वदत्यसौ // 69 // अर्थ-आ प्रमाणे सर्वासुंदर एवी तेने जोइने गाढ अनुरागवाळी दृष्टिबडे जोतो कुमार तेने बोलावबा जाय छे. // 69 // | DOEDODOOOOOOOOOनबन ] // 34 // masun MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम | तावत्तया बभाषेऽथ / को भवान् कुत आगतः // क्षत्रियोऽहं दूरदेशा-दत्रागां भाग्ययोगतः // 70 // . अर्थ-तेवामां ते स्त्रीज बोली के-'तमे कोण छो? क्याथी आवो छो?' कुमारे कछु के-हुँ क्षत्रिय छु अने भाग्ययोगयी | दूर देशथी अहीं आव्यो छु.॥७॥ इत्युक्त्वा तां पुनःप्रोचे / कुमारः कलया गिरा // किमेतन्नगरं शून्यं / विश्वालंकारसन्निभं // 71 // अर्थ-आ प्रमाणे कहीने कुमारे सुंदर वाणीवडे तेने पूज्यु के-विश्वमा अलंकारभूत एवं आ नगर शून्य केम छे ? / / 71 // नवमीहशेन रूपेण | स्वरुपेण जितेंदिग // पुरे निर्मानुषे ब्रूहि / वसस्येकाकिनी कथं // 72 // ____ अर्थ-वळी तुं आवा रुपवडे लक्ष्मीने पण जीतनारी आ निर्मानुष्य नगरमा एकली केम रहे छे ? // 72 // कन्या पुनरभाषिष्ट / शृणु सौभाग्यसागर // आमूलचूलवृत्तांतं / ममास्य नगरस्य च // 73 // ___अर्थ-त्यारे कन्या बोली के-हे सौभाग्यसागर ! आ नगरनो ने मारो मूळयी छेडा सुधोनो वृत्तांत हुं कहुं ते सांभळो ? 73 / इदं श्रीकनकं नाम / पुरं पुरगुणांचितं / / यच्चैत्यकेतुभिर्लक्षम्या। तय॑ते सुरपूरलं // 74 // अर्थ-आ श्रीकनक नामर्नु नगरना गुणोवाळ नगर छे के जे चैत्यपर रहेलो ध्वजाओनी शोभावडे जाणे देवनगरनी तर्जना करतुं न होय ! // 74 / / खरूपजितकंदों / भूपः श्रीकनकध्वजः // अत्रासीद्विगसत्रास-त्रासितारातिमंडलः // 75 // ODDOOOOOD ERODODARनन ED P.PAC Gunturi MS. Jun Gun Aarachak Trust
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________________ सुमित्र 36 // . अर्थ-आ नगरमां स्वरूपवडे कामदेवने जोतनारो श्रीकनकध्वज नामनो राजा हतो. ते पोते त्रास विनानो छतां शत्रवर्गने तेणे त्रास पमाड्यो हतो. // 75 // प्रियास्या कनकाभाभू-नाना कनकमंजरी // प्रियंगुमंजरी तस्याः / कुक्षिजाहं सुताभव // 76 // . ___ अर्थ-ते राजाने सुवर्ण जेवा वर्णवाळी कनकमंजरी नामे प्रिया हती, तेनी कुक्षीथी उत्पन्न थयेली प्रियंगुमंजरी नामे हुं तेनी पुत्री / / 76 // बाल्यादपि तयोः पित्रोः / प्राणेभ्योऽप्यतिवल्लभा // कलाकलापकुशला / लभेऽहं योवनं क्रमात् // 77 // | अर्थ-हुँ बाल्यावस्थाथी मारा मतापिताने माणथी पण वहाली हती. अनुक्रमे कळासमूहमां कुशळ एवी हुँ यौवनावस्था पामी. इतश्च राक्षसेनात्र / प्राचीनभववैरिणा // समेत्य नरपत्यंतः-पुरामात्यपुरोधसां // 78 // | अर्थ-एवामां पूर्वभवना वैरी एका कोइ राक्षसे आवीने मारा पिता, राणीओ, प्रधान अने पुरोहितनो वध कर्यो. // 78 // वधश्चक्रे ततोऽकारि / लोकैरन्यैर्दिशोदिशं // पुरं जनपदं त्यक्त्वा / कांदिशीकैः पलायनं // 79 // ___अर्थ-एटले लोको आ मगर अने देशने तजी दइने दिशामूड थइ गयेलानी जेम चारे दिशाए पलायन करी गया // 79 // ऋध्याप्यलंकृतं शून्यं / तेनेदं नगरं वरं // तेनाहमपि नश्यंती। धृत्वेत्यूचेऽनुरागिणा // 8 // अर्थ-तेथी आ नगर ऋद्धिवडे अलंकृत छतां पण शून्य थइ गयु छे. ते वखते हुँ पण नासी जती हती तेने आ राक्षसे अटकावीने अनुरागीपणे कयु के- / / 80 // PREDDDDDDDDDDDDDDDDD जा॥३६॥ PP A Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ समित्र // 37 // तदाहं मारयिष्यामि / भद्रे त्वां यदि यास्यसि // अतस्त्वया न गंतव्यं / न कर्तव्यं भयं पुनः // 1 // ___अर्थ-जो तुं भागी जइश तो हु तने मारी नाखीश; तेथी तारे भागी जवू नहीं अने मारो भय पण राखवो नहीं. // 1 // किंच लग्ने शभेऽत्र त्वां। परिणेष्याम्यहं मुदा // अनिच्छंतीमपीत्युक्त्वा / मामरक्षवलाच सः // 82 // / अर्थ - हुँ तने शुभ लग्न समये अहींज हर्षवडे परणीश. आ प्रमाणे कहीने तेने नहीं इच्छती एवी मने तेणे बलात्कारे अहीं राखी. - तुंबकस्थांजनेनासौ / याति कृत्वा बिडालिकां // मामन्यतुंबकस्थेन / करोत्यागत्य तादृशीं // 83 // . अर्थ-ते आ एक तुंबमांहेना अंजनवडे मने वीलाही बनावीने जाय छे अने वीजा तुंबना अंजनवडे पाछो आवे छे त्यारे मने कन्या बनावे छे. // 83 // | एवं स्थिते दिने कापि | पलादो याति सोऽनिशं // निश्यायाति पुनाँति / ममैवं वासरा इह // 4 // ' अर्थ-आ प्रमाणेनी मारी स्थिति, छे. ते राक्षस दररोज दिवसे कोइपण स्थळे जाय छे अने रात्रे पाछो आवे छे. आ प्रमाणे मारा दिवसो व्यतिक्रमे छे. // 84 // एकदा समया-प्रष्टः कस्त्वं देवो नरोऽथवा // सोऽवोचत् शृणु वैताढये / पुरे श्रीमणिमंदिरे॥८५।। अर्थ-एक दिवस में तेने पूज्यु के-'तमे कोण छो? देव छो के मनुष्य छो ?' ते बोल्यो के-"सांभळ ! वैताढ्य पर्वत | उपरना मणिमंदिर नामना नंगरनो // 85 // . . ... .. // 37 // P.P.Aa Gunratnasur M.S Jun.Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम् // // 38 // . FOODDEDODDEDEDDDDDDD राजा चित्रांगदो नाम / विद्याधरशिरोमणिः // अभवं दैवयोगेना-हं महामांसलालसः // 86 // ___अर्थ-विद्याधरोमां शिरोमणि चित्रांगद नामे हु राजा छ. दैवयोगे हुँ मनुष्यना मांसनो लालचु'थयो. // 86 / / मत्ती जनक्षयं मत्वा / बोधितोऽहमनेकधा 11 सथापि व्यसनं नागा भाग्यभरयोगतः / / 87 // " अर्थ-माराथी जन-क्षय यतो जाणीने मने अनेक प्रकारे समजाववामां आव्यो, पण अत्यंत दुर्भाग्यना योगथी मारं ते व्यसन | गयु नहीं / / 87 // ततो मन्मंत्रिसामंते / राज्यान्निष्काशितो बलात् // क्षुरी हेममयी क्वापि। क्षिप्यते किं निजोदरे // 8 // ___ अर्थ-तेथी मारा मंत्रो अने सामंत विगेरेए बलात्कारे मने नगरमाथी काढो मूक्यो. केमके सोनानी छरी पण काइ पेटमां| मराती नथी. // 88 // . अतः स्थानपरिभ्रष्टः / सोऽहं मानवराक्षसः // परिभ्रम्य भुवं सर्वा-मत्रागामवदच्च सः / / 89 // ___ अर्थ-एवी रीते स्थानथी परिभ्रष्ट थयेलो हु मानवराक्षस थयो. पछी हुँ पृथ्वीपर भमवा लाग्यो. एवी रीते भमतां भमता.| अचानक अहीं आवी चड्यो." // 89 इतस्तं राक्षसं दूरा-दागच्छंतं समीक्ष्य सी // प्रोचे ससंभ्रमं भीता / याहि याहि कुमार भोः // 10 // आ प्रमाणे राजकन्या बात करे छे तेवामां दूरथी आवता ते राक्षसने जोइने भयवाळी थइ सती ससंभ्रमपणे ते बोली केहे कुमार! तमे चाल्या. जाओ, चाल्या जाओ. / / 20 / / !: . . . . . . PODERREDDROIDDDDDDDD // 38 // ON PP Ad Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ ममित्र // 39 // DDDDDHIDDDDIREDfoja aana स एष राक्षसो दुष्टो / विवाहोपस्करैर्युतः // अद्यैव परिणेतुं मां / शीघ्रमेति विहाय सा // 91 // . A 'अर्थ-ए दुष्ट राक्षस मने परणवानी इच्छाथी विवाहसामग्री लइने आकाशमार्गे शीघ्रपणे अहीं आवे छे. // 91 // स्मित्वोवाच कुमारस्तां। ज्ञातं ज्ञातं भवन्मनः // वरीक तमेव त्वं / वांछस्यज्ञे यमं न मां॥९॥ अर्थ-ते सांभळी काइक स्मित करीने कुमार बोल्यो के-'जाण्यु, जाण्यु, तारु, मन जाण्यु, तुं ते यमने वरवा इच्छे छे, मने वरवा इच्छती नथी..॥ 92 // श्रुत्वा निःश्वस्य सावोच-महाभाग :भवाशां // अत्यंतं मंदभाग्याहं / वररत्नं कथं लभे॥ 93 // अर्थ-आ प्रमाणे सांभळी निश्वास मूकीने ते बोली: के-'हे महाभाग ! हु. अत्यंत भेदभाग्यवाळी छु, तमारो जेवो वररत्न / | हुं क्यांथो मेळवी शकुं? // 93 // अथोचे तेन सा तस्य / मर्म किंचित्प्रकाशय // येनामुं राक्षस हुन्मि / त्वन्निःकारणवैरिणं // 94 // . ___ अर्थ-कुमार कहे छे के तुं एनो मर्म काइ होय तो जणाव के जेथी तारा निष्कारण वैरी एवा ते राक्षसने हुं हणी शकुं. जहर्ष वचसा तेन / सा कन्येति तमब्रवीत् // मुहूर्तमेकं मध्याहे / निश्चलोंचत्ययं सुरान् // 95 / / अर्थ-आ वचनथी हर्ष पामोने ते कन्या बोली के-'मध्यान्हे एक मुहूर्त ए निश्चळ थइने देवपूजा करे छे. // 95 // स एवावसरो नात्यो ।बधेठस्य तररक्षसः // श्रुत्वेति स कुमारोऽव-साधूक्तं ते विचक्षणे // 960 // न // 39 // | IDEO SIDDDDDD नननननननननन P.P.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 40 // 4. अर्थ-ते वखते ए नरराक्षसने मारी शकाय तेम छे, बीजो अवसर नथी! ते सांभळीने कुमारे का के-'हे विचक्षणे ! तें ठीक वात कही. // 96 // द्वितीयांजनमादाय / नेत्रे अंजय मामके // ओतुरूपं मया ग्राह्यं / भवान् भजतु कोणकं // 97 // .. अर्थ-कन्या कहे-' हवे बीजुं अंजन आंजीने मने बीलाडी बनावो अने तमे खूणामां संताइ जाओ. // 97 // तथा कृत्वा रहस्तस्थौ / कुमारः करवालभृत् // तावदागाद्वदन् रक्षः। खादामीति पुनः पुनः॥९८॥ अर्थ-कुमार ते प्रमाणे करीने हाथमां तलवार लइ एकांतमा उभो रह्यो. तेवामां वारंवार खाउं, खाउं करतो ते राक्षस आव्यो. तत्कालमंजनेनासौ / स्त्रीस्वरूपां विरच्य तां // प्रोचे.विलोकयन् विष्व-विप्रये जेधीयते नरः॥ 99 // . अर्थ-राक्षसे अंजन आंजीने बीलाडीने राजकन्या बनावी. पछी चारे वाजु जोतो सतो ते वोल्यो के-'आटलामां मनुष्यनी | गंध आवे छे.' // 99 // - साभाषिष्ट मनुष्याह-मस्मि सांप्रतमत्र वै // कुरु त्वं यन्मनोऽभीष्टं / को निवारयितेह ते // 10 // अर्थ-कन्या बोली के-'मनुष्य तो हुँ छ, माटे अत्यारे तारा मनमां आवे ते कर, तने निवारनार अहीं कोण छे ?' // 10 // | पाणिग्रहणसामग्रीं / मुक्त्वैकत्राभवच्छुचिः // स्वाभीष्टं देवमर्चित्वा / क्षणं ध्यानेऽप्यलीयत // 1 // " अर्थ-पछी राक्षस विवाहसामग्री एक बाजु मूकीने पोते पवित्र थइ, पोताना अभीष्ट देवने पूजीने क्षणवार ध्यानमा लोन थयो. DOOODoto DO COMEDDDDDDD B // 40 // P.P.Ac Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र ||स तावत्खड्गमुत्पाट्य / विद्युइंडसहोदरं // कोणकान्निःससारेव / कंदरोदरतो हरिः // 2 // ___ अर्थ-तेज वखते विद्युतना दंड. जेवु खड्ग उंचु करीने सिंह जेम गुफामांथी बहार नीकळे तेम कुमार खूणामांथी बहार नीकल्यो. // 2 // 41 // द्वारस्थस्तमभाषिष्ट / रे पापिष्ट मदग्रतः॥ व यास्यसि नृपादीनां / हृतं चिंतामणिसमं // 3 // . ___ अर्थ-पछी द्वार पासे उभो रहीने ते बोल्यो के-'रे पापीष्ट ! हवे तुं मारी पासेथी क्या जवानो छ ? तें राजा विगेरेना चिंतामणि रत्न समान / / 3 / / जीवितं यत्त्वया तस्य / कल्मषस्यासिनामुना // समुत्तिष्ट समुत्तिष्ट / प्रायश्चित्तं ददामि ते // 4 // __अर्थ-जीवित ही छे ते पापर्नु हु आ तलवारवडे तने प्रायश्चित्त करावं छु; माटे उभो था, उभो था.'॥४॥ निशाचरोऽपि निःकपं / जापं कृत्वा घटीद्वयं // करेण कत्रिकां धृत्वा / यमजिह्वोपमामगात् // 5 // ___ अर्थ-पेलो राक्षस पण वे घडो सुधी निष्कंपपणे जाप करीने पछी यमनी जिहा जेवी की हाथमां लइने // 5 // समुत्थायोर्ध्वकेशस्तु / कुमाराभिमुखं ततः॥ कदलीकांडवत्तस्य / शिरश्चिच्छेद राजसूः॥६॥ . ___अर्थ-उंचा केशवाळो ते कुमारनी सामे थयो. तेवामां राजपुत्रे केळना कांडनी जेम तेनुं मस्तक छेदी नाख्यु.॥६॥ एवं जयं जगदनय॑मवाप चंच-द्रक्षाविधिप्रबलपुण्यचयप्रभावात् // पाणिग्रहोपकरणैः किल सानुरागं / // 41 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 42 // तेनाहृतैः स खलु तामिह पर्यणेषीत् // 7 // इति श्रीहर्षकुंजरोपाध्यायविरचिते दानरत्नोपाख्याने श्रीसुमित्रचरित्रे श्रीसुमित्रजन्मपरदेशगमनपाणिग्रहणवर्णनो नाम प्रथमः प्रस्तावः समाप्तः॥ अर्थ- प्रमाणे जगतमा अमूल्य एवो जय मेळवीने, प्रबळ रक्षाविधान तेमज प्रबळ पुण्यना प्रभावथी विपत्तिने दूर करीने G राक्षसे लावेला विवाहोपगरणोथी अनुरागपूर्वक कुमारे प्रियंगुमंजरीनुं पाणिग्रहण कयु. // 7 // // अथ द्वितीयः प्रस्तावः प्रारभ्यते // तदा प्रियंगुमंजर्या / सुमित्रः शुशुभे समं // दिव्यालंकारधारिण्या / सर्वाण्येव महेश्वरः // 1 // ____ अर्थ-दिव्यालंकार धारण करनारी प्रियंगुमंजरी साथे मुमित्रकुमार पाणिग्रहण करीने तेनी साथे सर्व प्रकारे महेश्वर जेवो शोभवा लाग्यो. // 1 // स कुमारस्तया साकं / तस्मिन्नेव पुरे स्थितः // सस्नेहं विलसदेहं / सानंदं व्यलसरसुखं // 2 // ___अर्थ-वळी ते कुमार तेणीनी साथे नगरमा रहेतो सतो स्नेह अने आनंद सहित विकसीत देहथी सुखभोग भोगवना लाग्यो.॥ सुदोलाखेलनैः पुष्प-फलावचयनादिभिः // वसंतों समायाते / चिक्रीडोद्यानकानने // 3 // अर्थ एवामां वसंतऋतु आवी एटले हिंचोळा पर सवावडे अने पुष्पो तथा फळो छुटवावरे स्थान बने काननमा तेजी कोडा करवा लाग्या. // 3 // aadeRDEDDDDDDDDDDDEMOR | // 42 // P.PAC Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhal Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 43 // DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDEDD जलकेलिमथो नद्या-मेकदा कुर्वतोस्तयोः // जढे प्रियंगुमंजर्याः / कल्लोले कंचुकं तु यत् // 4 // 9 अर्थ-एकदा नदीमा पेसीने जळक्रीडा करतां मियगुमंजरीनो किनारे मूकेलो कंचुक जळ-कल्लोलमां तणाइ गयो. // 4 // पयःक्रीडां गतव्रीडां / कृत्वा तीरमुपागतो // सा खवेषे न चैक्षिष्ट / दिव्यं कूर्पासकं खकं // 5 // ___अर्थ-लज्जारहितपणे जळकोडा करोने किनारापर आव्या त्यारे प्रियंगुमंजरीए पोताना कपडामां कंचुक न दीठो // 5 // ततो नृपांगजं प्राह / स्वामिन् स मम कंचुकः / / अत्रैवासीद्गतः क्वापि / ज्ञायते नैव दृश्यतां // 6 // ___अर्थ-एटले तेणे राजकुमारने कयु के-'हे स्वामिन् ! मारो कंचुक अहींज मूक्यो हतो ते क्यां गयो तेनी खबर पडती नथी. सुमित्रः सर्वतः पश्यन् / जलस्थलनभःस्वपि // नो लेभे कंचुकं रत्नं / बोधिबीजमभव्यवत् // 7 // अर्थ-ते सांभळीने सुमित्रे जळमां, स्थळमां, आकाशमां सर्वत्र जोयु, पण अभव्य जीव जेम बोधिबीज न पामे तेम तेनो कंचुक मळी शक्यो नहीं. // 7 // ततः कुमारस्तामूचे / प्रिये चल गृहप्रति // अन्येऽपि बहवः संति / तादृशा एव कंचुकाः // 8 // अर्थ-एटले कुमारे तेने का के-'हे पिया ! महेल तरफ चाल, त्यां आ कंचुकनी जेवा बोजा घणा कंचुको छे, // 8 // | तन्मध्ये रोचते तुभ्यं / यस्त्वया ग्राह्य एव सः॥ इत्युक्त्वा स तया साकं / समायातः स्ववेश्मनि // 9 // - अर्थ-तेमाथी तने गमे ते ग्रहण करजे.' आ प्रमाणे कहीने पिया साथे ते राजमहेलमा आन्यो. // 9 // DODDDDDDDDARDODOODOOD 11- PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 44 // एवं सह तया तत्र / सुखं वैषयिक भजन // कियंतमक्षिपत्कालं / लीलया राजनंदनः॥१०॥ अर्थ-लीलापूर्वक तेनी साथे विषयसुख भोगवतां ते कुमारे केटलोक काळ व्यतीत कर्यो. // 10 // इतथ कंचुको नद्याः। प्रवाहे स वहन् ययो॥ ततो दूरमपि क्षिप्र-मुपश्रीविजयं पुरं // 11 // अर्थ-आ वाजु नदीना प्रवाहमा तणातो कंचुक त्वरित गतिथी श्रीविजयनगर नजीक नीकळ्यो. // 11 / / प्रविश्य तारकेणासौ / गृहीत्वा दिव्यकंचुकः // मकरध्वजराजस्यो-पाढोकि परया मुदा // 12 // व अर्थ-तरीयाए नदीमा प्रवेश करीने ते कंचुक लइ लीधो अने अत्यंत आनंदथी मकरध्वज राजाने भेट को. // 12 // सूत्रकप्रोत-मुक्ताजालकमंडितं / / तथामूल्यैः स्फुरद्रत्नै-दृष्ट्वा तं मुमुदे नृपः // 13 // म अर्थ-सोनानी दोरी अने मणिनी जाळथी शोभता एवा ते कंचुकने जोड़ने राजा आनंद पाम्यो. // 13 // तं सत्कृत्य सुवर्णस्या-लंकारैः पृष्टवन्नृपः // कुत्रा, प्राप्तवान् भद्र / सोऽवोचन्निम्नगांतरे // 14 // ___अर्थ-ते तरीयानु सोनाना अलंकारथो सन्मान करीने राजाए तेने पूछ्यु के-'हे भद्र ! तने आ कंचुक क्याथी प्राप्त थयो ? a सादरं तद्विरं पीत्वा / दध्यो राजा भुजांतरे // नूनं सा रमणीरत्नं / यस्याः कूर्पासकोऽस्त्ययं // 15 // ___ अर्थ-त्यारे प्रत्युत्तरमा तेणे जणाव्यु के-' नदीना मध्यभागमांथो.' आ प्रमाणे आदरपूर्वक तेनी वाणी सांभळी राजा विचारवा लाग्यो के-'खरेखर ते स्त्री-रत्न छे के जेनो आ कंचुक छे. // 15 // DDDDDDOO DIDIODEODOODHOLTDOO ना॥४४॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम सुमित्र- सा चेन्मिलति मे रामा। चिंतामणिरिवाद्भुता // संसारसागरे ह्यस्मिं-स्तदा प्राप्तं न किं मया // 16 // / अर्थ-चिंतामणी जेवी अद्भुत ते स्त्री जो मने प्राप्त थाय तो पछी आ संसारसागरमा हुं शुं न पाम्यो ? अर्थात् सर्व वस्तु पाम्यो गणाउं. // 16 // // 45 // | विचिंत्येति नृपः कामी / स्त्रीप्रियः क्षत्रियवजैः॥ संकुलायां विशालाक्षः। सभायामभ्यधादिति // 17 // ___ अर्थ-आ प्रमाणे विचारीने स्वीना लालचु, कामी अने विशाळ नेत्रवाळा ते राजाए उत्तम क्षत्रियोथी पूर्ण सभामां आ प्रमाणे जाहेर कयु के-॥ 17 // वारवाणोऽस्त्ययं यस्याः। कामिन्याः कमलालयः॥ तामेव कोमलालापां। यो मेलयति मामिह // 18 // अर्थ-लक्ष्मीना गृहतुल्य जे कामिनीनो आ कंचुक छे ते कोमळ आलापवाळी खो जे मने मेळवी आपशे, // 18 // स्वेच्छया याचितं तस्मै / ददामोति पणो मम // इत्युक्तेऽपि न जग्राह / कोऽपि तत्पाणिबीटकं // 19 // ___अर्थ-तेने तेनी इच्छाबडे जे मागशे ते हु आपीश. आ प्रमाणे हुं प्रतिज्ञा करूं छु.' आम कहे सते पण कोइए तेना हाथर्नु बीडु ग्रहण कर्यु नहीं. // 19 // सिद्धसोकोत्तरी तस्मिन् / प्रस्ताव गणिकाग्रणीः // वैरिणीति यथार्थाख्या। तत्रासीद्वाजपर्षदि // 20 // ___अर्थ-ते वखते राजसभामां सिद्धसीकोत्तरी (नी सहायतावाळी) वैरिणी एवा यथार्थ नामवाळी कोइक गणिकामां मुख्य 9 गणाती वेश्या बेठी हती ते चोली के-॥ 20 // . fol // 45 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् तव चित्तं हृतं राजन् / यया दूरस्थयापि सा // मयावश्यं समानीया / ललना लोललोचना // 21 // | अर्थ- हे राजन् ! दूर रह्या छतां पण जे स्त्रीए तमारा चित्तने हरण कयु छे ते चपळ लोचनवाळी स्त्रीने हुँ अवश्य अहीं लइ | आवीश. / / 21 // 46 // सोचे शक्त्या च भक्त्या च / मेलनीया त्वया प्रभो // उक्त्वेति नृपतेर्हस्ता-हीटकं जगृहे तया // 22 // ____ अर्थ-हे स्वामिन् ! शक्तिथी तेमज भक्तिथी तमने ते स्त्री हुँ मेळवी आपीश.' आ प्रमाणे कहीने तेणे राजाना हाथर्नु बीईं। ग्रहण कयु. // 22 // कार्यादौ सेवकाः स्तुत्या / इति नीति विचार्य तां // स्तुत्वा मुखाग्रतोऽत्यंतं / कार्यार्थी विससर्ज सः // 23 // . अर्थ-ते वखते ' सेवकोनी कार्यना मारंभमांज प्रशंसा करवी.' ए नीतिने अनुसरीने राजाए स्वमुखे तेनी खूब प्रशंसा करीने | नतेने रजा आपी. // 23 // इतः सा गणिका नद्या / ऊर्ध्वभागे निरंतरं // व्रजंती दूरतोऽगच्छ-त्पश्यंती वनपर्वतान् // 24 // _अर्थ-हवे ते गणिका नदीना उपरना भाग तरफ चालवा लागो. ए प्रमाणे निरंतर चालतां घणे दूर गइ, घणा वन पर्वतोने जोया. तत्रैव निम्नगासन्न-पुरोधाने मनोरमे // सापश्यदंपती तो तु / क्रीडारसपरायणो // 25 // / अर्थ-ए प्रमाणे चालतां ते नदीनी नजीक रहेला एक नगरना सुंदर उद्यानमां आवी, त्यां क्रीडा रसमा परायण एवा दंपती (सुमित्र ने प्रियंगुमंजरो) ने तेणे जोया. तेने जोइने विस्मयथी व्याप्त थयेला मनवाळी ते वैरिणी क्षणमात्र तो विचारवा लागी के DOOOOOD GODDD @ DOODOOREE DDOOOOOOOOOOOOOGaनन // 46 // Jun Gun Aaradhaltrust PP.AC Gunratnasun M.S.
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________________ चरित्रम् सुमित्र। अहो रूपमहो कांति-रहो लावण्यमद्भुतं // अहो भाग्यातिरेकत्व--महो लीला तयोरियं // 26 // 9 अर्थ-अहो रुप ! अहो कांति ! अहो अद्भुत लावण्य ! अहो भाग्याधिकता! अहो एमनी लीला / / 26 / / // 47 // किमिदं खेचरद्वंद्वं / किं पौलोमीसुरेश्वरौ // वैरिणीति क्षणं दध्यौ / विस्मयस्मेरमानसा // 27 // ___अर्थ-शुआ ते कोइ विद्याधरनुं जोडलं छे अथवा शुं इंद्राणी ने इंद्र भूमिपर क्रोडा करवा आव्या छे ?' आ प्रमाणे विचारती | ते गणिकाए // 27 // प्रियंगुमंजरीं दृष्ट्वा / ताहक्कूर्पासधारिणीं // नूनं सैषा भवत्येव / राज्ञश्चित्तं हृतं यया // 28 // ___अर्थ-राजाने मळेला ते कंचुकनी जेवाज कंचुकने धारण करनारी प्रियंगुमंजरीने जोइ, एटले तेणे निश्चय कर्यो के-'जरुर आ तेज स्त्री छे के जेणे मारा राजना मनतुं हरण कयु छे.' // 28 // फलवान् मत्प्रयासोऽभू-दद्य जागरितं खलु // मद्भाग्यैर्यत्तु दृष्टेय-मित्यंतः सा व्यचिंतयत् // 29 // __अर्थ-वळी तेणे विचायु के-'मारो प्रयास फलिभूत थयो छे, जागता एवा मारा भाग्यवडेज मने आ स्त्रीनो पत्तो मळ्यो छे.' सिद्धसीकोत्तरीभावा-स्वरूपं सकलं खलु // ज्ञात्वा प्रियंगुमंजर्या-स्ततः कपटपंडिता // 30 // ____ अर्थ-पछी ते सिद्धसीकोत्तरीना प्रभावथी पियंगुमंजरीना सर्व स्वरुपने जाणी लइने कपट करवामां चतुर एवी ते वेश्या ।३०।तस्यैवोद्यानसामीप्ये / मार्गतीरे तरोस्तले // वदंती. नाम भपादे-स्तारं तारं रुरोद सा // 31 // DODDDDDDDDDDDDDDDDDDDD | // 47 // PP.AC.Guriratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 48 // _ अर्थ-तेज उद्यानना समीपना मार्गने छेडे एक वृक्षनी नीचे बेसीने राजा विगेरेना नामो लइ अत्यंत रुदन करवा लागो.॥ न त्यक्त्वा क्रीडा क्षणादेव / श्रुत्वा तत्परिदेवनं // आजग्मतुः पुरस्तस्या / दंपती तो दयापरी // 32 // ___अर्थ-तेनुं रुदन सांभळीने तरतज क्रीडा तजी दइने दया-परायण एवा ते दंपती तेनो पासे आव्या. // 32 // अत्यंतं विलपंती तां / दृष्ट्वावोचत्कुमारराट् // का त्वं मुग्धे व वा चात्र / कानने हंत रोदिषि // 33 // - अर्थ-तेने अत्यंत विलाप करती जोइने कुमारे पूछ्यु के-'हे मुग्धे ! तु कोण छे अने आ बगीचामां आवीने शामाटे रडे छ? | साभाषत दयाधार / शृणु मदुःखकारणं // कनकाख्ये पुरे ह्यस्मिन् / भूपोऽभूत्कनकध्वजः // 34 // ___अर्थ-एटले ते गणिका बोली के-'हे दयाना आधारभूत कुमार ! मारा दुःख कारण सांभळो ! आ नगरनो राजा जे कनकध्वज हतो // 34 // व स्वसाहं तस्य विख्याता | नाम्ना कमलसुंदरी // बाल्यं वयः समुल्लंघ्य / तारुण्यमलभे लसत् // 35 // अर्थ-तेनी हु कमळमुंदरी नामनी प्रख्यात व्हेन छु. हु बाल्यवयर्नु उल्लंघन करीने सुंदर तरुणावस्था पामी / / 35 / / शतयोजनदूरस्थ-मितोऽस्ति नगरं महत् // नाम्ना शंखपुरं तत्र / राजा शंखाभिधोऽभवत् // 36 / / | अर्थ-एटले अहींथी सो योजन दूर शंखपुर नामर्नु नगर छे तेनो शंख नामनो राजा / / 36 / / - |पर्यणैषीस मामत्रा-गत्य रूपवती सती // पितृदत्तां तदायत्तां / महोत्सवपुरस्सरं // 37 // // PP Ad Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरि // 49 // | अर्थ-त्यांथी अहीं आबीने महोत्सव पुरःसर मातापिताए आपेली एवी मने रुपवती सतीने ते परण्यो. // 37 // विवाहानंतरं भर्चा | सहाहमचलं सुखं // इतोऽखंडप्रयाणैश्चा-गच्छं श्वशुरमंदिरं // 38 // __ अर्थ-विवाह थया पछी हु भरिनी साथे सुखपूर्वक शंखपुर जवा चाली अने अखंड प्रयाण करतां अंमे श्वसुरमंदिरे पहोंच्या. बहुकालं सुखं भुक्तं / मया भर्तुः प्रसादतः // क्रमेणाजनि पुत्राणां / त्रयं मत्कुक्षिसंभवं // 39 // अर्थ-में भरिनी दयाथी बहु काळ सुधी सुख भोगव्यु. अनुक्रमे मारी कुतिथी त्रण पुत्रो थया. // 39 // दिवं गतः श्रुतस्तातो / बांधवे कनकध्वजे // राज्यप्राप्तिः प्रिया तस्य / श्रुता कनकमंजरी // 4 // ___अर्थ-एवामां में सांभळ्यु के-'मारा पिता स्वर्ग गया छे अने मारा बंधु कनकध्वजने राज्यमाप्ति थइ छे. तेनी राणी कनकगंजरी नामें छे. // 40 // प्रियंगुमंजरी नाम / मभ्रातुः पुत्रिका मया // श्रुता सर्वगुणोपेता। रुपेण रतिसन्निभा // 41 // ___ अर्थ-अने तेने प्रियंगुमंजरी नामे पुत्री थइ छे के जे सर्वगुणसंपन्न छे तेमज रुपवडे रति जेबी छः // 41 // मद्भात्रा प्रेषितं स्नेहा-द्वस्त्राभरणखादिमं // लेभेऽहं बहुशो वारान् / यतः स्त्रीसुखदं हि तत् // 42 // अर्थ-मारा भाइए स्नेहवडे मोकलेल वस्त्राभरणादि घणा वखत सुधी मने मळ्या कयु. स्त्री जातिने ए हकीकत सुख आपनारी छे. // 42 // DOOOOOOOOOOO HD HOTE * // 40 // | // 49 // Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ सुमित्र // 50 // सांप्रतं दैवयोगेन / मद्भर्तरि दिवं गते // येन / हृतं राज्यं मृताः सुताः॥४३॥ | अर्थ-हमणा दैवयोगे मारा भर्तार मरण पाम्या अने शत्रुओए बहु सैन्यवडे आवीने राज्य लइ लीधुं, मारा पुत्रो पण मरण पाम्या. // 43 // अहं त्वेकाकिनी दुःख-दग्धा दैवविडंबिता // जीवग्राहं ततोऽनश्यं / यूथभ्रष्टा मृगीव हा // 44 // व अर्थ-देवे विडंबना करेली अने दुःखवडे दग्ध थयेली हुं एकली जीव लइने त्यांथी यूथभ्रष्ट थयेली हरिणीनी जेम भागी.॥४४॥ | रतिमन्यत्र नापाह-मतः स्वस्मिन् सुखार्थिनी / / भ्रातृगज्ये समायाता / मन्मनोरथपूरिता // 45 // __अर्थ-डे घणे स्थाने भमी पण कोइ स्थाने मने सुखनी प्राप्ति थइ नहीं, तेथी सुखनी अर्थी एवी हुं मारा मनोरथ अहीं पूर्ण - थशे एम धारीने मारा भाइना राज्यमां आवी. // 45 // | सर्व शुन्यमिदं दृष्ट्वा / क्षते क्षाराधिरोपणं // इव जज्ञे ममेदानी-मतोऽहं रोदिमीह भोः॥ 46 // | अर्थ-परंतु अहीं सर्व शून्य जोइने मने तो क्षत उपर क्षारर्नु अधिरोप थाय तेवू अत्यंत दुःख उत्पन्न थयुं तेथी हे कुमार! | हुँ रुदन करुं छु.॥४६॥ इतः प्रियंगुमंजर्या / बभाषे वल्लभंप्रति // स्वामिन् पितृस्वसेयं मे / तव श्वश्रूः समागता // 47 // | अर्थ-आ प्रमाणेनी तेनी वात सांभळीने पियंगुमंजरीए पोताना भर्तारने कयु के-हे स्वामिन् ! आ मारा पितानी व्हेन ने तमारी फुइ सासु आवी जणाय छे.' // 47 // नानाD DEAD DDDDDDDDDDDDDED PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ समित चरित्रम् 51 // DACODODDOGOPEEDEDDDDEED इत्युत्क्वा तत्क्षणादेत्य / लगित्वा कंठकंदले // पितृस्वसुः सुमित्रस्त्री। रुदत्येवमभाषत // 48 // ___अर्थ-आम कही तत्क्षण पोतानी फइबाने गळे वळगीने सुमित्रनी स्त्री रोवा लागी अने बोली के- // 48 // हा जाता दारुणावस्था / तवापि कथमीहशी // दोषोऽथवा विधेरेव / यत्सतां विपदागमः॥४९॥ ____ अर्थ-हा इति खेदे ! तमारी पण आवी दारुण अवस्था केम थइ ? परंतु एमां विधिनोज दोष छे के जे सज्जनोने विपत्तिमां नानाखे छे. // 49 // |सापि कूटकुटी प्राह / वत्से ब्रहि शुभाशये // कनकध्वजजातासि / प्रोवाचामनपांगजा // 50 // ___अर्थ-गणिका पण अत्यंत कपटभावथो बोली के-'हे वत्से ! हे शुभाशये ! तुं कनकध्वजनो पुत्री छे ए वात मने सत्य कहे ? प्रियंगुमंजरीए हा पाडी / / 50 // श्रुत्वेति प्रोच्छलच्छोका-मेतामालिंग्य वैरिणीं // रुरोद रोदसीकुक्षि-भरिभूध्रप्रतिस्वनः॥५१॥ अर्थ-एटले ते सांभळीने जाणे अत्यंत शोक उत्पन्न थयो होय तेम ते वैरिणी पोताना रुदनना स्वरवडे आकाशने भरी देती - सती अत्यत रुदन करवा लागी. // 51 // महा भ्रातृजे तवापीह / मदार्तिकं दुर्दशाभवत् // क्व मे भ्राता गुणैः ख्यातो। नाम्ना श्रीकनकध्वजः / 52| . अर्थ-पछी ते बोली के-'हे भत्रीजी ! मारी जेम तारी पण दुर्दशा केम थइ ? अरे ! अरे ! कनकध्वज नामनो गुणधी प्रसिद्ध एवो मारो बंधु क्यां? // 52 // // 51 // P.P. Ac Gunratrasuri MS. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 52 // GOODHOODDDDDDDDDDDDEEO म भ्रातृजाया व वां मंजू-रूपा कनकमंजरी // क्व वा लोकोऽदृष्टशोकः / शून्यं किं नगरं ह्यदः // 53 // ____ अर्थ-सुंदर रुपवाळी कनकमंजरी नामनी मारी भोजाइ क्या ? नगर जनो क्यां ? आ नगर शून्य-निर्जन केम छे ?'153 // प्रियंगुमंजरी सवै / सगद्गदगिरा जगौ // समाकर्ण्य पुनर्वेश्या / विललाप सुदुस्सहं // 54 // ____ अर्थ-प्रियंगुमंजरोए गळगळा अवाजे बधी वस्तुस्थिति कही, ते सांभळीने ते वेश्या अत्यंत विलाप करवा लागी के-॥५४॥ हा दैव किमरेऽकारि / त्वयोत्तमविडंबक // मदभ्रातृपुत्रिकाहं च / महादुःखे निपातिते // 55 // - अर्थ-'हे देव ! हे उत्तम पुरुषने विडंबना पमाडनार ! मने अने मारी भत्रीजोने गाढ दुःखमां नाखीने तें आ शुं कर्यु ? जानेऽद्यापि ममास्त्येव / किंचित्पुण्यं पुराकृतं // जामाता भ्रातपुत्री च / मिलितौ मे जयान्वितौ // 56 // ____ अर्थ-छतां पण हुं मार्नु छु के मारुं पूर्वकृत पुण्य कांइक जागतुं छे के जेथी जयकारी जमाइ अने भत्रीजी मने प्राप्त थया.' // अथाग्रहेण महता / सा निन्ये निजमंदिरे // ताभ्यां विमलचित्ताभ्यां / जंगमापदिवोत्कटा // 57 // ____ अर्थ-त्यारबाद. निर्मळ-कपट रहित मनवाळा ते बन्ने जीवती जागती आपत्तिनी जेवी ते वेश्याने अत्यंत आग्रह सह पोताना मंदिरे लइ आव्या.॥ 57 // 9 कियत्यपि गते काले / समाराधयतोस्तयोः // वस्त्राहारादिभिनित्यं / कुलदेवीमिवापरां // 58 // - अर्थ-अने बीजी कुलदेवीनी जेम वस्त्र आहार विगेरेथी तेनी भक्ति करवामां आवी. ए प्रमाणे हमेश सन्मानित कराते सते DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDLER 52 // Jun Gun Aaradhasst PPA Guntarasur MS
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 53 // DADDDDDDDDDDDDDDDDDDDED केटलोक समय बीत्या बाद, / / 58 // एकदा नृपजा पृष्टा / तया कुटिलचित्तया // वत्से कोऽयं कथंकारं / त्वमूढानेन तद्वद // 59 // ___ अर्थ-कुटिल मनवाळी ते. वेश्याए राजपुत्रीने पूछ्यु के-'हे पुत्री ! आ तारा पति कोण छे? अने तु केवी रीते तेनी साथे परणी ? ते कहे' // 59 // | साप्यूचे श्रूयतां मातः / सम्यग्जाने न कोऽस्त्ययं // दुर्दीतराक्षसं हत्वा / परिणीतास्मि तेन च // 6 // | अर्थ-तेणीए कयु के-'हे माता ! सांभळो ? आ कोण छे ते 9 योग्य रीते जाणती पण नथी, भयंकर एवा राक्षसने हणोने 9 ते मने परण्या छे. // 60 // | पुनरूचे तया पण्य-स्त्रिया सगद्दस्वरं // आधारोऽस्त्यावयोरत्र / वत्सेऽसावंधष्टिवत // 61 // ___ अर्थ-आ प्रमाणे सांभळीने तेणीए गळगळा सादे कडधु के-'आंधळानी लाकडीनी जेम आपणा बन्नेनो ते एक-मात्र आधार छ, मनोऽनेन मया ह्यस्मा-लज्ज्यतेऽतस्त्वयैव हि // एकांते कांतमाकार्य | कथनीयमिति स्फुटं // 62 // | अर्थ-तेनी साथे बातचीत करतां मारुं मन सहज शरम अनुभवे छे, तेथी तारे तारा वल्लभने (पतिने) एकांतमां आ प्रमाणे व स्पष्ट कहेवु के-।। 62 // शुन्येऽस्मिन्नगरे यक्ष-राक्षसादिभयाकुले // निश्चितं स्थीयते नाथ / किमर्थं काननोपमे // 63 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Sun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 54 // ____ अर्थ-हे नाथ ! यक्ष-राक्षस विगेरेना भयनी शंकायुक्त अने जंगलनी जेवा आ शून्य-उज्जड नगरमां आपणे शामाटे रहेQ | जोइए ? // 63 // कुत्रचिवसतिस्थाने / गम्यते चारु तत्प्रभो // त्वया ममाग्रतो वाच्य-मित्युक्ते यददत्यसो // 14 // अर्थ-माटे हे प्रभु! सुंदर वसतिवाळा स्थानमा रहेठाणमां आपणे जइए तो सारं.' // 64 / / प्रियंगुमंजरी मुग्धा / मेने तद्वचनं तदा // प्राप्यैकांतस्थितं कांतं / तथैव तदचीकथत् // 65 // ___ अर्थ-भोळी एवी प्रियंगुमंजरीए आ वचन सत्य मान्यु अने एकांत स्थान प्राप्त करीने तेणे पतिने उपरोक्त बीना जणावी.।६५। विहस्याथाब्रवीदेनां / सोऽपि वीरशिरोमणिः / / मा भैषीर्भिरुरंभोरु / यतो मे भीः कुतोऽपि न // 66 // ___अर्थ-वीरपुरुषोमां अग्रणी एवा तेणे वात हसी काढीने कयु के-'हे पिया ! तारे जरापण व्हीवु नहि, कारण के मने F कोइना तरफथी भयनी बीलकुल आशंका नथी, // 66 / / . तत्किं कारणमित्युक्ते / तया मधुरभाषया / कुमारः साहसागारो / दाक्षिण्यैकनिधिर्वरः // 67 // ____ अर्थ-' तेनु शु कारण ?' एम मधुर वाणीबडे स्त्रीए पूछतां साहसना घररुप अने चतुराइना भंडाररुप / / 67 // स्त्रीणां गुह्यं न वक्तव्यं / प्राणैः कंठगतैरपि / / भवितव्यतयावोच-निति नीतिं विदन्नपि // 68 // ___ अर्थ- कुमारे गळे प्राण आवे तो पण स्त्रीने गुप्त वात न कहेवी ए नीतिवाक्य जाणतां छतां, नसीवयोगे कयु के-॥ 68 // @@@@DODDDDDDDDOODae // 54 // Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.GunratnasuriM.S.
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________________ रक्षाविधानकं भद्रे / यावसिद्धनरार्पितं // ममास्य करवालस्य / मुष्टिमध्ये प्रवर्तते // 69 // ____ अर्थ-'हे भद्रे ! ज्यां सुधी सिद्धपुरुषथी अर्पण करायेल रक्षाविधान मारा खड्गनी मुठमा रहेल छे, // 69 // तावदेतत्प्रसादेन / प्रागर्जितवृषादिव // अजेय्योऽस्मि जगन्मध्ये / सुरासुरनरैरपि // 7 // ___ अर्थ-त्यां सुधी तेना चमत्कारथी आ जगतमा सुर, असुर अने मनुष्योथी पूर्वोपार्जित धर्मथी होय तेम हुँ अजेय छु.॥७०॥ यद्येतदैवयोगेन / गच्छेद्यद्वा विनश्यति / / लगंति मेऽरिराजीव-देकदैवापदस्तदा // 71 // ___ अर्थ-जो दैवयोगे ते जाय के विनाश पामे तो मने शत्रुनी श्रेणी तेमज आपत्तिओ पण उपद्रवकारी थाय' // 71 // इत्याकान्यदा तस्याः / कुहिन्याः पुरतो ह्यदः॥ कुमारकथितं सर्व-मूचे मुग्धतया तया // 72 // अर्थ- प्रमाणे हकीकत जाण्या पछी प्रियंगुमंजरीए मुग्धपणे ते बधी वात पेली कुटिनीने कही संभळावी. // 72 / / / ज्ञात्वा जहर्ष तन्मर्म / सा निःकारणवैरिणी // अन्यदा श्रीकुमारस्य / प्रारंभे स्नपनक्रियां // 73 // ____ अर्थ-सुमित्र कुमारनो मर्म जाणीने निष्कारण वैरिणो एवी वैरिणोए अन्यदा कुमारनी स्नानक्रिया पोताने हाथे करवा मांडी. खलितैलाविले शीर्ष-मुखे श्रीकुमरस्य च // खड्गमुष्टिं ज्वलच्चुह्री-वह्रौ चिक्षेप सैधवत् // 74 // अर्थ-खळ अने तेलथी व्याप्त मुख ने मस्तकवाला कुमारने करीने ते दुष्टाए तेना खड्गनी मुठ बळता एवा चुलामां नाखी दीधी. // 74 // .. // 55 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P Ac Gunratnasur MS
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 56 // | रक्षाविधानयुक्खड्ग-मुष्टिर्भस्मकतां ययौ // सर्वापद्योगतस्ताव-कुमारोऽपि मुमूर्छ च // 75 // ___अर्थ-एटले ते तरतज काष्टनी जेम बळी गइ. रक्षाविधान युक्त खड्गमुष्टि रक्षारुप थइ गइ एटले सर्व प्रकारनी आपत्तिना | योगी कुमार मूर्छित थयो. // 75 // मिथ्या हाहारवश्चक्रे / मायाविन्या तया तदा // कार्यातरं परित्यज्य / तावदागान्नृपांगजा // 76 // अर्थ-ते वखते पेली मायावी वेश्याए मिथ्या हाहारव कर्यो, एटले बीजा काम तजी दइने तरतज राजपुत्री त्यां आवी. // | निश्चेष्टं पतितं वीक्ष्य / भर्तारं मूर्छया भुवि // तामपृच्छदिदं तेंब / जामातुः किमजायत / / 77 // ___ अर्थ-त्यां भर्तारने मूर्छित थइने पृथ्वीपर पडेल जोइ तेणे पेली वेश्याने पूछयु के-'तमारा जमाइने आम एकाएक शुं थयुं ?' न जानेऽहं तयोक्तेषा / खड़गमष्टिं विलोक्य च // भस्मीभतां ज्वलद्वहो। स्मृत्वोक्तं भर्तरात्मनः // 7 // ___अर्थ-ते बोली के-'तेनुं कारण हुँ कांइ जाणती नथी. ते वखते प्रियंगुमंजरी खड्गमुष्टि तपासवा लागी त्यां तेने अग्निमां | भस्मीभूत थयेली जोइने तेने पोताना पतिनां वचनो याद आध्यां / / 78 // विचक्षणा क्षणं स्थित्वा / ततः सा हृद्यचिंतयत् // नूनमस्या ह्यदः कार्य / शाकिन्या इव दुर्धियः // al अर्थ-पछी क्षणधार विचार करतां ते विचक्षणा हृदयमां समजी गइ के-"जरुर आ कार्य आ शाकिनी जेवी माठी बुद्धिवाळी स्त्रीमुंज छे.' // 79 / / ... DOODOODHD DODDDDDDDDDODE पावना पातना पचना याद आच्या.॥ 78 / / // 56 // PPAC Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ all. . . सुमित्र ततोऽसौ नृपजा शोक-द्विधाभूतमना इव // रुरोद रोदसीकुक्षि / पूरयंती प्रतिखनैः // 8 // __ अर्थ-ते वखते राजपुत्री शोकथी वे विभाग यइ गयेला मनवाळी होय तेम अत्यंत रुदन करवा लागी के जेना प्रतिध्वनियी | आकाश ने भूमिनो मध्यभाग पूराइ गयो. // 80 // | हा वल्लभ रहस्युक्तं / नावदिष्यमहं पुनः॥पापिन्या अग्रतः कष्ट-मभविष्यत्कथं तव // 81 // ___ अर्थ-ते मनमां बोली के-'हा वल्लभ तमे एकांतमां कहेली वात जो में आ पापिणीनी पासे करी न होत तो आ कष्ट उत्पन्न थात नहीं.॥ 81 // हाहा प्राणेश हा नाथ / हा दयांभोनिधे तव // मर्मवाक्यं मया प्रोक्त-मस्यास्तु पुरतः किमु // ____ अर्थ-हा माणेश! हा नाथ ! हा दयांभोनिधि ! में तमारां मर्मवाक्य आ दुष्टानी पासे शा माटे कह्यां? // 82 / / संसारेऽस्मिन्नसारेऽहं / त्वां विना जीवितेश्वर / कारागार इवोषित्वा / जीवंत्यपि करोमि किं // 3 // | अर्थ-हे जीवतेश्वर ! आ असार संसारमा तमारा विना कारागृहनी जेम रहीने हुं जीवती पण शुं करी शकुं? // 83 // नावदेकजीवितां दीनां मामवज्ञाय तिष्टसि // मौनमाधाय किं स्वामिन् / देहि वाचं सुधोपमां // 8 // | ____ अर्थ-हे स्वामिन् ! तमारी साथे एकजीववाली ने दीन एवी मारी अवज्ञा करीने तमे मौन धारण करीने केम रखा.छो? मने अमृत जेबी वाणीवडे काइक जवाब तो आपो ? // 84 / / 82 // जब ROMDERनननननननन // 57 // PR.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ ममित्र चरित्रम् // 58 // इत्थं स्नेहसुरायोगा-दिवानेकप्रकारतः // विलप्येति महादुःख-पूरिता सा मुमूर्छ च // 85 // अर्थ-आ प्रमाणे स्नेहरुप मदिराना योगथी होय तेम अनेक प्रकारना विलाप करती अने महादुःखवडे प्रपूरित थयेली ते पण मूर्छा पामी. // 85 // | तावत्तया क्षणादेव | बहुशीतोपचारतः // कृत्वा सचेतनां राज-कन्यामृचे स्फुरद्विरा // 86 // अर्थ-पछी घणा शीतोपचारवडे थोडा वखतमां राजकन्याने सचेतन करोने स्फुरायमान वाणीवडे पेली वेश्या बोली के-1८६। मूर्ख न जानासि / मत्स्वरूपं यदीदृशं // त्वदर्थ यन्मया सिद्ध-सीकोत्तर्या कृतं शृणु // 87 // - अर्थ-'अरे मूर्ती ! तुं मारा आ स्वरुपने जाणती नथी के में सिद्धसीकोत्तरीए तारा माटेज आ वधो प्रपंच रच्यो छे, तेनुं कारण सांभळ ? / / 87 // शतयोजनदूरस्थ-मितोऽस्ति विजयं पुरं // अयत्नादर्शतां याति / यद्वप्रः सुरयोषितां // 88 // ___अर्थ-अहींथी सो योजन दूर बिजयपुर नामर्नु नगर. छे, जेनो गढ देवांगनाओने रत्नविनाना आदर्श (काच) जेवो छे. // 88 // कल्पवृक्षसमैत-नरैयदेवमंदिरः॥ अप्सरस्तल्ययोषिद्भिः। समनोभिर्मनोरमं // 89 // ___ अर्थ-ते नगर कल्पवृक्ष जेबा दातारोवडे, अनेक देवमंदिरोबडे, अप्सरा जेबी स्वीओवढे अने देव जेवा मनुष्योवढे मनोरम छे. अमूल्यैः स्वच्छमधुरै-मणीभिः स्फुरदंशुभिः // सारं बिडौजसा स्वस्याः / पुरो न्यासीकृतं किल // 9 // // 58 // P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 59 // __अर्थ -अमूल्य अने स्वच्छ एवा अमृतवडे तेमज स्फुरायमान कांतिवाळा मणिओवडे इंद्रेज जाणे पोतानी सारभूत वस्तुओ अहीं राखी न होय एम जणाय छे. // 9 // नानारामसरित्कूप-तडागमठमंदिरैः // लंकातोऽप्यधिकं मन्ये / जनानां सुखदायकं // 91 // अर्थ-अनेक बगीचाओ, नदीओ, कुवाओ, तळावो, मठो अने मंदिरोवड़े लंकाथी पण अधिक शोभावालू ने जनोने सुखदायक ते नगर छे. / / 91 // तत्रास्ति रूपलावण्य-ललितांगो लसबलः॥ यथार्थाभिधया ख्यातो। राजा श्रोमकरध्वजः // 92 // ____ अर्थ-ते नगरमां रुपलावण्यवडे ललित अंगवाळो अने उल्लसायमान चित्तवाळो श्रीमकरध्वज नामनो यथार्थ अभिधानवाळो राजा छे. // 92 // | औदार्यधैर्यगांभीर्य-गुणरत्नौघसागरः // प्रतापाक्रांतदिक्चक / ऋध्ध्या शक्रसमोऽस्ति यः // 93 // ___ अर्थ-ते राजा औदार्य, धैर्य, गांभीर्य विगेरे गुणरत्नोना समुद्र जेवो, प्रतापवडे आक्रांत करेली दिशाओवाळो अने ऋद्धिवडे | इंद्र जेवों छे. // 93 // | तस्य हस्तेऽन्यदा कश्चि-दिव्यमानीय कंचुकं // ददौ सभोपविष्टस्य / लब्धं नद्याः प्रवाहतः॥ 94 // | अथे-सभामां बेठेला एवा तेना हाथमा अन्यदा कोइक दिव्य कंचुक नदीना प्रवाहमा तणाइने आवेलो कोइ माणसे लावीने | आष्यो. / / 94 // P.P. AC Gunralasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्र CHOTEa aana@ दृष्ट्वा तं कंचुकं रम्यं / बहुलांतःपुरोऽपि सः // अप्यकार्षीददृष्टायां / स्वं मनो निश्चलं त्वयि // 95 // अर्थ-ते कंचुक जोइने घणी अंतःपुरीओवाळा छतां ते राजाए अदृष्ट एवी ते कंचुक धारण करनारी तारी उपर पोताना मनने निश्चळ कयु.॥९५॥ नानाहं वैरिणी वत्से / सर्ववेश्याशिरोमणिः // त्वत्कृतेऽत्राहमागच्छं / लात्वा तत्करबीटकं // 96 // ___ अर्थ-तेथी तने लाववा माटे हे वत्से ! ते राजाए सभामां धरेलुं बीडं में सर्व वेश्यामां शिरोमणि एबी वैरिणीए ग्रहण कयु अने तने लइ जवा माटे हुँ अहीं आवी. // 96 // सिद्धसीकोत्तरीभावा-मायां कृत्वा भवत्कृते / मारितश्च मयैवायं / मुष्टिं प्रज्वाल्य तामसेः॥ 97 // अर्थ-सिद्धसीकोत्तरीना प्रभावथी वधी माया उभी करोने खड्गनी मुष्टि अग्रिमा वाळी दइ आने में मारी नाख्यो छे. 197) भवांतरीयस्नेहेन / त्वद्भाग्यः प्रेरितोऽथवा // नरेश्वरोऽयं त्वय्येव / वर्ततेऽतोवरागवान् // 98 // अर्थ-भवांतरना स्नेहथी अथवा तारा भाग्यथी प्रेरित थइने मारो राजा तारा विषे अत्यंत रागवाळो वर्ते छे, // 98 // तत्त्वं शीघ्रं मया साक-मेह्येहि कुरु मामकं // प्रयास सफलं चारु-लोचने स्वं बयोऽपि च // 99 // अर्थ-तेथी हवे तुं शीघ्र मारी साणे त्यां चाल अने हे चारुलोचने ! मारा प्रयासने अने तारी वयने सफळ कर? // 99 // अज्ञातकुलशीलेऽस्मि-नेकाकिनि नरे तथा // पुरे श्मशानसंकाशे। त्यक्त्वा प्रीतिं प्रवल्यतां // 10 // DOOODOOODDDDDDDDDDR. GGERODE P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 61 // WEDनान न न न DDDDDDDDDD DED al अर्थ-अज्ञात कुळशीलवाळा आ. एकाकी पुरुष उपरथी अने आ श्मशान जेवा नगर उपरथी प्रीतिः तजी दइने तुं मारी साथे चालः / / 100 // ..... . ... .... . . ... | मकरध्वजराजस्य / निबिडस्नेहसागरं // उत्कल्लोलं कुरु स्वस्य / मुखसच्चंद्रदर्शनात् // 1 // ___ अर्थ-वळी मकरध्वज राजाना निबिड स्नेहसागरने तारा मुखरुप चंदना दर्शनवड़े उछळता कल्लोलवाळो कर.' // 1 // श्रुत्वेति वचनं तस्या | हालाहलविषोपमं ॥बहपीडाकरं मेने। सतीशतशिरोमणिः // 2 // न अर्थ-आ प्रमाणे हळाहळ झेर जेवा तेना. वचनोने सेंकडो सतीओमां शिरोमणि एवी तेणीए बहु पीडाने करनारा मान्या.।२। | ततः साह कथं वृद्धे / लोकद्वयविनाशकृत् // इदमुक्तं महत्पाप-कारि हीनजनोचितं // 3 // न : अर्थ-पछी ते बोली के- हे वृद्धे ! तें आ कथन महापापकारी, हीनजनोने उचित अने बन्ने लोकनो विनाश करनारूं कहेल छे. न कनकस्य सुमं शंभो-मस्तके वाथ भूतले // पतत्येव यथा तद्व-कुलस्त्रीणामयं क्रमः॥४॥ न अर्थ-परंतु कनक (धतुरा) ना पुष्पो तो शंभु (शिव) ना मस्तके चडे अथवा जमीनपर पडे. तेनी जेम कुलीन स्त्रीनो आज क्रम छे के, // 4 // भर्तारमेव सेवंते / नो चेद्वहिं स्फुरच्छिखं // मनागपि मनोऽन्यत्र / म कुर्वति कदाचन // 5 // .. ज ' अर्थ-ते भरिने सेवे अथवा स्फुरायमान अग्निने सेवे; कदापि पण अन्यत्र पोताना मनने जरापण चलित करे नहीं.॥५॥ DOOOOOOOOOOOOOOOOOODबन 11.61 // PP.AC.Gunratnasurt M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम् 62 // [DOOODDDDDDDDED IDOLI ज्ञात्वा पतिव्रतां वाक्यैः / सा च दुष्टाशया ततः॥ कोपेन विकटं रूप-माधाय प्रखरं जगौ॥६॥ / अर्थ-आवां ते पतिव्रताना वाक्यो सांभळीने ते दुष्टाशयवाळी वेश्या कोपवडे विकटरुप करीने मोटेची बोली के-॥ 6 // आः पापे किं न जानासि / सिद्धसीकोत्तरी हि मां // त्वामहं मारयिष्यामि / नो चेत्कुरु ममेप्सितं / __अर्थ- अरे पापिणी ! शुं तुं मने सिद्धसीकोत्तरी तरीके ओळखती नथी? माटे तुं मारा कह्या प्रमाणे कर, नहीं तो ईतने पण मारो नाखीश.' // 7 // प्रियंगमंजरी ज्ञात्वा / तां महाशाकिनीश्वरी // सस्मार रहसि प्रोक्तं / भर्तुर्वाक्यमिदं स्खला .. अर्थ-प्रियंगुमंजरी तेने महा शाकिनीओमां पण मुख्य जाणीने पोताना भर्तारे एकांतमा कहेल हकोकत संभारी के-॥ 8 // प्रिये चंपापुरे रम्ये / राजा धवलवाहनः॥ राज्ञी प्रीतिमती पुत्रः / सुमित्राबस्तयोरहं // 9 // - अर्थ-'हे प्रिये ! रम्य एवी चंपापुरीना राजा धवळवाहननो राणी पीतिमतीना हुं सुमित्र नामनो पुत्र छ // 9 // तातरोषेण तद्देशं / त्यक्त्वा देशांतरंप्रति // सूरसीधरसुत्राम-सागरैः सहितोऽचलं // 10 // . अर्थ-पिताना रोषथी ते देशने तजीने सूर, सीधर, सुत्राम ने सागर नामना चार मित्रोनी साथे हुं चाली नीकळेलो छु.॥१०॥ पदनिष्काशिनी मुख्यां / विद्यां लातुं पृथक्पृथक् // ते षण्मासावधिं कृत्वा / स्थिताः संति सुहृत्तमाः // 11 // अर्थ-ते मारा मित्रो जूदी जूदी चार प्रकारनी विद्या मेळववा माटे छ मासनी मुदत करीने चार जग्याए रोकायेला छे.॥११॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् 63 // इतो मासांतरेऽवश्यं / प्रर्णायामवधौ हि ते // मिलित्वा मां मिलिष्यति / समेत्य पदविद्यया // 12 // | अर्थ-ते हकीकतने पांच मास थइ गया छे. हवे एक महीनानी अंदर अवधि पूर्ण थवाथी चारे विद्याओ लइने ते जरुर | पाद-विधाथी अहीं मारी पासे आवी मने मळशे. // 12 // | विमृश्येति च सा दध्यौ / समेष्यंति सुहृद्वराः॥ विद्यया जीवयिष्यति / संजीविन्या नृपांगजं // 13 // ____ अर्थ-आ प्रमाणे पोताना भर्तारे कहेली हकीकतनुं स्मरण करीने तेणीए विचार्यु के ' हवे थोडा वखतमां ते मित्रो आवशे अने संजीविनी विद्यावडे मारा स्वामीने ते जीवाडशे, // 13 // | रक्षणीयं खशीलं च / जीवितव्यमतो मया // यतो जीवन्नरो भद्र-सहस्त्राण्यपि पश्यति // 14 // | अर्थ-तेथी त्यां सुधी मारे मारा शीलनी तेमज जीवितव्यनी रक्षा करवी जोइए. जीवतो मनुष्य हजारो कल्याणोने जोइ शके छे.. | विचार्येति समुत्पाट्य / कुमारस्य वपुर्वरं // आवासाभ्यंतरे मुक्त्वा / तया सार्धं चचाल सा // 15 // ____ अर्थ-आ प्रमाणे विचारी कुमारनु श्रेष्ठ शरीर उपाडी आवासना अंदरना निर्विघ्नकारी भागमां सारी रीते मूकीने, नोकरोने - भलामण करीने ते वेश्यानो साथे चालो. // 15 // . पुरपाश्वे क्रमेणागा-स्थिता सोद्यानकानने // ततो वर्धापयामास / नृपं केनापि कुहिनी // 16 // मा अर्थ-अनुक्रमे तेओ श्री विजयनगर नजीक आव्या अने उपवनमा रह्या. त्यारवाद ते कुहिनीए कोइनो साथे राजाने वधा // 63 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 64 // मणी मोकली. // 16 // उच्छलकामकल्लोलः / स्त्रीलोलो मकरध्वजः॥ सन्मुखः सपरीवार-स्तावदागात्प्रमोदभाक् // 17 // ___अर्थ-उछळता काम-अंकुरवाळो, स्त्री-लालचु मकरध्वज राजा आनंदित थयो सतो परिवार युक्त सामो आव्यो. // 17 // तदा तां वीक्ष्य कुर्वाणां / रंभां रूपेण किंकरी // खचित्ते मुमुदेऽत्यंतं / नृपः श्रीमकरध्वजः // 18 // __अर्थ-त्यां रंभाना रुप सरखी तेणीने जोइने राजा मकरध्वज पोताना मनमा अत्यंत हर्पित थयो. // 18 // सस्नेहं कोमलैर्वाक्यैः-स्तामित्याह धराधवः // समानीय मनोहारं / सालंकारं सुकुंजरं / / 19 // अर्थ-पछी मनोहर अने अलंकारोथी भूपित एवा श्रेष्ठ हस्तीने त्यां लावीने स्नेहपूर्वक कोमळ वचनोवढे राजा बोल्यो के-१९। समारुह्य मया साकं / बंधुरं सिंधुरं प्रिये // मन्मनोरथसंपत्य / समलंकुरु मंदिरं // 20 // ___अर्थ-' हे पिया ! मारी साथे आ हाथी उपर बेसीने नगरमां चाल अने मारा बांछितोनी पूर्णताने माटे मारा राजमंदिरने शोभावाळु बनाव.' // 20 // सुशीला सा ततः काल-विलंबाय जगी नृपं // मासमेकमहं दान-मावयोः श्रेयसेऽर्थिषु // 21 // मदत्वात्रैव स्थिता राजन् / युष्माकं सुप्रसादतः॥ अवश्यं तत्करिष्यामि / युक्तं यत्तदनंतरं // 22 // ___ अर्थ:काळ व्यतीत करवाना मिषी निर्मळ शीलवाळी तेणीए राजाने कछु के-'आपण बनेना (पति-पत्नीना) कल्याण माटे // 64 // P. PAC Gunnanasun MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र ORIODDEDDEDEED आपनी महेरवानीथी एक मास सुधी भिक्षुकोने दान आपवा माटे हुं अहींज रहीश, त्यारबाद योग्य एव॒ तमारुं कार्य हुकरीश.' // 21 // 22 // श्रुत्वेति नृपतिः स्नेहा-सत्रागारमकारयत् ॥रागिणः किं न कुर्वति / स्त्रीणामथे विशेषतः // 23 // __ अर्थ-आ प्रमाणे सांभळीने राजाए त्यां दानशाळा करावी आपी. प्रेमीजनो स्त्रीओने राजी करवा माटे शुं शुं करता नथी?॥२३॥ सापि तत्र स्थिता दत्ते / दीनेभ्यो दानमीप्सितं // यतो भवंति सर्वत्रा-वसरज्ञा विवेकिनः // 24 // _ अर्थ-ते पण त्यां रही सती दीन-अनाथ जनोने इच्छित दान आपवा लागी, कारण के विवेकवाळा पुरुषो हमेशां अवसरोचित जाणवावाळाज होय छे. // 24 // त्रिंशद्वर्षप्रमाणोऽभू-समासः पृथिवीपतेः / / दानपीयूषमनाया-स्तस्यास्त्रिंशत्क्षणोपमः // 25 // अर्थ-आ एक महिनो राजाने त्रीश वर्ष जेवडो थइ पडयो; ज्यारे दानरुपी अमृतमा मग्न थयेली तेमां रसयुक्त बनेली तेणीने | ते त्रीश क्षण जेटलो लाग्यो. // 25 // मासांतेऽत्र समायाता-श्चत्वारो भर्तृबांधवाः // तयोपलक्षिता भर्तु-वाक्यवृंदानुसारतः // 26 // a. . अर्थ-महिनो पूर्ण यये सते तेना पतिना चारे भाइबंधो त्यां आवी चड्या. तेओने पतिए कहेली हकीकतथी ओळखी | काढवामां आव्या. // 26 // भोजयित्वा तया भक्त्या / पृष्टा रहसि ते जगुः // वयं राजकुमारस्य / सुमित्रस्य सुहृत्तमाः॥ 27 // DOOGS DOG DOODOODDDDDDD / / 65 // PP. Ac Guntatnasur M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् || अर्थ-पछी भक्तिपूर्वक तेने जमाडीने तेणीए तेओने पूछ्यु के-'तमे कोण छो ?' त्यारे ते बोल्या के-'अमे राजकुमार सुमित्रना मित्रो छीए. // 27 // आपृच्छय सुहृदं ग्रामे-ऽस्माभिर्भव्याः पृथक्पृथक् // गुरूणां पुरतो विद्या / जगृहे तस्य हेतवे // 28 // // 66 // अर्थ-मित्रनी रजा लइने अमो बधा-जूदा पड्या हता. अमे तेना माटे गुरु आगलथी विद्याओ प्राप्त करी. // 28 // कुमारानुपदं भरे। पदानुगमविद्यया // शून्यं नगरमायाता-स्तत्रापि मिलितो न सः / / 29 // ____ अर्थ-हे भद्रे ! पदानुचारिणी विद्याना प्रमावथी कुमारना पगले पगले अमे एक उज्जड नगरमां गया, परंतु त्यां ते मळ्या नहीं. यत्र यत्र स चिक्रीड | नानोद्यानजलाशये // तत्र तत्र पदे दृष्टे / तस्य कस्याः स्त्रियोऽपि च // 30 // ___अर्थ-जूदा जूदा अनेक बगीचाओ अने जलाशयो ज्यां ज्यां कुमारे क्रीडा करी हती त्यां त्यां तपास करतां कोइक खोना पगलां पण तेनी साथे जोवामां आव्या. // 30 // ततोऽन्यत्र सुमित्रस्य / पदं नोपलभामहे // अतोऽनुपदमायाता | द्वयोरेव स्त्रियोः पुनः // 31 // अर्थ-त्यारवाद कोइपण स्थळे मित्र सुमित्रनुं पगलं अमने मळ्युं नहीं, जेथी बे स्त्रीओना पगलांने अनुसरता अमो अहीं आव्या. तयोर्मध्ये त्वमेकासि / यदि जानासि भामिनि // तर्हि त्वं कथयास्माकं / सुहृदं प्राणवल्लभं // 32 // अर्थ-हे स्त्री ! ते बेमांनी तमो एक छो, तेथी जो तमे जाणता हो तो प्राणवल्लभ एत्रो अमारो मित्र क्यां छे ते कहो? // 32 // // 66 // PP AC Gun atrasun MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र // 67 // EDDDDDDEEDDDDDDDDDDDED यं विनातःपरं प्राणान् / धर्तुं नैव क्षमा वयं // तद्वार्ता तद्वदस्माकं / प्राणरक्षणहेतवे // 33 // चरित्रम् / अर्थ-कारण के हवे पछी अमे तेना विना पाण धारण करवाने पण समर्थ नथी; तेथी तेनी वार्ता अमारा प्राणरक्षणने माटे तमे कहेवाने योग्य छो.' // 33 // अहो मबल्लभो धन्यो / यस्यैते सुहृदो वराः // अहं धन्यतमा यस्या। भर्ता स समजायत // 34 // ___अर्थ-आ प्रमाणे पोताना भरिना मित्रोना वचनो सांभळीने प्रियंगुमंजरी विचारवा लागी के-'मारा वल्लभने धन्य छे के जेना आवा मित्रो छे, बळी हु अति धन्य छु के जेने एवो पति मळ्यो छे.' // 34 // |ध्यात्वेति हृदि सावोच-त्सर्वं वृत्तं यथाभवत् // श्रुत्वोचुस्तेऽपि तच्छीधं / दर्शयास्माकमुत्तमे / / 35 / / / अर्थ-आ प्रमाणे विचारीने पछी तेणीए जेवं बन्यु हतुं तेवु सर्व वृत्तांत यथार्थ कही बताव्यु. एटले तेओ बोल्या के-'हे उत्तमे ! ते अमारा मित्रना शरीरने तमे अमने शीघ्र बतावो.' // 35 // तयोक्तं तर्हि कुर्वतु / व्योमगामि रथं ततः॥ महत्काष्ट समानाय्य / सागरस्तमचीकरत् // 36 // ___अर्थ- ते बोलो के-'तो तमे आकाशगामी रथ बनावो के जेथी आपणे शीघ्र त्यां पहोंची शकोए.' सागरे तरतज एक मोटुंब 9 काष्ट मगाबीने आकाशगामी रथ शीघ्र तैयार कर्यो. // 36 // इतश्च मासे संपूणे / स राजा मकरध्वजः॥ साडंबरः समायासी-त्तामानेतुं समुत्सुकः / / 37 // / / 67 // अर्थ-हवे अहीं महीनो पूरो थयो एटले मकरध्वज राजा पियंगुमंजरीने लइ जवा माटे उत्सुक थइ आडंबर सहित त्यां आव्यो. | // P.P.Ac Gunrainasuri MS. Jun Gum Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 68 IDDOODHO DOEEDODDDDDDDDEDD सादरं स जगादेति / प्रिये पादोऽवधार्यतां // दासे मल्लक्षणेऽमुष्मिन् / प्रसन्नीभूय भामिनि // 38 // अर्थ-अने बोल्यो के-'हे पिये ! हवे नगरमां पगलां करो- अने मारा जेवा दासनी उपर हे.भामिनि तमे प्रसन्न थाओं // 38 // सुरूपकुलसंपन्ना-श्चतस्त्रः कन्यका इह // समानय यथा ताभि-वैरिण्यापि समं नृप // 39 // रथमेनं समारुह्य / क्षणेनैव पुरांतरे // समायामि नराधीश-मित्यवोचन्नपांगजा // 40 // " अर्थ-राजपुत्री बोली के-'हे राजन् ! तमे सारा रुप अने कुळवाळी चार कन्याओने अहीं लावो के जेथी तेओनी अने आ आ वैरिणीनी साथे रथमां बेसीने अमे नगरमा जइए अने क्षणमात्रमां. पाछा आवीए.' // 39 // 40 // तद्वशस्तु नरेन्द्रोऽसौ / क्षणेनैव तथाकरोत् / / अथ प्रसिद्धमेवैत-क्रियते किं न कामिभिः॥४१॥ ___ अर्थ-तेने वश थयेला राजाए तरतज तेना कहेवानो अमल को अने रुपवान चार कन्याओने गाममाथी बोलावी लोधी. ए वात प्रसिद्धज छे के 'कामी पुरुष शुं शं करतो नथी?' // 41 // नृपादिराजलोकेषु / पूर्जनेषु च कौतुकात् // मिलितेषु च पश्यत्सु / यत्तयाकारि तत् शृणु // 42 // अर्थ-हवे कौतुक जोवा माटे त्यां नृपादि राजलोक अने नगरजनो मल्ये छते तेणीए शुं कर्यु ते सांभळो ? // 42 // चतुर्भिर्तसन्मित्रैः / कन्यकाभिस्तथा समं // आरुरोह रथं राज-सुता वृद्धापि तद्विरा // 43 // अर्थ-पछी प्रियंगुमंजरी पोताना भर्त्तास्ना चार मित्रो अने चार कन्याओ तथा ते वेश्या सहित रथमां बेठी. // 43 // PP.ACGunratnasuri M.S. Jun.Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 69 // नियुक्तेन तया ताव-सागरेण खविद्यया // अचालि सारथःशून्य-पुरंप्रति नभोऽध्वना // 44 // - अर्थ-बाद राजकुमारीए संज्ञा करवाथी सागरे आकाशगामिनी विद्यावडे करीने रथने आकाशमार्गे चलाव्यो. // 44 // | निलोंठिताऽपवित्रेव / सा वेश्या रोषतो रथात् // पपात च निराधारा / धारावत्प्रस्तरोपरि // 45 // . अर्थ-पछी दुष्ट अपवित्र अने निराधार एवी ते वेश्याने रोपथी रथमांथी पाडी दीधी, तेणी पण जळधारानी पेठे पत्थरपर पडी. भग्नान्यंगानि सर्वाणि / महत्कष्टमवाप च // अत्युग्रपुण्यपापाना-मिहेव फलमाप्यते // 46 // ___अर्थ-तेना सर्व अंगो भांगी गया अने घणुं दुःख पामी. कारण के- अत्युग्र पुण्य-पापर्नु फळ अहींज प्राप्त थाय छे.' // 46 // राजादिसर्वलोकानां / दृष्टयगोचरतामगुः // सर्वेऽपि तत्क्षणेनापुः / पुरं श्रीकनकाभिध // 47 // . अर्थ-ए रथ अनुक्रमे राजा विगेरेनी दृष्टिथी अदृश्य थयो अने सर्व श्रीकनक नामना नगरे पहोंच्या. // 47 // तेषां प्रियंगुमंजर्या / गंभीरावासमध्यगं // अदर्शि श्रीसुमित्रस्य / वपुः सजलनेत्रया // 48 // ... / अर्थ-त्यां तेमने प्रियंगुमंजरीए नेत्रमाथी अश्रुधारा बहेते तेमना मित्रनुं शरीर आवासना मध्यमां गुप्त स्थाने राख्यु हतुं ते बताव्युं // 48 // . . . . . . | सुत्रामेण महाविद्या-संजीविन्या स जीवितः॥ कुमारस्तु जजागार / सुप्तोत्थित-इव क्षणात् // 49 // ....अर्थ-सुकामे संजीविनी महाविद्यावडे तेने सचेतन कर्यो, एटले कुमार पण क्षणमात्रमा सुइने उठ्यो होय तेम जाग्रत थयो. // DOOOOOOOODogaबालाlam | | // 69 // PP.Ac GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 70 // रूपस्थध्यानयुक्तेव / योगिनी नृपनंदिनी // यथारूपं प्रपश्यंती। पतिसर्वांगमाविशत // 50 // न अर्थ-रुपस्थ ध्यानमां लीन थयेली योगिनीनी जेवी राजपुत्री यथास्थित पतिनुं रुप जोइने पतिना सर्वांगमा प्रवेश करी गइ. | सुमित्रं सफलं दृष्ट्वा / राकाचंद्रं चकोरवत् // सूरसीधरसुत्राम-मुख्या मुमुदिरेतरां // 51 // ___अर्थ - पूर्णिमाना चंद्रने चकोर जुए तेम मुमिने आ सर्व जो. मूर, सीधर, मुत्राम ने सागर अत्यंत हर्ष पाम्या. // 51 // - सुमित्रोऽपि समालिंग-दुत्थायानंदपूरतः॥ सर्वानपि सखीन् दुःखं / क्षयं निन्ये वियोगजं // 52 // अर्थ-सुमित्रे उभा थइने ते चारे मित्रोने आलिंगन कयु. पांचे मित्रोनुं वियोगजन्य दुःख सर्वथा नाश पाम्यु. // 52 // / विहितस्नानदेवार्चान् / सूरो भोजयतेस्म तान् // अक्षीणविद्ययाहारै-रक्षयैरमृतोपमैः // 53 // अर्थ-पछी सहुए स्नान देवार्चनादि कर्यु एटले मूरे अक्षीण पात्रवाळी विद्यावडे अमृत जेवा आहारथी सर्वने भोजन कराव्यु. | सूरसीधरसुत्राम-सागरान् सुहृदोऽन्यदा // अपृच्छत्कुमरो विद्याः / कथं नीत्वा समागताः॥ 54 // ___ अर्थ-अन्यदा सुमित्रकुमारे सूर, सीधर, सुत्राम अने सागरने पूज्यु के-'तमे विद्या मेळवीने शी रीते आव्या?' // 54 // अथाख्यत्सीधरः सुष्टु / तदा तंप्रति चारुवाक् // श्रीमद्धवलराजेंद्र-कुलांभोजरवे शृणु // 55 // | अर्थ-एटले प्रथम श्रेष्ट एवो सीधर मनोहर वाणीथी बोल्यो के-हे धबलराजेंद्रना कुळरूप कमळमां रविसमान सांभळो? 55| मासद्वयमहं तत्र / भक्तिभिस्तमरंजयं // संतुष्टः स ददौ विद्यां / पदज्ञामखिलामपि // 56 // / / 70 // PP:AC Gunratnasuri M.S, Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र - चरित्रम् // 71 // ___अर्थ-हुँ बे मास त्यां रह्यो अने भक्ति वडे ते विद्याधारीने रंजित कर्यो; तेथी तेणे मने पदज्ञा विद्या संपूर्ण आपी. // 56 // कियत्कालं पुनः सेवा-मकार्ष तस्य सद्गुरोः॥ ततः प्रसन्नचित्तस्या-देशमाप्याचलं प्रभो // 57 // ___अर्थ-फरीने पण केटलाक काळ सुधी में ते सद्गुरुनी सेवा करी. पछी प्रसन्नचित्त थयेला तेमणे मने आज्ञा आपी एटले हुँ त्यांथी चाल्यो. / / 75 // गुरोस्तस्य प्रसादेन / पदविद्यानुभावतः॥ प्रसत्त्या श्रीमतामेतान् / सुहृदोऽहममेलयं // 58 // अर्थ-गुरुनी कृपाथी मळेलो पदविद्याना प्रभावथी भाग्यने लइने तमारो अने आ मित्रोनो मने मेळाप थयो. // 58 / / प्राप्तविद्यैस्त्रिभिमित्रेः / समं युष्मत्पदे पदे // शून्यमागामिमं द्रंगं / भवत्पदपवित्रितं // 59 // ___ अर्थ-विद्या प्राप्त करेला त्रणे मित्रोनी साथे तमारा पगले पगले चालतां आ शून्य नगरे आव्या के जे नगर तमारा पगलांथी पवित्रित थयेलं हतुं. // 59 // पुरोद्यानादिभूमिषु / दृष्टं पदकदंबकं // परं नैक्षि भवानत्र / श्रीबाहुबलिनादिवत् // 6 // __अर्थ-अमे नगरना उद्यानादि भूमिमां तमारा पुष्कळ पगलांओ जोया, परंतु श्री बाहुबलिए प्रभातकाळे प्रथम जिनने जोया नहोता तेम अमे पण तमने अहीं जोया नहीं. // 6 // ततः खियोरनुपदं / श्रीमद्विजयपत्तनं / गत्वाऽद्राक्षम वयं तत्र / सत्रागारस्थितामिमां // 61 // __अर्थ-पछी चे स्त्रीओना पगले पगले अमे श्रीविजयपत्तन नगरे गया. त्यां दानशाळामां रहेली आ प्रियंगुमंजरीने अमे जोइ.॥ ID DADDOODDDDDDDDDDDDDDD [10 P.P.AC Guralnasur MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 72 // 圖圖圖圖圖圖回回回回回回回回回回回回回回 अतःपरमियं वेत्ति / यज्जातं तन्नृपांगजा // तत् श्रुत्वा श्रीकुमारेण | पृष्टा प्रियंगुमंजरी // 62 // _____ अर्थ-त्यार पछी जे बन्युं ते आ राजपुत्री जाणती होवाथी ते कहेशे.' एम सांभळीने सुमित्रे प्रियंगुमंजरोने त्यारपछीनो वृत्तांत पूछ्यो. / / 62 // 9 सिद्धसीकोत्तरीमायां / मुष्टिप्रज्वालनादिकां // स्वयं कृतं प्रपंचं सा। तेषां च सकलं जगौ // 63 // | अर्थ-एटले ते राजपुत्रीए सिद्धसीकोत्तरीनी माया, खड्गनी मुष्टिनु बाळी नाखg, पोते करेलो प्रपंच विगेरे वधी वात कही. - समाकण्येति दध्यो स / धन्योऽहं पुण्यवान् ध्रुवं // ईदृशाः सुहृदो यन्मे / भार्याभूदीदृशापि हि // 6 // ...अर्थ-ते.सांभळीने कुमार विचारवा लाग्यो छे-'हुं धन्य छ, पूरेपूरो.पुण्यवान छु के जेने आवा चार मित्रो अने आवी भार्या छे..६४। स्तौतिस्म सुहृदः स्तुत्यान् / भार्थी शीलादिसद्गुणां // हषोत्कर्षभरान्मिष्टां / मृद्रीमधुरया गिरा // 65 // अर्थ-पछी तेणे मित्रोना स्तुत्य गुणोनी अने भार्याना शीलादि सद्गुणोनी हर्षथी उत्कर्ष पामेली, मिष्ट, कोमळ अने मधुर | वाणीवडे स्तुति. करी. // 65 // आग्रहात् श्रीसुमित्रस्य / तत्प्रियायाश्च कन्यकाः // सूरादिभिश्चतस्त्रस्ताः। परिणीता यथाक्रमं // 66 // अर्थ-पछी सुमित्र तेमज तेनो पियाना आग्रहथी सूरादि चार मित्री श्रीविजयपत्तनथी साये लावेली चारे कन्याओने - अनुक्रमे परण्या. // 66 // .... ... // 72 // PPAC Gunratasur MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम् सुमित्र |ततः सुरादयः सर्वे / सुमित्रं मित्रसन्निभं // राज्येऽभिषिषिचुः प्रोढ-प्रतापं परमादरात् // 67 // अर्थ-पछी सूरादि सर्वेए परम मित्र अने प्रौढप्रतापो सुमित्रनो त्यांना राज्य उपर आदरपूर्वक अभिषेक कर्यो. // 67 / / / / 73 // दिशोदिशं गता आसन् / ये ये रक्षोभयाकुलाः // पुनस्ते मंत्रिसामंत-व्यावहारिकपूर्वकाः // 68 // लोकास्तं राक्षसं हत्वो-पविष्टं परदेशिनं // सुमित्राख्यं महाराज्ये / ह्यमुष्मिन् शुश्रुवश्चरैः॥ 62 // ___अर्थ-चारे दिशाए राक्षसना भयथी व्याकुळ थइने चाल्या गयेला मंत्री, सामंत व्यवहारीआ विगेरे लोकोए ते राक्षसने | हणीने सुमित्र नामचो परदेशी राजकुमार श्री कनकपुरना महाराज्यपर बेठेल छे एवु चरोना मुखथी सांभळ्युः // 68-69 // | अत्युग्रपुण्यं तं ज्ञात्वा / राजानं रसपूरिताः // सर्वे लोकाः समाजग्मु-स्तत्पुण्याकर्षिता इव // 70 // | अर्थ-तेथी ते राजाने अत्युन पुण्यवाळो जाणीने रसपूरित एवा सर्वे लोको तेना पुण्यथी आकर्पित थइने त्यां आव्या. 170 नगरं तत्तथा देशो। युगपतषितोऽखिलः // यथास्थानस्थितः सर्वो। जनस्तु शुशुभेतरां // 71 // अर्थ-एटले ते देश ने नगर सर्व समकाळे प्रथमनी जेम वसी गयु अने यथास्थान स्थित थयेला सर्वे लोको पण अत्यंत शोभवा लाग्या. // 71 // सुमित्रस्तु नरेंद्रोऽपि / युक्तायुक्तविचारवित् / / मंत्रीश्वरपदेऽयुक्त / सूरं सद्बुद्धिमंदिरं // 72 // ___ अर्थ-युक्तायुक्तनो विचार करी शकनारा सुमित्र राजाए सद्बुद्धिना मंदिर तुल्य मूरने मंत्रीपदे स्थापन कर्यो, // 72 // GoodROOOOOOOOOOOOOOOEED 'DDDDDDDDDDDDDDDIGDHODA 1173 / / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् / / 74 // DeaHRD DEDDDDDDDED तलारक्षपदे न्यस्तः / सीधरः श्रीधरोपमः॥ सुत्रामं स नृपश्चके / पुरोधःपदमंडनं // 73 // - अर्थ-श्रीधरनी उपमावाळा सीधरने कोटवाळना स्थानके स्थापन कर्यो, सुत्रामने पुरोहितनुं पद अर्पण कयु.॥ 73 // स निन्ये सागरं सर्व-सूत्रधारकमुख्यतां // तथान्येऽपि हि तत्रत्या / यथास्थानं नियोजिताः॥ 74 // ___ अर्थ-अने सागरने सर्व सूत्रधारमा मुख्य बनाव्यो. ए रीते बीजा पण त्यां रहेलाओनी योग्य स्थाने योजना करी. // 7 // चतभिस्तैर्नपो रेजे। स्वपदश्रीमनोरमैः॥ भूमंडले यथा खगें / लोकपालैः पुरंदरः // 75 // ___ अर्थ-पोतपोताना स्थानने शोभावनारा चार अधिकारीओवडे स्वर्गमा रहेल इंद्र जेम लोकपालोवडे शोभे तेम ते पृथ्वीतलपर | शोभवा लाग्यो / / 75 // .. चतुरंगबलैर्युक्तः / श्रीसुमित्रो महीपतिः // काश्यपी कंपयन् सैन्यैः / प्रतस्थे दिग्जयंप्रति // 76 // ____ अर्थ-अन्यदा चतुरंग सेनाना बळथी युक्त एवो सुभित्र महाराजा सैन्यथी पृथ्वीने कंपावतो दिग्विजय माटे निकळ्यो. 176 / साधयित्वा बहून देशान् / सेवकीकृत्य भूभृतः // प्रतापाक्रांतदिक्चक्रो / भृशक्रः प्राविशत्पुरीं // 77 // ___ अर्थ-अने घणा देशोने साधोने, अनेक राजाओने सेवक बनावीने, दिशारूप चक्रनु आक्रमण करता पृथ्वीना इन्द्र जेवा तेणे पुनः पोतानी नगरीमा प्रवेश कर्यो. // 77 / / पर्यणेषीनरेंद्राणां / नंदिन्योऽनेकशः पुनः // प्रियंगुमंजरी पट्ट-राज्ञी चक्रे प्रकृष्टधीः // 78 // // 74 / / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 75 // DDDDDDDDDDDDDDDDDDD MED ___अर्थ-त्यारवाद अनेक राजाओनी पुत्रीओ साथे तेणे लग्न कर्या अने उत्कृष्ट बुद्धिवाळा तेणे प्रियंगुमंजरीने महाराणी पदे स्थापन करी. // 78 / / कियत्यपि गते काले। ते द्वाविंशतिसोदराः // सेवितुं तं नवं भूपं / समीयुः क्षत्रियास्ततः॥ 79 // ____ अर्थ-केटलोक समय वीत्या बाद तेना बावोश बंधुओ ते नवीन राजानी सेवाने माटे ते नगरमां आव्या. // 79 // षण्मासानंतरं सूर-मंत्रिणानीय मेलिताः॥ वित्थायवदना राज्ञा / तत्कालं चोपलक्षिताः // 8 // अर्थ-छ महीना बाद खेदयुक्त मुखवाळा तेओने राजा आगळ मेळाप माटे लाववामां आव्या. राजाए तरतज तेने ओळख्या, साम्राज्यपदमारूढो / भूपस्तैनोपलक्षितः // भृशं निरीक्षितोऽपीह / परब्रह्म कुयोगिवत // 1 // ____अर्थ - परंतु कुयोगी जेम परब्रह्मने ओळखे नहीं तेम साम्राज्यपदने भोगवता एवा ते राजा (सुमित्र) ने अत्यंत बारीकाइथी जोवा छतां पण तेओ ओळखी शक्या नहीं. // 81 // पृष्टा नरेश्वरेणैते / के यूयं कुत आगताः॥ किमर्थ कथमत्यंतं / निःश्रीकास्ते ततो जगुः // 2 // ___ अर्थ - पछी राजाए तेओने पूछ्यु के-'तमे कोण छो? क्यांथी आवो छो ? शा कारणे अहीं आव्या छो ? अने तद्दन शोभा विनाना केम थइ गया छो?' एटले तेओ बोल्या के-॥८२ // श्रृणु श्रीनपकोटीर-रत्नरंजितसत्क्रम // चंपापुर्यामभूद्वयों। राजा धवलवाहनः॥८३॥ अर्थ-हे नृपनी श्रेणीना मुकुटमा रहेला रत्नोथी रंजित चरणकमळवाळा राजन् ! सांभळो ? चंपापुरी नामनी नगरीमा श्रेष्ठ al // 75 // PP.ALGunmathasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम् सुमित्र || IS एवो धवलवाहन नामनो राजा छ. / / 83 // ज| तस्यः पुत्रा वयं सर्वे / एकोऽभूदपरः पुनः // महाजनेन चास्माभिः / प्रेरितेन स भूभुजा // 84 // ___अर्थ-तेना अमे बधा पुत्रो छीए. ते राजाने एक बीजो पुत्र हतो परंतु महाजननी तेमज अमारी प्रेरणाथी राजाए तेने त्यांथी // 76 // काढी मूक्यो. // 84 // निष्काशितो निजादाज्या-चिंचामणिरिवोत्तमः // चतुर्भिः सखिभिः सार्धं / न ज्ञातः स कुतोऽगमत् // ___ अर्थ-चिंतामणि जेवो उत्तम से राजपुत्र तेना चार मित्रो साथे त्यांथी क्यां गयो तेनी अमने खवर मळी नहीं // 85 // तन्माता तद्गुणान् रम्यान् / स्मारं स्मारं निरंतरं // रुदत्यस्ति जनान् सर्वान् / रोदयंती पुरःस्थितान् // ____ अर्थ-तेनी माता सेना मनोहर गुणोने संभारती सती निरंतर रुदन करती हती अने पासे रहेला सर्व जनोने रोवरावती हती. राजा महाजनस्तस्मिन् / पश्चात्तापं गतेऽकरोत् / / ततः स्तोकेन कालेन / स भूपः स्वर्भुवं ययौ // 87 // . अर्थ-ते राजपुत्रना गया पछी राजाने अने महाजनने घणो पश्चात्ताप थयो. त्यारपछी थोडाज वखतमां राजा धवलवाहन स्वर्गवासी थयो. // 87 / / राज्यकल्पद्रुमोऽस्माकं / पितृपूर्वागतोऽपि सः // जगृहे पुण्यहीनाना-मभाग्यैः शत्रुभिर्बलात् // 88 // अर्थ-अमारं परंपराथी आवेलुं राज्य पुण्यहीनना पासे कल्पवृक्ष रहे नहीं तेम अपारी पासे रघु नहीं, अर्थात् अमारा शत्रुओए चळात्कारे खेंची लीधुं. // 88 / / PP.AC.Gunratnasuri M.S. DDDDDDDDDDDDDDDDDDDED Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 77 // BEEEEEEEEEEEDDDDDDDED राज्यभ्रष्टा वयं देव / भ्रमंतः सकलां भुवं // खनिर्वाहकरं क्वापि / स्थानं नैवालभामहि // 89 // अर्थ-राज्यभ्रष्ट एवा अमे अनेक स्थान भम्या परंतु अमारो निर्वाह थाय तेचु कोइ पण स्थान अमने प्राप्त थयु नहीं. // 89 // स्वगुणैर्विश्वविख्यातं / भवंतं नवभूभुजं // श्रुत्वा वयं महीपाल / त्वामागच्छाम सेवितुं // 9 // अर्थ-एम फरतां फरतां पोताना गुणोथो प्रख्याति पामेला एवा तमने नवा राजाने सांभळीने हे महीपाल ! अमे तमारी सेवा करवाने माटे अहीं आव्या छीए. // 9 // श्रुत्वेत्युत्थाय भूपालो / बाढमालिंग्य तान् जगी // त्रयोविंशोऽस्ति यः सोऽहं / युष्माकं लघुबांधवः / 91 // | ...अर्थ-आ. प्रमाणे तेमनी हकीकत सांभळीने राजा एकदम पोताना सिंहासनपरथी उठीने गाढ आलिंगन दइने तेमने भेट्यो | अने कयु के-" हे वडील बंधुओ ! हुं तमारो वेवीशमो नानो भाइ छु, / / 91 // - मया पूर्वार्जितैः पुण्यैः / सान्निध्यात्सुहृदां पुनः // प्राज्यं राज्यमिदं प्राप्तं / भवद्भिपभुज्यतां // 92 // - अर्थ में पूर्वभवमां उपार्जन करेला पुण्यथी आ चार मित्रो अने आ विशाळ एबुं राज्य मेळव्यु छे तेने हे बंधुओ ! तमे | मुखपूर्वक भोगवो.” // 92 // | अहो पुण्यमहो भाग्य-महो ओदार्यतास्य च // असो सर्वगुणाधारः / कीदृग्राज्यमवाप्तवान् // 93 // | सविस्मयमिदं ध्यात्वा / किंचित्कालं विलंब्य च // प्रस्तावे प्रोचिरे तैस्तु / श्रुणु भ्रातर्नरेश्वर // 94 // DODDEDDCDDOODOODDODOGGE PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र // 78 // अर्थ-सुमित्रना आवां वचनो सांभळीने ते बंधुओ विचारवा लाग्या के- अहो पुण्य ! अहो भाग्य! अहो आनी उदारता ! सर्व गुणना आधारभूत एवा आणे केबु राज्य प्राप्त कर्यु ?' आ प्रमाणे विस्मयपूर्वक विचारीने तेओ त्यां आनंदथी रह्या पछी तेओए योग्य अवसर जोइने सुमित्रने कछु के-।। 93 // 94 // तव राज्यं तदस्माकं / नात्र काचिद्विचारणा // तथापि पितृसाम्राज्ये / रतिरस्माकमेधते // 95 // .. अर्थ-'हे भ्राता ! तमारु राज्य ते अमारुंज राज्य छे, एमां कांइपण शंका करवा जेबु नथी; परंतु पिताना राज्यने माटे | अमारी आकांक्षा वृद्धि पाम्या करे छे. // 95 // अतः कुरु कृपामेहि। देहि राज्यं तदेव हि // सरित्प्रवाहवत्सैन्यैः / शत्रनुन्मूल्य वृक्षवत // 96 // . अर्थ-तेथी कृपा करीने अमने ते राज्य अपावो अने नदीनो प्रवाह जेम वृक्षोने उखेडी नाखे तेम अमारा शत्रुओने मूळथीन उखेडी नाखो. // 96 // इत्यक्तः श्रीसुमित्रोऽथ / तत्क्षणं रणकौतुकी // सैन्यसंहननाकीं। जयढक्कामवादयत // 97 // अर्थ-पोताना बंधुओनी आ प्रमाणेनी तीव्र इच्छा जाणीने युद्धना कौतुकी एवा सुमित्रे तरतज सैन्यने एकळु करनारी जयढक्का वगडावी. // 97 // तत्कालमिलिताशेष-चतुरंगचमूवृतः / / चचाल पृथिवीपालः। कंपयंस्तदिलातलं // 98 // . अर्थ- पछी तत्काळ एकत्र थयेली चतुरंग सेनावडे परवरेला तेणे पृथ्वीने कंपावता सता त्यांची प्रयाण कयु.॥ 98 // / PP.AC.Gunratnasurt M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र a | चरित्रम् // 79 // उपांगदेशमागच्छ-दखेडेस्तु प्रयाणकैः // कुर्वाणः पथि सीमाल-भूपालाज्ञावशंवदान् // 99 // - अर्थ-अविरत प्रयाणवडे चालतां अंगदेशनी नजीक आव्या एटले प्रथम सोमा पर रहेला सर्व राजाओने जीती पोताने वश कर्या. ससैन्यं श्रीसमित्रेशं / श्रुत्वा सीम्नि समागतं // स्वचक्र मेलयित्वा ते / रयात्संमुखमाययः // 10 // अर्थ-चंपापुरीमा रहेला राजाए सुमित्र राजाने लश्कर साथे पोतानी सोमा पर आवेल सांभळ्यो, एटले ते पण पोतार्नु सैन्य एकत्र करीने सामे आव्यो. // 10 // | संजग्मतीरनादौ / सेनांभोधी रयादथ // प्रलयानलसंक्षुब्धौ / सह्यविध्यगिरी इव // 1 // अर्थ-बने सैन्यो एकठा मळ्या एटले सेनारुपी समुद्रमांथी जे भयंकर नाद उछळ्यो ते जाणे प्रलयकाळना अग्निथी संक्षुब्ध थयेला सह्याद्रि ने विध्यादिना मळवाथी थयो होय एम जणावा लाग्यो. // 1 // रत्नवर्णरूप्यमय-स्फारकोटीरमंडलैः // रविचंद्रसहस्राढणं / तदानी खमजायत // 2 // ___अर्थ-रत्न, स्वर्ण अने रुप्यमय स्फार एवा मुकुटोना समूहथी जाणे हजारो सूर्यचंद्रवाळु आकाशज न होय एम जणावा लाग्यु. गजगारवैरश्व-हेषित रथचीत्कृतः॥ पादातिक्ष्वेडशब्दैश्च / जगन्नादमयं बभौ // 3 // ___अर्थ-हाथीना गर्जारवथी, घोडाओना हैषारवथी, स्थना चीत्कारोथी अने पायदळोना सिंहनादोथी आखं जगत् नादमय थइ गयु. // 3 // . . . 79 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम् // 8 // तुरंगमखुगेरखात-रजोभिः पूरितांबरे // कुहुरात्राविव स्वैरं / संचेः प्रेतराक्षसाः॥४॥ ____ अर्थ-घोडाओनी खरीओथी उखडेली धूळवडे आकाश पूराइ जवाथी अमावास्यानी रानीमा जेम स्वेच्छाए भमे तेम प्रेतराक्षसो भमवा लाग्या. // 4 // अथ योध्धं दुढौकाते / सेनान्यावुभयोरपि // जगजनचमत्कारी। प्रवृत्तस्तुमुलो रणः॥५॥.. अर्थ-मारंभमां बने सैन्यना सेनानीओ सामसामा युद्ध कस्वा लाग्या के जेथी जगजनने चमत्कार उत्पन्न करे एवो तुमुल | न ध्वनि रणभूमिमां प्रवती गयो. // 5 // खड्गघातेन वीराणा-मुत्पेदेऽग्निः परस्परं // स एव शमितो वीर-शरीररुधिरांबुभिः // 6 // अर्थ-धीर सुभटोना परस्परना खड्गो अथडावाथी अग्नि उत्पन्न थयो ते वीरजनोना शरीरोमांथी नीकळता रुधिररुप जळयो / - शांत थयो. // 6 // सुभटक्रमपातोय-धूलीभिर्विस्तृतं तमः // त्रुटत्कटकरत्नौघे-रुद्योतश्चाजनि क्षणात्॥७॥ अर्थ-सुभटोना पगना पडवाथी उछळेल धूळवडे विस्तार पामेल अंधकारमा त्रुटी पडेला कडांओमा रहेला रत्नोना समूहथी | उद्योत यइ रह्यो. // 7 // रक्तेस्तोषितवेताल / इव तत्र रणांगणे // छिन्नशीर्षा महारोद्राः / कबंधाः पर्यनर्तिषुः // 8 // PP. AC Gurrainasuri MLS Jun Gun Aalladihal Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 81 // DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDHI .. अर्थ-ते रणांगणमा रुधिरयी संतोष पामेला वेतालो नाचे तेम छेदाइ गयेला शरीरवाळा महारौद्र एवा कबंधो नाचवा लाग्या. जाते समरसंमः / ते वैरिसभटवजाः // संनिन्यः श्रोसमित्रस्य / सैन्यं दैन्यदशामिदं // 9 // अर्थ-आ प्रमाणे युद्धनो संमर्द थवाथी वैरीना सुभटोए सुमित्र राजाना सैन्यने दीनदशावालू करी दी . // 9 // .. हतप्रतापमालोक्य / स्वं सैन्यं श्रीसुमित्रराट् / तत्कालं स समास्फाल्य / पाणिना धनुराददे // 10 // " अर्थ-तेवुहत प्रतापवाळा पोताना सैन्यने जोइने श्री मुमित्र राजाए तत्काळ हाथवडे आस्फालन करीने धनुष्य ग्रहण कयु.॥ कुर्वन्नितस्ततो राज-हंसान धाराधरोपमः॥ श्रीसमित्रो ववर्षाशु / धरासारैः शरोत्करैः // 11 // ___ अर्थ-अने धाराधर वरसादनी उपमावाळा सुमित्र राजाए धाराना सारभूत एवा उत्कट वाणों वरसावीने राजाओरूप हंसोने आम तेम छुटा पाडी दीधा. // 11 // खंडयित्वा किरीटानि / मुंडयित्वा शिरांसि च // लक्ष विलक्षतां निन्ये / शत्रराजगणस्य सः॥ 12 // __अर्थ-शत्रुभूत राजाओना समूहना मुकुटोनुं खंडन करी नाखीने, तेमना मस्तकाने याणवडे मुंडो नाखीने तेमना लक्षने विलक्ष करी मूक्यु. / / 12 / / ततः शत्रुमहासैन्यं / भग्नं लेभे जयश्रियं // श्रीसुमित्रनरेंद्रोऽसौ / सौमित्रिसदृशो बली // 13 // ___ अर्थ-एटले शत्रुतुं सैन्य भागया मांडयुं अने सौमित्रो (लक्ष्मण)नी जेम बळवान एवो सुमित्र राजा विजयवंत थयो. // 13 // LOOOOOOOOOOOOOOOOOODD PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रय // 82 // एवं विजित्य शत्रन स / चंपाराज्ये निवेश्य तं // संग्रामाख्यं तथान्यांश्च / खंडखंडेषु भूपजान् // 14 // | अर्थ-ए प्रमाणे शत्रुओने जीतीने चंपापुरीना राज्य उपर संग्राम कुमारने स्थापन को तेमज वीजा भाइओने जूदा जूदा / विभागो आप्या. // 14 // HI मिलनाय समायांतं / ततो माता विलोक्य तं // नवमेघपयःसिक्ता / वनालीव व्यराजत // 15 // ___अर्थ-वाद पोते माताने मळवा माटे राजमहेलमां आव्यो, तेने जोइने भीतिमती राणी नवा वरसादना पाणीथी सींचायेली बनराजीनी जेम विकस्वर थइ. // 15 // प्रणिपत्य मुदा पादौ / मातुरादाय चाशिषं // कियत्कालं स्थितो भ्रातु-राग्रहेण सुखं ततः॥ 16 // अर्थ-पछी माताने पगे लागीने, तेमनी आशीष मेळवीने भाइओना आग्रहथी केटलोक काळ त्यां आनंदथी रह्यो. // 16 // आपृच्छय बांधवान् सार्धं / जनन्या सैन्यसंयुतः॥ जितकाशी निजद्रंग-समीपे समुपेयिवान् // 17 // अर्थ-पछी भाइओने पूछीने तेमनी रजा लइने माता अने सैन्य सहित विजेता सुमित्र राजा त्यांथी नीकळी पोताना नगरनी समीपे आव्यो. // 17 // शुभमुहूर्तमवाप्य नरेश्वरः / प्रवरसिंधुरवाहनबंधुरः // कनकतोरणवंदनमालिकं / स्वनगरं प्रविवेश विशालकं // 218 / / TO ODDOOOOOOOOOOOODegaoo. PPA Gunnanasur MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 83 // DDOOGODDDDDDDDDDDDDDDD ___अर्थ-पछी शुभ मुहूर्त जोइने श्रेष्ठ एवा हस्तीपर आरोहण करी कनकना तोरण तेमज वंदनमालिकावाळा पोताना विशाळ नगरमां माता सहित तेणे प्रवेश कर्यो. // 218 // इति श्रीहर्षकुंजरोपाध्यायविरचिते दानरत्नोपाख्याने श्रीसुमित्रचरित्रे मूर्खापगमराज्यपट्टाभिषेकस्वकुलकमायातमूलराज्यवालनवर्णनो नाम द्वितीयः प्रस्तावः // श्रीरस्तु॥ - ----Nover ॥अथ तृतीयः प्रस्तावः प्रारभ्यते // प्रियंगुमंजरीमुख्याः / सर्वा वध्वः पदेऽलगन् // श्वश्रूहिताशिषं प्राप्य / चित्ते मुमुदिरेतरां // 1 // | अर्थ-प्रीतिमती माताने प्रियंगुमंजरी विगेरे सर्वे बहुओ पगे लागी अने सासुनी हिताशिष पामीने घणी हर्षित थइ. // 1 // स्वपुत्रश्रियमालोक्य / पुरुहतचिसन्निभां / / माता प्रीतिमती तत्र / निःसीमां प्रीतिमाप सा // 2 // . . अर्थ-मीतिमत्ती माता पण इंद्रना जेवी पोताना पुत्रनी ऋद्धि जोइने अत्यंत हर्षने पामी. // 2 // कुर्वाणमिति साम्राज्यं / श्रीसुमित्रं सुरेंद्रेवत् // सभासीनं प्रतीहार | एकदा तं व्यजिज्ञपत् // 3 // अर्थ-ए प्रमाणे सुमित्रराजा इंद्रनी जेम राज्य पाळे छे. एकदा ते राजसभामां बेठेल छे तेवामां प्रतिहारीए आवीने विज्ञप्ति न | करी के-॥ 3 // DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDED // 83 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 84 // चकोरवन्निशारत्नं / स्वामिन्नुद्यानपालकः // त्वदंहिकमलं दृष्टु-मुत्सुको द्वारि तिष्ठति // 4 // अर्थ- चकोर जेम चंद्रने जोवा इच्छे तेम हे स्वामिन् ! उद्यानपालक तमारा चरणकमळ जोवाने उत्सुक थयो सतो द्वारे रहेलो छे. // 4 // निशम्येति नृपोऽवोच-च्छीघ्रमानय तं ततः॥ कृतप्रवेशो नृपतेः। सभायां स समाययो // 5 // __अर्थ-तेने माटे सुं आज्ञा छे ?' ते सांभळीने राजाए कह्यु के-'तेने शीघ्र प्रवेश कराव.' एटले प्रतिहारीए रजा आपवाथो उद्यानपालक राजसभामा प्रवेश करी, // 5 // ढोकयित्वा नृपं प्राह / स्फुरहकुलमालिकां // उद्यानेऽद्यैव ते देवा-ययो पुष्पावतंसके // 6 // __अर्थ-स्फुरायमान बकुलना पुष्पनी माळा अर्पण करीने बोल्यो के-'हे राजन् ! हे देव ! आपना पुष्पावतंसक नामना उद्यानमां धर्मघोषाभिधः सूरिः / साधुवृंदसमन्वितः // बहुहस्तिपरीवारो। यूथनाथ इव द्विपः // 7 // अर्थ-घणा हस्तीओना परिवारथी परवरेला गुथना स्वामी गजेंद्रनो जेम धर्मघोष नामना आचार्य घणा साधुओ सहित पधार्या छे.' // 7 // कर्णामृतमिवाकर्ण्य / दत्वा तस्मै नरेश्वरः॥ रोमांचितवपुः सर्वा-भरणानि प्रहर्षतः॥८॥ ___ अर्थ-कर्णामृत जेवो अमृतनी जेवी-कानने. अत्यत पिय लागे तेवी वाणीने सांभळीने हर्पित थयेला शरीरवाळा ते नृपतिश्रेष्ठे - अत्यंत हर्षधी तेने सर्व आभूषणो आपी राजी कर्यो. // 8 // WOODOORDPOOOOOOOOGDISE रोमांचिताः सर्वाभरणानि प्रहर्षतः // 1 // 5 // PPAGunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र // 85 // तत्कालं स समुत्थाय / मंत्रिसामंतसंयुतः॥ प्रियंगुमंजरीमुख्यां-तःपुरीभिः परिवृतः॥९॥ अर्थ-पंछी मंत्री तथा सामंत सहित तरतज त्यांथी उठीने भियंगुमंजरी छे मुख्य जेमां एवी अंतःपुरनी राणीओथी परवरेलो, सिंधुरमारूढो / लसच्छत्रः स्फुरद्रुचिः॥ चलञ्चामरयुग्मेन / राजमानो महेंद्रवत् // 10 // अर्थ-पट्टहस्ती उपर चडेलो, छत्रथी शोभतो, स्फुरायमान भीतिवाळो, इंद्रनी जेम चामरयुगलथी ये वाजु बींझातो ते राजा उद्यान तरफ चाल्यो. // 10 // वाद्यमानेषु वायेषु / गीयमानेष्वनेकशः // गीतेषु जायमानेषु / नृत्येष्वगणितेषु च // 11 // अर्थ-अनेक प्रकारना बाजीलो वागते छते, अनेक प्रकारना गायनो गवाते छते, विविध प्रकारना नृत्यो थते छते, // 11 // दानेषु दीयमानेषु / स राजा समहोत्सवं // सूरिं सातिशयं नंतुं। प्रतस्थे चाप तदनं // 12 // ___अर्थ-अने पुष्कळ दान आपते छते ते राजा मूरिपुंगवने अतिशय भक्तिथी नमस्कार करवाने माटे मोटा आडंबर सहित ते उद्यान नजीक पहोंच्यो. // 12 // . | त्यक्त्वा गजादिचिह्नानि / पंचावग्रहपूर्वकं // विधिज्ञो विधिवत्सूरिं / ननाम सपरिच्छदः // 13 // _अर्थ-एटले हाथी आदि राजचिनोनो त्याग करीने, पांच प्रकारना अभिगम जाळवषापूर्वक विधिने जाणवावाला ते राजाए। HI परिवार सहित विधिपुरःसर ते आचार्यमहाराजने नमस्कार को. // 13 // PP.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् 86 // मंत्रिमित्रकलत्रादि-परीवारवतोऽस्य सः // धर्मलाभं तनोतिस्म / गुरुमुरुसुखप्रदं // 14 // ____ अर्थ-मंत्री, मित्रो अने स्त्रीओ विगेरे परिवारवाला एवा तेने गुरुए उत्कृष्ट सुखने आपनारो 'धर्मलाभ' आप्यो. // 14 // तथा नागरिकैः सर्वै-मयूरैः प्रावृषीव सः॥ आनंदमेदुरैरेत्य / नमश्चक्रे मुनीश्वरः // 15 // ___अर्थ-वरसादना आववाथी जेम मोर हर्षित थाय तेम गुरुमहाराजना आगमनथी अत्यंत आनंदने प्राप्त करीने सर्व नगरजनोए पण त्यां आवी आचार्यदेवने नमस्कार कर्यो. // 15 / / आसीनेषु यथास्थानं / भव्येषु सकलेष्वपि // सभायां चारुशोभायां / निवृत्ते तुमलेऽखिले // 16 // अर्थ-पछी सुंदर शोभावाळी सभामां सर्व भव्यजनो पोतपोताने योग्य स्थाने योग्य रीते बेसी गया बाद अखंड शांति पथराये छते // 16 // | गुरुणा देशनाकारि / मृद्वीमधुरया गिरा // संसारक्लेशनाशाय / शिवाशायै शरीरिणां // 17 // अर्थ-भव्यजीवोने मोक्ष प्राप्त कराववा माटे अने प्राणीमात्रना संसाररुपी दुःख-क्लेशना नाशने माटे कोमळ अने मधुर - वाणीवडे गुरुमहाराजे देशना देवानो प्रारंभ कर्यो केन। 17 // - रत्नं रोर इव प्राप्य / दुर्लभं मानुषं जनुः // ग्राह्य धर्मफलं तस्य / बुद्धिमद्भिर्विवेकिभिः // 18 // म अर्थ- हे भव्यजीवो ! रंक मनुष्य जेम चिंतामणिरत्नने दुर्लभताथी पामे तेम मनुष्यजन्म पामीने बुद्धिमान अने विवेकशाली DHODDDDDDDED DEODODODH // 86 // PR.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र लन चरित्रम् मनुष्योए तेनाथी धर्मरुप फल प्राप्त करचु जोइए. // 18 // न प्राप्ते प्रणे निधौ रत्न-रिव बालो वराटिकां // मूखों मुक्तिफले भोगा-नीहते नरजन्मनि // 19 // अर्थ- रत्नथी परिपूर्ण एवं निधान प्राप्त थया छतां मूर्ख मनुष्य कोडो मेलबवा इच्छे तेम मोक्षफळने आपे एवो मनुष्यजन्म पामीने आ पाणी तेनावडे भोगने इच्छे छे. // 19 // | तस्माद्धर्मः सदा सेव्यः / कल्पगुरिव कामदः // सारं तस्यापि संतोषो / गोरसस्य घृतं यथा // 20 // अर्थ-तेथी आ मनुष्य जन्ममां धर्मज सदा सेवबा लायक छे, कल्पवृक्षनो जेम ते सर्व इच्छितने आपनार छे, ते धर्ममां पण गोरसमां घृतनी जेम संतोष सारभूत छे. // 20 // यदुक्तं-संनिधौ निधयस्तस्य / कामगव्यनुगामिनी // अमराः किंकरायंते | संतोषो यस्य भूषणं // 21 // ___अर्थ-को छ के-संतोपरुप भूषण जेणे माप्त कर्यु छे तेने सर्व निधानो समीपज छे, अर्थात् कामधेनु तो तेनी पाछळ चाले छे, देवो दास थइ रहे छे. // 21 // असंतोषवतः सौख्यं / न शक्रस्य न चक्रिणः॥ जंतोः संतोषभाजो य-दुभयस्यैव जायते // 22 // अर्थ-असंतोषी एवा चक्रीने के इंद्रने पण सुख नथी. जेओ संतोषवाळा होय छे तेमनेज ते बने सुखदायक स्थिति प्राप्त थाय छे. असंतोषोद्भवो लोभः / परमं वैरकारणं // नृपमंत्रीभ्यारक्षक-पुत्राश्चात्र निदर्शनं // 23 // MODEODDDDDDDDDDDDDE ना॥८७॥ P.P.Ar Gunratrasuri M.S Jun Gan Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र // 88 // . अर्थ-असंतोषथी उदभवतो लोभ परम वैरनुं कारण थाय छे, ते उपर राजा, मंत्री श्रेष्टी, अने कोटवाळना पुत्रोन दृष्टांत नछे ते आ प्रमाणे-॥ 23 // A तथाहि सर्ववस्तूनां / संकेतमिव सुंदरं // वसंतपुरमित्यस्ति / नगरं नगरोत्तमं // 24 // . अर्थ-सर्व वस्तुओना संकेतवाळ सुंदर अने उत्तम नगर जेवू वसंतपुर नामर्नु नगर छे.॥ 24 // त्रनपस्तत्र / कंठीरवकिशोरवत // राजतेऽरिकरिवाते / स्वप्रजांभोजभास्करः॥ 25 // .. म अर्थ-त्यां जितशत्रु नामे राजा छे, ते शत्रुरूप हस्तीओना समूहमा सिंहना किशोर जेवो छे अने पोतानी मजारूप कमळने विकसाववामां मूर्य जेवो छे. // 25 // पुरे तत्र नृपामात्य-श्रेष्ट्यारक्षकनंदनाः॥ समानवयसो नित्यं / क्रीडां चक्रुः परस्परं // 26 // अर्थ-ते नगरमां राजा, अमात्य, शेठ अने आरक्षकना समान वयवाला पुत्रो निरंतर साथे रहीने क्रीडा करे छे. // 26 // | एकस्यां लेखशालाया-मशिक्षत कलाः कलाः // क्रमेण यौवनं प्रापुर्युवतीजनमोहनं // 27 // अर्थ-एकज लेखशाळामां ते चारे सर्व कळाओ शीख्या. अनुक्रमे तेओ युवतीजनना मनने मोह पमाडनार यौवन पाम्या.।२७।। आबाल्यादपि सस्नेहै-रेकदा तैः परस्परं // एवमालोचितं पूर्व-कृतकर्मानुमानतः // 28 // . अर्थ-बाल्यावस्थाथीज परस्पर स्नेहवाळा तेओए एकदा पूर्वकर्मना प्रभावथी एम विचार कर्यो के-॥ 28 // Jun Gun Aaradha Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 89 // नन्वस्माभिः कथं कूप-मंडुकैरिव नित्यशः // स्थीयतेऽत्रैव नगरे / खागार इव कातरैः // 22 // __अर्थ-आपणे कुवाना देडकानी जेम निरंतर कायरपुरुष जेम पोताना घरमांज वेसी रहे तेम आ नगरमां शामाटे रहेवु ? // 29 // दृश्यते विविधाश्चर्य / विशेषो ज्ञायते द्वयोः // सदसजनयोः स्वात्मा / कल्यते क्रमणादवि // 30 // G ___ अर्थ-परदेश जबाथी अनेक प्रकारना आश्चर्यो जोइ शकाय अने सज्जन तेमज दुर्जनने पण ओळखी शकाय अने पृथ्वीपर भमवाथी आपणा आत्मानी पण किंमत आंकी शकाय. // 30 // यावत्स्वस्वपितः कार्य-भराक्रांता वयं न हि // निश्चिंताः कोतुकान्येव / पश्यामः किं न भूतले // 31 // .. अर्थ-ज्यां सुधी आपणे पोतपोताना पिताना कार्यभारथी आक्रांत थया नथी अर्थात् ते बोजो आपणा उपर आवी पडयो नथी त्यां सुधीमा निश्चिंत एवा आपणे पृथ्वीपर रहेला कौतुको शामाटे न जोइए ? // 31 // विमृश्येति पुनः प्रोचु-स्त्रयोऽन्ये भूपजंप्रति // कुमार न त्वया कार्या / चिंता कापि स्वचेतसि // 32 // ___अर्थ-आ प्रमाणे विचारीने वीजा त्रणेए राजपुत्रने का के-' हे कुमार ! तमारे पोताना चित्तमा काइपण चिंता न करवी,३२। | यतस्तव वयं भृत्याः / स्वकलाभिरताः सदा॥ अर्जितेर्वस्तुभिर्भक्तिं / करिष्यामोऽदनादिकां // 33 // ____ अर्थ-कारण के अमे बणे तमारा सेतकरुप थइने अमारी कळामां सदा रक्त छता तेनावडे उपार्जन करेली वस्तुओथी तमारी खानपान विगेरेनी भक्ति करशु,' // 33 // P.P.Ar Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ यमित चरित्रम // 9 // यदुक्तं श्रीमदावश्यके-जेण कुलं आयत्तं / तं पुरिस आयरेण रक्खिजा // न ह तुंबे य विणठे। अरया साहारया इंति // 34 // __ अर्थ-श्री आवश्यकसूत्रमा कयु छ के-जेना आधार उपर आखं कुळ होय तेनी आदरपूर्वक भक्ति करवी, कारण के गाडाना पैडानुं तुंब विनाश पामे छते आराओ साजा रही शकता नथी. // 34 // | ततस्ते निशि चत्वारो-ऽप्यनापृच्छय निजान् पितृन् / स्वस्वावासात्स्वसंकेत-स्थानमेत्य ततोऽचलन् / .' अर्थ-आ प्रमाणे निर्णय करीने चार जणा रात्रीए पोतपोताना मातापिताने पूछया सिवाय पोतपोताना आवासथी नीकळीने संकेतस्थाने एकठा थइ आगळ चाल्या. // 35 // तस्मिन्नेव दिने दूरं / सायं ग्राममवाप्य ते // श्रांताः सुप्तात्रयस्ताव-न्महाधाटी समाययो // 36 // __ अर्थ-तेज दिवसे सांजे एक गाममा जइने थाकेला एवा त्रणे जणा सुइ गया, तेवामां चोरनी धाड आवी. // 36 / / तदारक्षकपुत्रेण / खड्गखेटकधारिणा // घोरयुद्धेन भग्ना सा / जीवग्राहं गता क्षणात् // 37 // , अर्थ-ते वखते खड्ग तथा धनुष्यने धारण करनारा आरक्षकना पुत्रे घोर युद्ध करीने तेओने भगाड्या, तेओ जीव लइने त्यांची भागी गया. // 37 // हृष्टो लोको द्वितीयेऽह्नि / तानभोजयतादरात् // मुक्त्वा स्थित्वा सुख किंचि-च्चेलुस्ते पुनरपतः // 38 // GODIODOOOOOOOOOODOOOOOनन . // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradtak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् / / 91 // ___ अर्थ-ते हकीकत जाणवाथी गामना लोको बहु राजी थया, एटले बीजे दिवसे तेओए तेमने आदरपूर्वक जमाड्या. तेओ जमीने जराबार सुखपूर्वक आसायेश लइने पाछा आगळ चाल्या. // 38 // क्रमेणापुः पुरं किंचि-त्पूरितं विश्ववस्तुभिः // भोजनायोद्यमं तत्र / चकार व्यवहारिसूः // 39 // ___अर्थ-अनुक्रमे तेओ एक नगर पासे आव्या के जे नगर सर्व वस्तुओवडे परिपूर्ण जणातुं हतुं, त्यां व्यवहारीना पुत्र भोजन मेळववा उद्यम को. // 39 // समागत्यापणश्रेणौ। कस्यचिद्वणिजः करे // समर्प्य मुद्रिका किंचि-जग्राह द्रविणं सुधीः॥४०॥ अर्थ-वजारमां दुकानोनी श्रेणी तरफ आवीने कोइक वणिकना हाथमां मुद्रिका आपीने तेणे अमुक द्रव्य लीधु. // 40 // चतुष्पथे स वस्तूनां / परीक्षासु विचक्षणः // कयं च विक्रयं कृत्वा-जयरपंचशतीमितः // 41 // अर्थ-पछी वस्तुओनी परीक्षामां विचक्षण एवो ते चतुष्पथमां गयो अने त्यांथी कोइ वस्तु सस्ते भावे खरीद करी, तरतज ते वेची नाखीने पांचशे द्रम्म मेळव्या. // 41 // यामैकमध्यतोऽदीनो। दीनाराणां सुलक्षणः // मूलस्वेनोर्मिकां नीत्वा / लाभद्रव्यमथानयत् // 42 // / अर्थ-एक पहोरनी अंदर ए प्रमाणे लाभ मेळवीने अदीन एवा तेणे मूळ द्रव्य पार्छ आपीने मुद्रिका पाछी मेळवी. // 42 // तेन भोजनसद्वस्त्र-तांबलकुसुमादिभिः॥ वयस्यांस्तोषयामास / सर्वान श्रेष्टिसुतोत्तमः // 43 // DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD // 9 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र 92 // ....' अर्थ-पछी मेळवेला द्रम्मवडे भोजन, वस्त्र, तांबुल, कुसुमादिक खरीद करी मित्रो पासे आवीने ते श्रेष्ठीपुत्रे पोताना मित्राने | न चरित्रम् संतोष पमाड्या. // 43 // तत्रोषित्वाग्रतश्चलः / क्रमात्सुरपुराभिधं // द्रंगमाप्य सुरावासे / तस्थुस्ते सुहृदः सुखं // 44 // अर्थ-त्यां रात्रि रहीने पाछा आगळ चाल्या. अनुक्रमे सुरपुर नामना नगरे आव्या, त्यां कोइ देवळमां चारे मित्रो आनंदयी रह्या, मंत्रिसर्वारकं सोऽथ / मत्वागात्स चतुःपथं // वाद्यमानमथ श्रुत्वा / पटहं कंचिदब्रवीत् // 45 // अर्थ-आजे मंत्रीपुत्रनो वारो होबाथी ते चतुष्पथमां गयो. तेणे पटह वागतो सांभळीने कोइने पूछयु के-॥४५॥ किमर्थमयमत्यंतं / ताब्यते सोऽपि तं जगो॥ दूरदेशिन दयाधार / शृणु त्वं कारणं रयात // 46 // अर्थ- आ पटह शा माटे अत्यंत वगाडवामां आवे छे ?' तेणे जवाब आप्यो के-'हे दूरदेशमा रहेनारा मुसाफर ! तेनं कारण सांभळ ? // 46 // कतथिदागतोऽस्त्यत्र / सर्वधूर्तशिरोमणिः // धूर्तः कोऽपि नरोऽत्रत्यं / धृत्वा सार्थपति जगौ // 47 // - अर्थ-अहीया कोइ सर्वधूशिरोमणि मनुष्य कोइ स्थळेथी आवेलो छे, तेणे अहींना एक सार्थवाहने एक दिवस कथु के-॥ मायदहं त्वत्पुरो लक्ष-मेकं प्रच्छन्नमुक्तवान् // दीनाराणां हि तत्सार्थ-पते तन्मम दीयतां // 48 // ___अर्थ-'हुँ तमारे त्यां छानी रोते एक लक्ष दीनार मूकी गयो हुं, ते हे सार्थपति ! मने पाछा आपो.' // 48 // // 92 // PP.AC.GunratnasuriM.S. Jur.Gun Aaradhak Trust
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________________ समित्र चरित्रम् सार्थपस्तंप्रति प्रोचे / कः साक्षी सोऽवदत्पुनः // साक्षिकः स्थपने नान्यः। स एव परमेश्वरः // 49 // | अर्थ-सार्थपतिए कयु के-'तेनो साक्षी कोण छे ?' धूर्त बोल्यो के-'छानी थापण मूकवामां साक्षी कोण होय ? साक्षी तो एक परमेश्वर छे.' // 49 // एवं वदंतो केनापि / तावभंगरविग्रहो। राजसंसदि संप्राप्तौ / षण्माषानंतरं ततः॥५०॥ अर्थ-आ प्रमाणे तेओनो विवाद छ मास चाल्यो पण कोइ तेनो विग्रह मटाडी शक्यु नहीं तेथी तेओ राजसभामां गया.५०। दृष्ट्वा तौ स तयाभूतौ / राजामात्यान् समादिशत् // कलहो भज्यतां शीघ्रं / भवद्भिर्बुद्धिशालिभिः // 51 // अर्थ-ते बनेनी उपर प्रमाणेनी बातो सांभळीने राजाए अमात्योने का के-'तमारे बुद्धिशाळीओए आनो कलह शीघ्र भांगी नाखवो.' // 51 // मिलितैर्मत्रिभिरग्र-मतिभिर्नानयोरयं // बहुभिर्वासरैरेवं / विवादो विलयं ययौ // 52 // / अर्थ-पछी बधा मंत्रीओ एकठा मळया अने ते बुद्धिशाळीओए घणा दिवस मुधी आ बाबतनो विचार कर्यो परंतु तेनो विग्रह मटाडी शक्या नहि. // 52 // अतोऽयायं नृपादेशा-द्वाद्यमानोऽस्ति सर्वतः // योऽनयोर्वादमागत्य / भनक्ति स्वमनीषया // 53 // मंत्रिभ्यो भूभुजा तस्मै / उम्मलक्षं प्रदाप्यते / / इत्यर्थे निश्चयो ज्ञेय / इत्युद्घोषणपूर्वकं // 54 // PPAC Gunratnasuri MS. Jun Gun Andhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 94 // ___अर्थ-तेथी राजाना आदेशथी आ पटह वागे छे के-'जे कोइ पोतानी बुद्धिवडे आनो विवाद भांगशे तेने राजा आ मंत्रीओनी 10 पासेथी लाख द्रम्म अपावशे, एमां जरा पण शंका करवी नहीं. // 53 // 54 // श्रुत्वेति पटहं मंत्रि-पुत्रः पस्पर्श बुद्धिमान् // ततो नियोगिभिर्निन्ये / सोऽश्वमारोप्य संसदि // 55 // ___ अर्थ-आवो उद्घोषणापूर्वक वागतो पटह बुद्धिमान मंत्रीपुत्रे स्पर्यो, एटले घोडापर बेसाडीने राजाना अधिकारी पुरुषो तेने राजसभामां लइ गया. / / 55 / / सुंदराकारमालोक्य / सकलं तं शशांकवत् // समुद्र इव गंभीरो / जहर्ष जगतीपतिः // 56 // ___अर्थ-ते मंत्रीपुत्रने सुंदराकारवाळो तेमज चंद्रमानी जेम कळावाळो अने समुद्रनी जेबो गंभीर जोइने राजा हर्ष पाम्यो.॥५६॥ विवेकमनयोर्वत्स / हंसवत्क्षीरनीरयोः // नराधीशस्तमाचक्षे / कुरु त्वं श्रेष्टिधूर्तयोः // 57 // 'अर्थ-राजाए तेने कर्यु के-' हे वत्स ! आ धूर्त अने श्रेष्ठीना विवादनो न्याय हंस जेम क्षीरनीरनो करे तेम करी बताव.' // समाकार्य ततो धूर्त / दृष्ट्वावादीत्स मंत्रिसूः // भद्रोपलक्षितोऽसि त्वं / चिरादृष्टोऽसि भाग्यतः // 58 // अर्थ-पछी मंत्रीपुत्रे ते बनेने पोतानी पासे बोलाव्या. तेओ आव्या एटले धूर्त्तने जोइने मंत्रीपुत्र एकदम बोल्यो के-'अहो हे भद्र ! में तमने ओळख्या, बहु काळे भाग्ययोगे तमें देखवामां आव्या पण बहु ठीक थयु. // 58 // तव पाश्वे मया मुक्तं / वर्णलक्षचतुष्टयं // परमेश्वरप्रत्यक्षं / यत्तदर्पय सत्वरं // 59 // जा।। 94 // GOOD ADDDDDDOOOOOOODOBER PPAC Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ र अर्थ- हे भाइ ! में तमारी पासे चार लक्ष द्रव्य परमात्माने साक्षी राखीने मूकेलं छे ते सत्वर आपी दो ? // 59 // श्रुत्वेति वित्थायः। शाखाभ्रष्टकपीशवत् // जज्ञे यतो जयो धर्मा-नाधर्माद्भवति क्वचित // 6 // // 95 // - अर्थ-आ प्रमाणे सांभळीने पेलो धृत शाखाभ्रष्ट थयेला वानर जेवो अने झांखा मुखवाळो थइ गयो. पछी तेबोल्यो के| 'धर्मथीज जय छे, अधर्मथी नथी.' 60 // ततो रुष्टो नृपो राज-पुरुषानादिशत्पुनः // चौरवन्मारणीयोऽसो / विगोप्य नगरेऽखिले // 61 // _____ अर्थ-आ प्रमाणेना धर्तना वचनो सांभळीने राजाए तेना पर कोपायमान थइने राजपुरुषोने हुकम कर्यो के-'आने आखा नगरमां फेरवी तेनी विगोवणा करीने चोरनी जेम मारी नाखो.' / / 61 // पतित्वा पादयोमैत्रि-सुतश्च नृपतेः पुरः // याचयित्वा महाधूतों / जीवन्निष्कासितः पुरात् // 62 // __अर्थ-ते वखते मंत्रीपुत्रे राजाना पगमां पडी याचना करीने ते महाधर्तने जीवतो छोडावी देशपार कराव्यो. // 62 // अहो बुद्धिरहो धर्मः। प्रशस्येति नरेश्वरः // मंत्रिभ्योऽदापयद्रम्म-लक्षमस्मै क्षणेन सः॥ 3 // __ अर्थ-राजाए 'अहो बुद्धि ! अहो बुद्धि ! अहो तेना धर्मनी प्रशस्यता!' एम कहीने मंत्रीओनी पासेथी तेने लाख द्रम्म तर तज अपाव्या. // 63 // I धन्योऽयं येन बुझ्ध्यासौ / मोचितः श्रेष्टिपुंगवः // सद्रव्यः सर्वलोकेभ्यः / शृण्वन्निति समाययो // 64 // DODDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD P.P.Ac Guntanasur MS. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र DOOOOOOOOOOD ADDDDDDDDDD / अर्थ-लोको कहेवा लाग्या के-'आ पुरुषने धन्य छे के जेणे आपणा श्रेष्ठीपुंगवने उपाधिमुक्त कर्या.' आ प्रमाणे सर्व लोकोनी / प्रशंसा सांभळतो ते मंत्रीपुत्र बजारमा आव्यो. // 64 // तेन वित्तेन तैर्मित्रैर्यथेच्छं बुभुजेतरां // नानाभोगा गृहस्थांनां / यतोऽर्थः कल्पपादपः // 65 // . | अर्थ-अने ते द्रव्यवडे अन्नपानवस्त्रादि ग्रहण करी मित्रो पासे आव्यो अने मित्रोने यथेच्छ खानपानवडे प्रसन्न कर्या. गृहस्थोने | धन ए कल्पवृक्ष तुल्य छे.'॥६५॥ वापीकूपतडागाब्ज-प्रासादप्रमुखाणि ते // चित्राण्यपश्यन् रम्याणि / यतस्ते कोतुकप्रियाः // 66 / / | अर्थ-पछी तेओए वापी, कूप, कमलयुक्त सरोवरो अने पासादो तथा मनोहर एवा चित्रादिक चोतरफ फरीने जोया, कारण के तेओ कौतुकप्रिय हता. // 66 // . स्थित्वा कालं कियंतं ते / तत्र स्वेच्छाविहारिणः // प्रतस्थिरे ततः स्थानाद / दूरदेशदिदृक्षया // 67 // . 'अर्थ-स्वेच्छाविहारी एवा तेओ त्यां केटलोक काळ रहीने दूर देश जोवानी इच्छावडे पाछा त्यांथी आगळ चाल्या.॥ 67 // प्राप्याटवीं महाघोरां / सिंहव्याघ्रगजादिभिः // सुखेन पारमापुस्ते / संसारस्येव योगिनः // 68 // H. अर्थ-मार्गमां एक महा घोर अटवी आवी ते सिंह, वाघ, हाथी विगेरे श्वाषदोथी व्याप्त हती. योगी जेम संसारनो पार पामे | तेम तेओ सुखे सुखे ते अटवीनो पार पाम्या. // 68 // PP. Ac Gunratrasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम 97 // विस्तीर्णवटवृक्षस्य / तले सायं समाययुः॥ ते चत्वारोऽप्युपग्रामं / मार्गश्रांताः सखैषिणः // 69 // अर्थ-एक दिवस संध्याकाळ तेओ गामनी नजीक एक विस्तीर्ण वडवृक्षनी नीचे आव्या. चालवाथी थाकेला अने विसामाना | इच्छक एवा ते चारे त्यांज रह्या. // 69 // .............. . ........ . चतुर्ष निशि यामेषु / क्रियायां यामिकस्य ते // विधाय वारकांश्चक्रुः / शयनं कोमलस्थले // 7 // ___ अर्थ-रात्रिना चार पहोरे चोकी करवा माटे एकेक जणना वारा.ठरावी एकेक जणे पहेरेगिर तरीके जागृत रहेवानुं अने 5 बाकीना त्रण मित्रोए कोमळ स्थळ जोइने शयन करवानुं ठराव्यु.॥ 70 // प्रथमे प्रहरे राज-सुते जागरतीत्यवक् // अंतरिक्षस्थितः कोऽपि / पतामीति पुनः पुनः॥ 71 // .... अर्थ-पहेले पहोरे राजपुत्रनो वारो होबाथी ते जागतो हतो, ते वखते अंतरिक्षमा रहीने कोइ बोल्युं के 'पहुं ?' आ प्रमाणे वारंवार तेवो शब्द सांभळवाथी // 71 // साहसैकनिधिर्वीरः / श्रुत्वावोचन्नृपांगभूः॥ पुनः पुनः कथं वक्षि / यथेच्छ पत तत्क्षणं // 72 // . अर्थ-साहसिकशिरोमणि अने वीर एवो राजपुत्र बोल्यो के-'वारंवार पहुं पहुं हुं काम बोले छे? पडवु होय तो यथेच्छपणे पड'। व पुनराह समुत्पाते / सर्वेषां भवतां खलु // महानर्थोऽस्त्यनथोंऽपि / श्रुत्वैतद्राजसूर्जगौ // 73 / / अर्थ-वळी अंतरिक्षमाथी अवाज आव्यो के-'मारा पडवाथी तमैने सर्वेने मोटा अर्थनी साथे अनर्थनी पण प्राप्ति थशे.' ते न सांभळीने राजपुत्र चोल्यो के-1॥ 73 / / 1.97 // PP.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 98 // अर्थे तावदनर्थः स्या-न्मरणं सुधया तदा // कर्पूरेण भवेदंत-पातश्चेसहि भूयतां // 7 // अर्थ-'जो अर्थथी अनर्थ थाय, अमृतथी मरण थाय अने कर्पूरथी दांतनुं पडवु थाय तो भले थाओ.' // 74 // - स्फुरत्कांतिस्ततोऽनंता-द्विद्युदंड इवापरः॥ द्योतयन् दिङ्मुखानीय | सौवर्णः पुरुषोऽपतत् // 75 // ____ अर्थ-कुमारना आवा वचनोथी अनेक विद्युत्दंड जेवो स्फुरायमान कांतिवाळो अने दिशाओने प्रकाशित करतो एक सुवर्णपुरुष त्यां पड्यो. // 75 // तृष्णातरंगिणीतोय-धरं तं हृष्टमानसः॥ कुमारो गोपयामास / कुत्रचित्स्वनिधानवत // 76 // अर्थ-तृष्णारूपी नदीओने वर्षा समान तेने जोइने हर्षित थयेळा कुमारे कोइ जग्याए खाडो खोदीने तेमां ते पुरुषने पोताना धननी पेठे गोठव्यो. .. एवमन्यत्रयाणाम-प्यात्मात्मप्रहरे ह्यभूत // परस्परमविज्ञाता / सिद्धिः वर्णनरस्य च // 77 // अर्थ-बीजा त्रण मित्रोना पहोरना वखते पण तेज प्रमाणे बन्यु अने तेमणे पण एक बीजा न जाणे तेम ते सुवर्णपुरुषने जूदे.जूदे स्थाने गोठव्यो. // 77 / / चत्वारोऽपि प्रभाते ते / स्वहेमगतमानसाः॥ इतस्ततो भ्रमंत्येव / मनो नोत्सहते गते // 78 // अर्थ-पछी प्रभात थयु, परंतु पोतपोताना सुवर्णपुरुष संबंधी लालसावाला तेओ त्यांने त्यां आमतेम भमवा लाग्या. कोइनु नमन त्यांथी आगळ चालबार्नु थयुं नहीं. // 78 // . LOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOन ना॥९८॥ P.PAC Gunrainesuri MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम् सुमित्र नृपारक्षसुतौ शस्त्र-धारिणौ मिलितौ रहः // उक्त्वा मिथो रहस्यं तो। मंत्रिश्रेष्टिसुतावपि // 79 // ____ अर्थ-पछी राजा अने कोटवाळना शस्त्रधारी पुत्रो एकांतमा मळ्या अने पोतपोतानु रहस्य एकबीजाने कब्यु. मंत्री अने श्रेष्टीना पुत्रोए पण एज रीते एकवीजाने कह्यु. / / 79 // ... ततो नृपतलारक्ष-पुत्राभ्यां हि परस्परं // मंत्रितं च किमावाभ्या-मेतयोर्वणिजोरिह // 8 // .. ____ अर्थ-हवे राजा अने कोटवाळना पुत्रोए परस्पर विचार कर्यो के-'आपणे आ वणिकपुत्रोतुं काम छे? // 8 // नवभाग्यैर्लब्धयोः स्वर्ण-पुंसोर्भागः प्रदीयते // मार्यतेऽम् गतश्चारु / नो चेद्भागं हरिष्यतः॥ 81 // | अर्थ-आपणा भाग्यथी मळेला सुवर्णपुरुषमाथी तेमने भाग शा माटे देवो जोइए? माटे तेने मारी नाखीए; नहींतर तो भाग न देवो पडशे.' // 81 // | विस्मृश्येति पुरो ग्रामे-शनार्थ प्रविसृज्य तौ // वृक्षमूले न्यलीयेतां / तद्वधायासियुक्करौ // 8 // _अर्थ-आ प्रमाणे विचारीने ते बन्नेने गाममा आहारादि लेवा मोकल्या अने तेओ आवे त्यारे तेने मारी नाखवा सारं तेओ हाथमां तलवार राखीने वृक्षना मूळमां संताइ रह्या. // 82 // | तावपि प्रोचतुर्मागें / गच्छंतो भोज्यहेतवे // अन्योन्यमिति सौवर्ण-पुंसोः प्रातिरभृद्धितौ // 83 // ' अर्थ-पेला बे जणाओ पण भोजन माटे मार्गमा अन्योन्य वातो करवा लाग्या के-'आपणा पुण्यथी आपण बनेने सुवर्ण P.P.Ar Gunnanasur M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 10 // पुरुषनी प्राप्ति थइ छे, // 83 // ज्ञात्वैतत्क्षत्रियावेतौ / मैत्र्यभावाहलादपि // भागं हरिष्यतस्तस्मा-धो युक्तोऽनयोरिह // 4 // ___अर्थ-ते जो आपणा क्षत्रिय मित्रो जणशे तो ते मैत्रीभावथी वळात्कारे भाग पडावशे, माटे एने मारी नाखवा एज युक्त छे.' चिंतयित्वेति संगृह्या-नपानं विषमिश्रितं // कृत्वायांतौ हतौ वृक्षां-तरिताभ्यामिह क्षणात // 85 // ___अर्थ-आम विचारीने तेओ अन्नने विपमिश्रित करीने लाव्या. ते आगळ आव्या एटले वृक्षना मूळ पासे संताइ रहेला बे जणाए ते बन्नेने मारी नाख्या. // 85 // अन्नादिकमजानानौ / क्षत्रियौ तौ विषाविलं / / तत्रैव हि क्षुधाक्रांतौ / भुक्त्वा पंचत्वमापतुः॥८६॥ अर्थ-पछी लावेलं अन्नादि विषमिश्रित छे एम न जाणवाथी ते बने क्षत्रियोए क्षुधाक्रांत होवाथी खावू जेथी तेओ पण त्यांज मरण पाम्या. / / 86 // इतो नंदीश्वरे यात्रां। कृत्वायातौ विहायसा ॥चारणश्रमणो तत्र | राजहंसाविवोज्ज्वलो॥८७॥ - अर्थ-हवे ते अवसरे आकाशमार्गे नंदीश्वरद्वीपनी यात्रा करवा माटे राजहंस जेवा उज्वळ वे चारण मुनिओ जता हता. 87 | शिष्यों गुरुमभाषिष्ट | दृष्ट्वा तांश्चतुरो मृतान् // स्वामिन् शस्त्रहतौ द्वौच। द्वौ विषेण कथं वद // 8 // " अर्थ-तेमांथी शिष्ये गुरुने पूछ्यु के-'हे स्वामी आ चारमां वे शस्त्राघातथी अने थे विषप्रयोगथी केम मरण पाम्या? ते कहो.' DODOIDIODDDDDDOMMOD HD PP AC Gurratasun MS Jun Gun Aaradhat Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् DDREEDDDDDDDDDDDDDDDDE गुरुस्ततोऽवदद्वत्स / पुरा सुग्रामनामनि ॥ग्रामे राज्ञो दृढस्यासं-श्चत्वारो से वराः // 89 // व अर्थ-त्यारे गुरुए कह्यु के-' हे वत्स ! सांभळ? पूर्वे सुग्राम नामना गाममां मुद्रढ नामना राजाने चार श्रेष्ठ सेवको हता.८९॥ न ते च वैरिगृहीतं स्वं / ग्रामं ज्वालयितुं जनान् // हंतुं वालयितुं वैरं / प्रभुणा प्रेषिता ययुः॥९॥ म अर्थ-ते चारेने वैरीए गृहण करेलु पोतानुं गाम वाली नाखीने अने लोकोने मारी नाखीने पैर वाळवा माटे तेना स्वामी राजाए मोकल्या. // 90 // दृष्ट्वा ग्रामं पशुस्त्रीभि-बलकादिभिराकुलं / दयाचित्तास्ते चक-रिति चित्ते विचारणां // 91 // __अर्थ-ते गामने पशुओ, स्त्रीओ अने बाळको विगेरेथी व्याप्त-भरपूर जोइने दयावडे आईचित्तवाला तेओ पोताना चित्तमां आ प्रमाणे विचार करवा लाग्या के-।। 91 // |धिगस्तु जीवितं लोके / सेवकानां सदैव हि // यत्पराधोनवृत्तित्वा-ल्लभंते न क्षणं सुख // 92 // ___अर्थ-सेवकोना जीवितने धिक्कार छे के जेओ सदैव पराधीन वृत्तिवाला होवाथी क्षणमात्र पण सुख मेळवी शकता नथी.।१२। सेवकास्तु परायत्ताः / पापं स्वोदरपूर्तये // कृत्वा नयंति ते घोरं / स्वात्मानं नरकं रयात् // 93 // : ____ अर्थ-सेवको पोतानी उदरपूर्ति माटे परतंत्रपणुं स्वीकारीने घोर पापो करे छे, अने पोताना आत्माने नरकमां लइ जाय छे. ततोऽस्माभिरयं ग्रामो। ज्वालनीयो न पापकृत // विचायति क्वचित्क्षेत्रे-ज्वालयन् प्रलकोच्चयं // 9 // Io P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र 02 DDEDEODEPEEDDEDODOOD ___अर्थ-माटे आपणे तो महापापने बंधावनाएं आ गामने वाळी देवारूप कार्य करवू नहीं.' आ प्रमाणे विचारी कोइक नजीकना खेतरमां घासना पुळानो संचय हतो ते बाली दीधो. // 94 // तस्मिन् पूलोच्चये कश्चिद्धाटिकाभयतः पुरा // हालिकस्तु प्रविष्टोऽभू-त्सोऽपि जज्वाल दैवतः // 15 // ___अर्थ-ते पुळानी गंजीमा कोइक हालिक घाटीना भयथी संताइ रह्यो हतो ते पण बळी गयो. // 95 // जीवोऽत्र हालिकस्तस्य / मृत्वाभूद् व्यंतरो यतः॥ जलाग्न्यादिमृतः सौम्य-भावाव्यंतरतां भजेत् / 96 / अर्थ-ते हालिकनो जीव मरण पामीने व्यंतर थयो. 'जळने अग्नियी मरण पामेला जीवो सौम्यभाववाळा होय छे तो ते . व्यंतर थाय छे.' / / 96 // चत्वारस्ते नृपामात्य-श्रेष्टयारक्षकसद्मसु // अवातरन् लसद्रूपा / बभूवुः पुण्ययोगतः // 97 // ____ अर्थ-पेला चार सेवको मरण पामीने राजा, अमात्य, श्रेष्ठी अने कोटवाळना पुत्रपणे जन्म्या. पुण्ययोगथी तेओ सुंदर रूप अने आकृतिवाळा थया. / / 97 // अर्थ-आजे कर्मयोगे ते चारेने आ सुंदर वृक्ष नीचे आवेला जोइने व्यंतरे // 98 // वधायावधिना मत्वा / तेषां च प्राच्यवैरिणां // सुवर्णपुरुषीभूय / प्रतियामं पपात सः॥ 99 // अर्थ-अवधिज्ञानवडे तेने पूर्वभवना वैरी जाणीने तेमना वधने माटे चार स्वर्णपुरुष थइने दरेक पहोरे ते व्यंतर पड्यो.।९९ -102 / / PPA Gunthasur MS
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________________ व राजारक्षकपुत्राभ्यां / प्रधानव्यवहारिजो // हतो खड्गेन लोभात्तो। नियेतेस्म विषानतः // 10 // | अर्थ-ते स्वर्णपुरुषना लोभथी राजा अने आरक्षकना पुत्र बीजा वे मित्रने शस्त्रवडे हण्या अने ते वे जणा विषमिश्रित अन्न | नखावाथी मरण पाम्या. // 10 // न व्यंतरोऽपि जहर्षेति / वैरनिर्यातनं छलात् // मयाकारीति संप्रोच्य / चारणश्रमणो गतो॥१॥ न अर्थ-व्यंतर पोताना वैरनो धार्या प्रमाणे बदलो मळवाथी हर्ष पाम्यो अने ‘में बराबर छळवडे बदलो लीधो' एम तेणे मान्यु.' | आ प्रमाणे कहीने ते मुनिओ त्यांथी आगळ चाल्या गया. // 1 // | एवं लोभांधला जीवाः / संतोषांजनवर्जिताः // सहते भवकांतारे / कष्टान्येतेऽनिशं भृशं // 2 // ___ अर्थ-ए प्रमाणे लोभथी अंध बनेला अने संतोषरूपी अंजनथी रहित जीवो भवरूपी महाअरण्यमां हमेशां अत्यंत कष्टोने न सहन करे छे. // 2 // न तथा च येन केनापि / समं वैरं कृतं नृप / भवांतरे महदुःख-दायकं जायतेंगिनां // 3 // ॥इति तृष्णायां राजमंत्रिश्रेष्टितलारक्षकुमाराणां कथा समाप्ता // अर्थ-तेथी हे राजन् ! करेल वेर कोइपण प्रकारे अन्य भवमां पण माणीओने अत्यंत पीडाकारी थाय छे.' / / 3 // तृष्णास्पृहा-लोभ उपर राजकुमार, मंत्रीपुत्र, श्रेष्ठीपुत्र अने कोटवाळना पुत्रनी कथा संपूर्ण. DODOODDOG DOODOODOO ODDDDI P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ ते विस्मितः प्राह / श्रीसुमित्रनरेश्वरः // प्रभो प्रभुसमादेशा-दज्ञातैकनरक्षयः॥१॥ सुमित्र अभत्तेषां दरंतोऽस्य / विपाकोऽहो भवांतरे // तस्मिाकं तां जीवान् | का गतिर्भवितादिश // 2 // // 104 // अर्थ-आ प्रमाणेनुं दृष्टांत गुरुमहाराजना मुखे सांभळीने आश्चर्य पामेलो सुमित्रराजा बोल्यो के-'हे प्रभु ! अज्ञानपणामां करेला एक मनुष्यना नाशथी पण अन्य भवमा तेओने दुःखे करीने अंत करी शकाय एवू फळ भोगवळू पडयुं तो अमारा जेवा जाणीबूझीने हिंसा करनार जीवोनी कइ गती थशे ?' // 1 // 2 // ततो गुरुरभाषिष्ट / संवृत्तात्मा यदा तपः // कुर्याद द्वादशभेदेन / तदा स्यात्कर्मणां क्षयः॥३॥ .. | ' अर्थ-गुरुमहाराजे कथु के-'संवत आत्मा जो बार प्रकारे तपतुं आचरण करे तो सर्व कर्मनो क्षय जरुर थाय, // 3 // यदक्तं-दीप्यमाने तपोवहो / बाह्ये चाभ्यंतरेऽपि च // यमी जरति कर्माणि / दुर्जराण्यपि तत्क्षणात् // Al अर्थ-कडं छे के-बळता एका बाह्य अने अभ्यंतर तपरुप अग्निमां दुर्जर-निकाचित एवां कर्मो पण तत्काल लय-नाश पामे छे.' श्रत्वेति नृपतिः कर्मविपाकाद्भयवान् गुरुं // संसारसिंधुसत्पोतं / ययाचे संयतिव्रतं // 5 // ___ अर्थ आ प्रमाणे सांभळीने कर्मना फळथी भयभीत थयेला ते राजाए संसाररुपी समुद्रमां नाव समान एबुं चारित्र ग्रहण करजवानी इच्छा दर्शाती // 5 // गुरुराह तवाद्यापि / राजन् पूर्वभवार्जितं // बहुभोगफलं दान-पुण्यस्यास्ति निकाचितं // 6 // OLODDESEDDDDDDDDDDDDDDDD // 1 4 // PP Ac Gunratresun MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम 105 // व अर्थ-त्यारे गुरुए कह्यु के-'हे राजन् ! तारे पूर्वभवमां उपार्जन करेला दानपुण्यना फळरूप नीकाचित भोगो भोगववाना हजु न बाकी छे. // 6 // | तेनावश्यं चिरं भोगा / देवानामपि दुर्लभाः // त्वया नरेंद्र भोक्तव्या। नाधुना व्रतयोग्यता // 7 // ____ अर्थ-देवोने पण दुर्लभ एवा भोगो तारे लांबा काळ सुधी भोगववाना छे, माटे सांपत काळे-हालमां चारित्र लेवानी तारी योग्यता नथी.' // 7 // |किं तेभोगसुखेः स्वामिन् / विषान्नानामिवोल्लसन् // दुर्विपाको भवेयेषां / पर्यंतपरितापिनां // 8 // ___अर्थ-राजाए का के-'हे स्वामिन् ! तेवा भोगो भोगववायी शुं के जे भोगो विपवाळा अन्ननी जेम खाधा पछी पर्यतपरि तापी एवा महा माठा विपाकने आपे. // 8 // a गुरुः पुनर्जगादेति / सत्यमुक्तं नृप त्वया // परं किं क्रियतेऽस्तीह / नामुक्तकमतश्छुटिः // 9 // यदुक्तं अर्थ-गुरुए कहा के-'हे नृप ! तमे सत्य कयु, परंतु केटलांक कर्मो एवां होय छे के जे भोगव्या सिवाय छुटको थतोज नथी. | कडुं छे के:-॥९॥ नाभुक्तं क्षीयते कर्म / कल्पकोटिशतैरपि // अवश्यमेव भोक्तव्यं / कृतं कर्म शुभाशुभं // 10 // ___ अर्थ-क्रोडोगमे वर्षों व्यतीत थइ जाय तो पण बांधेलु कर्म भोगव्या सिवाय क्षय पामतुं नथी. शुभ के अशुभ करेलुं कर्म अवश्य भोगवज पडे छे.' // 10 // . . . EDODDDDDDDDDDDDDDOOD / 105 // PP.AC.Gunratnasurt M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ // 106 // सबो पुवकयाणं / कम्माणं पावए फलविवागं // अवराहेसु गुणेसु य / निमित्तमित्तं परो होइ // 11 // BIR ___अर्थ-वळी सर्वे जीवो पूर्वे करेला कर्मोना फळरूप विपाकने पामे छे. लाभमां के हानिमां अन्य तो निमित्तमात्रज थाय छे. तथापि तव वर्षाणा-मेकलक्षे गते नृप.॥ गुरोः केवलिनः पावे / दीक्षावश्यं भविष्यति // 12 // ___अर्थ-हे राजन् ! आजथी एक लाख वर्ष पछी केवळी गुरुनी पासेथी तमने अवश्य दीक्षा प्राप्त थशे, // 12 // तावत श्रावकधमोऽयं / भवताराध्यतां सुखं / / कर्मणां निर्जरानेन / भविष्यति कियत्यपि // 13 // अर्थ-त्यां सुधी हुँ कहुं छुते श्रावकधर्म तमारे सुखपूर्वक आराधबो. एथी तमारा केटलाक कर्मोनी निर्जरा थशे. // 13 // ततः श्रावकधर्म स / श्रीसुमित्रो नरेश्वरः // भार्याप्रियंगुमंजर्या / समं जग्राह हर्षतः॥ 14 // अर्थ-आ प्रमाणे गुरुमहाराजना कहेवाथी सुमित्र राजाए प्रियंगुमंजरी राणी सहित श्रावकधर्म घणा हर्षपूर्वक अंगीकार कर्यो. द्वादशवतरूपो हि / सम्यक्त्वप्रमुखो वरः // श्राद्धधर्मस्तथा साधु-धमों लेभेऽथ पूर्जनः॥१५॥ __ अर्थ-ते वखते सम्यक्त्वयुक्त बार व्रतरूप श्रावकधर्म तेमज साधुधर्म पण नगरना अनेक जनोए स्वीकार्यो. // 15 // नमस्कृत्य गुरुं राजा / प्रविवेश पुरं गृहं // जगाम सपरीवारो। विजहे श्रीगुरुस्ततः // 16 // अर्थ-राजा गुरुमहाराजने नमीने पोताना नगरमां आव्यो एटले गुरुमहाराजे पण त्यांथी अन्यत्र विहार कर्यो. // 16 // कारयामास प्रासादान् / पृथिव्यां स सहस्रशः // उत्तुंगतोरणान् शुभ्रान् / पुण्यपुंजानिव खकान् // 17 // // 106 // P.PAC Gunratnasul M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 107 // अर्थ-पछी सुमित्रराजाए पृथ्वीपर हजारो जिनमंदिरो कराव्या के जे पोताना पुण्यपुंजनी जेवा उज्वळ तोरणोवाळा अने घणा उंचा हता. // 17 // | आहतीः स्थापयामास / प्रतिमास्तेषु लक्षशः // पूरिताः सुकृतैः स्वर्ण-निधानकलशोरिव // 18 // - अर्थ-ते मंदिरोमां लाखो जिनप्रतिमाओ तेणे स्थापन करी के जे सुकृतवडे भरेला सुवर्णना निधानरूप कळश जेवी हती. // चकार प्रतिवर्षं स / तीर्थयात्रादिकोत्सवान् // स्नात्रपूजां गरिष्टा -हच्चेत्यप्रकरेऽन्वहं // 19 // ___ अर्थ-प्रतिवर्ष ते राजा तीर्थयात्रादि महोत्सवो करतो हतो अने निरंतर अर्हत् चैत्यमां मोटी ऋद्धि साथे स्नात्र पूजा करतो हतो. चके साधर्मिकाः शुल्क-करमुक्त्या महीभुजा // तेन कोटीश्वराः सर्वे / मूलद्रव्यार्पणक्रयात् // 20 // __अर्थ-तेणे सर्वे साधर्मिकोने दाण विगेरेना करथी मुक्त कर्या तेथी मूळ द्रव्यथी मळेला करीयाणाओना क्रय-विक्रयथी घणा श्रावको कोटीश्वर थइ गया. // 20 // कुरुतेस्मोभयकाल-मावश्यकमिलापतिः // सद्भक्त्या सारशक्त्या च / त्रिसंध्यं जैनमर्चनं // 21 // अर्थ-राजा उभय काळ आवश्यक (प्रतिक्रमण) करे छे अने भक्ति तेमज शक्तिपूर्वक त्रणे काळ जिनार्चन करे छे. // 21 // प्रतिमासं लक्षभोज्यं / वर्षकोटिसुभोज्ययुक्॥ सुसाधर्मिकवात्सल्य-मकरोत्स नरेश्वरः // 22 // बा... अर्थ-दरमहीने लाखनुं अने दर वर्षे क्रोड साधर्मीओनुं वात्सल्य भोजन ते राजा करतो हवो. // 22 // ... // 107 // PP.AC.Gunratrnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् . . // 108 // ननDDDDDDDDDDDDDOODE तत्र साधर्मिकेभ्योऽसौ / ददौ सदनकंबलान् // दिव्यवस्त्राणि सौवर्ण-सद्रनाभरणानि च // 23 // ____अर्थ-अने ते वखते दरेक साधर्मीओने रनकंबळ, दिव्य वस्त्रो तथा सुवर्णयुक्त रनोना आभरणो आपे छे. // 23 // / समं भूपसहस्रेण / कृत्वा पर्वसु पौषधं // सोपवासं ततोऽन्येयुः / पारणं चाकरोन्मुदा // 24 // '' अर्थ-पर्वदिवसे हजारो राजाओनी साथे उपवासयुक्त पोसह करे छे अने बीजे दिवसे सर्वने हर्षपूर्वक पारणा करावे छे. 24 // न्यायवल्लीवितानेंदु-रन्यायोदधिकुंभजः // मारेनिवारणं राजा / यावदाज्ञामथाकरोत् // 25 // _____ अर्थ-न्यायरूप वल्लीसमूहमां चंद्रसमान अने अन्यायरूप समुद्र माटे अगस्ति ऋषि समान ते राजाए पोताना राज्यमां मारीनुं तेमज मार एवा शब्दनु निवारण करी दीधुं. // 25 // इति पुण्यप्रभावेण | वर्धतेस्म दिने दिने // तस्य प्राज्यं लसद्राज्यं / द्वितीयाचंद्रवद्भुवि // 26 // ___ अर्थ-आ प्रमाणे पुण्यमभावथी ते राजा दिनपरदिन धर्मकार्यमा वृद्धि पामवा लाग्यो अने तेनु राज्य पण द्वितीयाना चंद्रनी जेम पृथ्वीपर वृद्धि पामतुं गयु अर्थात् घणुं वध्यु.॥२६॥... | प्रियंगुमंजरीमुख्यां-तःपुर्यस्तस्य जज्ञिरे // सहस्राणि नव स्फार-रूपलावण्यमंजुलाः // 27 // अर्थ-तथा. तेने प्रियंगुमंजरी विगेरे घणा रुपलावण्यवाळी नव हजार अंतःपुरीओ (राणीओ) थइ, // 27 // सहस्त्रमेकं भूपानां। मंत्रिणां शतपंचकं // वृंदवद्राजहंसानां / भेजे तत्पदपंकजं // 28 // DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD PPAC Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रम् EDEODADDDDDDED IMMEDIODE / अर्थ-एक हजार राजाओ सेवकभूत थया, पांचशे मंत्रीओ थया.-आ वधा राजहंसना समूहनी जेम तेना चरणकमळने.सेवता हता. प्रत्येक विशतिर्लक्षाहस्तिनो वाजिनो रथाः॥ चत्वारिंशत्पदातीनां / ग्रामाणानपि कोटयः॥ 29 // अर्थ-ते दरेक राजा पासे हाथी, घोडा अने रथ चीश वीश लाख थया, पदाति अने ग्रामो चालीश क्रोड थया. // 29 // त्रिंशच्च सहस्राणि / पुराणां तस्य भूपतेः // इत्याद्यनेकधा भृति-रसंख्याभृन्महीतले // 30 // ____ अर्थ-वत्रीश हजार नगरो थयाः आ प्रमाणे ते राजानी अनेक प्रकारनी संपदा आ भूमितल उपर यइ. // 30 // अथान्यदा निशाशेष / स्फुरदूपं सुरेश्वरं // प्रियंगुमंजरी राज्ञी। खनमध्ये निरैक्षत // 31 // ___ अर्थ-अन्यदा पाछली रात्रे प्रियंगुमंजरी राणीए स्वममा स्फुरायमान रुपवाळा इंद्रने दीठा. // 31 // भर्तुनिवेदयामास / सा प्रातर्मुदिताशया // तत्वप्नं सोऽप्यभाषिष्ट / नृपः सत्पुत्रसंभवं // 32 // ____ अर्थ-मात:काळे हर्षित आशयवाळी तेणीए ते हकीकत भरिने निवेदन करी, राजाए कह्यु के-'तमने एक सुपुत्रनी | प्राप्ति थशे.' / / 32 / / तदादि गर्भ बभ्रे सा| समं भर्तुर्मनोरथैः // रसमितैर्हितैर्यत्ना-त्तोषपूर्णा पुपोष च // 33 // | अर्थ-ते दिवसथी तेणीए गर्भ धारण कर्यो. ते गर्भ भरिना मनोरथ साथें वृद्धि पामवा लाग्यो. राणी परिमित ने हितकारी की रसोबडे यत्नपूर्वक गर्भनु पोषण करवा लागी.11.३३ / / . MMODEREनन न न न न न tamil ना 109 // ना PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ र असूत समये पुत्रं / प्राचीव रविमंडलं // सच्चक्रानंदनं स्वस्य / पितुः शत्रुतमोऽपहं // 34 // | चरित्रम् ___अर्थ-योग्य समये पूर्व दिशा जेम मूर्यने प्रसवे तेम तेने पुत्रनो प्रसव थयो. ते पोताना परिवारना समृहमां आनंददायक थयो |ल पुत्रजन्म स विज्ञाय / परमानंदमेदुरः // विस्तरेण नराधीशो। वर्धापनमचीकरत // 35 // अर्थ-राजा पुत्र जन्मनी हकीकत जाणीने परमानंद पाम्यो अने विस्तारथी जन्मोत्सव करी माणसोने वधामणीओ आपी. न षष्टीजागरिकामुख्ये / व्यतिक्रांते महोत्सवे // सन्मान्य ज्ञातिवर्ग स / द्वादशे दिवसे नृपः॥ 36 // अर्थ-पष्टीजागरिका विगेरे महोत्सवो व्यनिक्रांत थये सते बारमे दिवसे राजाए पोताना ज्ञातिवर्गनुं अन्नपानादिवडे सन्मान करीने, अस्मिन् गर्भावतीणेऽस्य | माता श्रीइंद्रमैक्षत // स्वप्नानुसारतश्चक्रे / इंद्रदत्त इति प्रथां // 37 // | अर्थ-आ पुत्र गर्भमां आव्यो त्यारे तेनी माताए इंद्रने स्वममां जोया हता तेथी स्वमानुसारे तेनुं इंद्रदत्त नाम पाडयु.॥३७॥ लाल्यमानस्तु धात्रीभिः। सार्धं पितृमनोरथैः // बभूव वर्धमानोऽसा-वष्टवर्षवयाः क्रमात // 38 // . ___अर्थ-मातापिताना मनोरथो साथे धात्रीओथी पालन पोषण करातो ते पुत्र दृद्धि पामवा लाग्यो. अनुक्रमे ते आठ वर्षनो थयो. बाल्येऽन्यकुमरैः साक-मिंद्रदत्तः कुमारकः : चिक्रीड बहकेलीभिः / स्वोचिताभिरहर्निशं // 39 // ___अर्थ-बाल्यावस्थामा ते राजपुत्र अन्य कुमारोनी साथे पोताने उचित एवी अनेक प्रकारनी क्रीडाओ अहर्निश करवा लाग्यो. DDDDDDDDDDDDDDDDDDEDDED P.P Ad Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 111 // ततः कलागुरोः पाश्वे-शिक्षत् सर्वाः कलाः कलाः // क्रमेण यौवनं प्राप / विश्वस्त्रैणवशौषधं // 40 // - अर्थ-त्यारपछी कळाचार्यनी पासेथी सर्व शुभ कळाओ शीख्यो. अनुक्रमे ते सर्व स्त्रीवर्गने वश करवाना औषधसमान यौवनावस्था पाम्यो. // 4 // पंचशतीस्ततः कन्या-श्चतुःषष्टिकलान्विताः॥ पर्यणाय्यत पित्रासौ / महानंदान्महोत्सवैः // 41 // ____ अर्थ-एटले मातापिताए मोटा आनंद-उत्सव सहित चोसठ कळायुक्त पांचसो राजकन्याओ परणावी. // 41 // जैनप्रभावनां कर्तु-रित्थं पालयतः क्षितिं // श्रीसुमित्रनरेंद्रस्य / वर्षलक्षं सुखं ययौ // 42 // अर्थ-जैन शासननी प्रभावना करता श्रीसुमित्र राजाने श्रावकधर्मनुं प्रतिपालन करता एक लाख वर्ष सुखे व्यतीत थइ गया. अथान्यदा सभासीनं / द्वारपालनिवेदितः // अवनीपं वनीपालो। हर्षोत्कर्ष व्यजिज्ञपत् // 43 // अर्थ-अन्यदा राजा सभामां बेठेल छे तेवामां द्वारपाळे आवीने विज्ञप्ति करी के-'हे महाराज ! बहार वनपालक उभो छे, ते आपने हर्षना उत्कर्ष साये निवेदन करे छे के-॥ 43 / / ... . ... .. व तवोऽद्यानेऽद्य संसेव्यः / सुरासुरमुनीश्वरैः / / यशोभद्राभिधो देव / केवलो समवासरत् // 44 // ___ अर्थ- आपना उद्यानमा सुरासुर अने मुनीश्वरोथी सेवाता श्रीयशोभद्र नामना केवळी भगवंत समवसर्या छे.' // 44 // उत्कंठितस्तदाकर्ण्य / शिखीवांबुदगर्जितं // दानं दारिद्यविध्वंसि / दत्वा तस्मै नरेश्वरः॥४५॥ 111 / / Jun Gun Aaradhak Trust PP. Ac Gunratnasur M.S.
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________________ सुमित्र // 112 // EDIODDEDDDDDDDDDDDDE अर्थ-आ हकीकत सांभळीने वरसादनो गरिव सांभळवाथी मयूर हर्पित थाय तेम उत्कंठित थइने राजाए ते वनपाळकने चरित्रम् दारिद्रनो विध्वंस करनार दान आप्यु.॥४५॥ ततस्तत्र क्षमाधीशः। क्षमाधीशपदांबुजं // नंतुं गजेंद्रमारूढः। प्रतस्थे सपरिच्छदः // 46 // ... अर्थ-पछी क्षमा एटले पृथ्वीना अधीश एवा ते राजाए क्षमा एटले शांतिना अधीश एवा केवळी भगवंतने नमस्कार करवा माटे हस्तीपर आरुढ थइने परिवार साथे प्रयाण कयु.॥ 46 // . . निश प्रदक्षिणीकृत्य / भगवंतं ननाम सः // धर्माशिष समासाद्य / यथास्थानमुपाविशत // 47 // - अर्थ गुरु समीप आवीने हाथीपरथी उतरी त्रण प्रदक्षिणा दइने तेणे केवळी भगवानने नमस्कार कर्योकेवलीए धर्माशीष / आपी एटले राजा विगेरे योग्य स्थाने बेठा. // 47 // | अथ दंतप्रभोन्मिश्र-स्वरदच्छदकांतिभिः // मुक्ताविट्ठमयोश्शूर्णं / संगमश्रियमुबहत् // 48 // . अर्थ-पछी दांतनी कांतिथी उन्मिश्र ओष्ठनी रक्त कांतिवडे मुक्ताफळने प्रवालना चूर्णनो संगम करती होय तेवी, // 48 // गिरा गोक्षीरपीयषा-नुकारिण्या मनोज्ञया // त्रैलोक्याहादिमाधुयों-पेतां स देशना व्यधात // 49 // अर्थ-गायना दुधने तेमज अमृतने अनुसरनारी मनोज्ञ वाणीवडे त्रण लोकना पाणीओने आहाद उत्पन्न करे तेवी मधुर | देशना देवी शरु करी // 49 // - अहो लोकाः श्रयित्वांत-मुखीभावं मनोदृशा // सुवीक्ष्यासारमुज्झित्वा / कुरुध्वं सारसंग्रहं // 50 // An 112 // DDDDDEDODOBEDDDDDDIEODE PP.Ad Guntatnasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्र 113 lala ooooooo OLD IDEAADDDDIDIDIDIE A . अर्थ-" अहो भव्य लोको ! अंतर्मुखी भावनो आश्रय करीने तेमज मनोदृष्टिवडे सारी रीते जोइने असारने तजी दइ सारनो संग्रह करो? // 50 // .... अस्मिन्नसारे संसारे / सारं सर्वशरीरिणां | चिंतारत्नमिवानये / मानुष्यमतिदर्लभं // 51 // .. . अर्थ-आ असार संसारमा सर्व संसारी जीवोने चिंतामणिरत्न जेंवु अमूल्य अनेः सारभूत मनुष्यपणुं प्राप्त थ, अति al दुर्लभ छे. // 51 // ...... तत्रापि सुकुलोत्पत्ति-दीर्घमायुररोगिता. // पुण्येच्छा सुगुरोयोगः / सामग्रीयं सुदुर्लभा // 52 // ..." अर्थ-तेमां. पण सारा कुलमा उत्पत्ति, दीर्घ आयु, निरोगीपणुं, धर्म करवानी इच्छा अने सद्गुरुनो योग-आ बधी सामग्रीनी भप्राप्ति विशेष दुर्लभ छे. 11:52 / / .. . ...... ....... दुर्लभ प्राप्य सामग्री-मिमां श्रीजिनभाषितः॥धर्म एव सदाराध्यो / मनोऽभीष्टफलप्रदः।। 53 / / .. अर्थ-एवी दुर्लभ सामग्री पामीने मनोवांछित फळने आपे तेवो. जिनेश्वरभाषित धर्मज सदा सेववा योग्य छे. // 53 // प्राणिनो भवकांतारे / कृतकर्मवशेरिताः॥ वातप्रम्य इव व्यर्थ / ताम्यंति भ्रांतिसंभृताः॥ 54 // : -: अर्थ-आ.भवरूपी भयंकर अठवीमा पूर्व करेलां कर्मथी प्रेरायेला पाणीओ हरणोनी जेम भ्रांतिवड़े चोतरफ भ्रमण करता सता नव्यर्थ दुःखी थाय छे.. // 54 // सुखं सुखमिति भ्रांता। दुःखदग्धाः पदे पदे / जीवा भ्रमंति संसारे / वातोधूतपलाशवत् // 55 // DDDDDDDDDDDELEDDDDDDD // 113 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradnak Trust
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________________ समित्र // 114 अर्थ-आ संसारमा सुखनी झंखना करता सता पगले पगले दु खथी दग्ध थता जीवो पवने उडाडेला खाखराना पाननी जेम चोतरफ चारे गतीमां भमे छे. // 55 // जम चरित्रम् . कल्पद्रमिव कामार्थी। भवोद्विग्नो भवी हहा // न सेवते जिनादेशं / परत्रेह च सौख्यदं॥५६॥ - अर्थ-हा इति खेदे ! भव (संसार) थी उद्विग्न थयेला केटलाक भव्य जीवो पण कोई मूर्ख इच्छितनो अर्थी छतां कल्पवृक्षने न सेवे तेम आ लोकमां अने परलोकमां सुखने आपनार धर्मने-जिनेश्वरना आदेशने सेवता नथी. // 56 / / अस्मिन्नवसरे राजा / सुमित्रःप्रांजलीर्जगो॥ स्वामिन् किमु मयाकारि / देव्या च प्राच्यजन्मनि 57 ___अर्थ-ए अवसरे सुमित्र राजाए हाथ जोडीने पूछ्यु के-'हे स्वामिन् ! में अने पियंगुमंजरीए पूर्वभवमा शुं पुन्य कयु हतुं के येन साम्राज्यमीहक्ष-मावयोरभवत्पुनः॥ वैरिण्या च कृता जज्ञे / दुर्दशा दुःखदायिका // 58 // ___अर्थ-जेथी आवा साम्राज्यनी अमने प्राप्ति थइ, अने शुं पाप कर्यु हतुं के जेथी वैरिणी वेश्याए अमारी महादुःखदायक | दुर्दशा करी?' // 58 // गुरुः प्राह पुरा राजन् / ग्रामे सुग्रामनामनि // कुटुंबी क्षेमसारोऽभूत् / क्षेमश्रीस्तस्य गेहिनी // 59 / / . अर्थ-गुरुमहाराजे का के-'हे राजन् ! तारो पूर्वभव सांभळ? पूर्वे सुग्राम नामना गाममा क्षेमसार नामनो एक कुटुंबी वसतो तो. तेने क्षेमश्री नामे भार्या हती. // 59 // चत्वारि तस्य मित्राणि / सोमसोहडलक्ष्मणाः // भीमश्चेत्यभवन प्रीति–पयःपात्राणि नित्यशः // 6 // alm CHOIDDDDDDDDDDDDDDDDDD P.PAC Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ aeaaGODDEBEDEEPPED DEEED ___ अर्थ-तथा तेना सोम, सोहड, लक्ष्मण अने भीम नामना हमेशां प्रेमना भाजनरूप चार मित्रो हता. // 60 // सर्वदा ते च पंचापि / महारंभपरिग्रहाः॥पाशुपाल्यपरा मुग्ध-चित्ताः कर्षणवृत्तयः॥ 61 // . अर्थ-ते पांचे मित्रो मोटा आरंभ, समारंभ अने परिग्रहवाळा छतां भद्रिकतावाळा अने खेती करीने गुजरान चलावनारा हता. क्षेमश्रियान्यदादिष्टा / चेटी कार्यातरे क्वचित // नाकरोत्तेन रुष्टा सा। भर्तुरग्रे न्यवेदयत // 6 // : - अर्थ-एकदा क्षेमश्रीए कहेलु कोइ कार्य तेनी चाकरडीए कयु नहीं तेथी कोपायमान थयेली तेणीए ते वात पोताना धणी (क्षेमसार )ने कही. // 62 // | ततः सा क्षेमसारेण | तमिस्राकुलभूगृहे // निक्षिप्ता मूर्छिता त्रिंश-न्मुहूर्तास्तत्र संस्थिता // 63 // - अर्थ-एटले क्षेमसारे ते नोकरडीने अंधकारमय भोयरामां पूरी, ज्यां ते त्रीश मुहूर्त सुधी मूञ्छित अवस्थामां पड़ी रही. 63 पुना रोषं परित्यज्य / कृपाईमनसः स तां // बहिनिष्कासयामास / परं दोदूयतेस्म सा // 64 // . अर्थ-पाछळथी क्रोधने तजी दइने दयाथी भीजायेला मनबाळा तेणे तेने बहार काढी, परंतु ते (चाकरडी) मनमा अत्यंत | संताप धारण करवा लागी. // 64 // | अन्यदा क्षेमसारोऽसो / सौवमंदिरमाश्रितः॥ क्षेमश्रिया समायुक्तो / भवान्येक महेश्वरः // 65 // .. अर्थ-एकदा भवानी (पार्वती) साथे महेश्वर (शंकर.) नी जेम सेमश्री साथे क्षेमसार पोताना घरमां बेठो हतो, / / 65 / / .. 115 // I P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 116 // DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDO अशुश्रूषितवपुष / वनस्थमिव दंतिनं // प्रेक्ष्यमाणनसाजालं / सवल्लीकमिव द्रुमं / / 66 // | अर्थ-तेवामां बीलकुलं सुश्रूषा कर्या विनाना देहवाळा, वनमा रहेता हाथीनी जेवा, वेलडीवाला वृक्षनी जेम जेना शरीरनी नसो देखाय छे तेवा, // 66 // तपोभिर्दीष्यमानांग-मादित्यमिव तेजसा.॥सुव्यक्तपार्श्वकं क्षेत्र-मिव कृष्टभुवस्तलं // 67 // . अर्थ-प्रतापवडे सूर्यनी जेम तपना प्रभावथी कांतियुक्त अंगोवाला, खेडेला खेतरनी भूमिनी जेम जेना बने पडखां प्रत्यक्ष खाडावाला देखाय छे तेवा // 67 // कंचिद्यतीश्वरं तत्र / मासक्षपणपारणे // समागतं मूर्तिमंत-मिव पुण्यं व्यलोकत // 68 // .. a अर्थ-कोइ मुनिराजने मासखमणना पारणाने माटे आवेला जाणे साक्षात् पुण्यनी मूर्ति समान होय तेवा तेमणे जोया.६८॥ अभ्युत्थाय विशुद्धात्मा। शुद्धानात्स्त्रीसमन्वितः॥ तं मुनि कारयामास / मासक्षपणपारणं // 69 // ___ अर्थ-विशुद्ध आत्मपरिणतिवाळा तेणे उठीने स्त्री सहित विशुद्ध अन्नपानना दानथी ते महामुनिने मासखमणर्नु पारकराव्यु. जज्ञिरेऽवसरे तस्मिन् / पंचदिव्यानि तत्र च // पंचमी कथयंतीव | पात्रदानात्तयोर्गतिं // 7 // SODEODOORDEEDEDGEOGODEE मोक्ष गति प्राप्त थाय छे. / / 70 // ... सोमाद्याः सुहृदस्तत्र / समागत्य निरीक्ष्य च // तावदमोदयंस्ताभ्यां / मुनिं कारितपारणं // 71 // // 16 // PP Ac Gunratnaguri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र a चरित्रम् 117 // IDDDDDDDDED | अर्थ-सोम विगेरे तेना मित्रो ते वखते त्यां आध्या. तआ ते बनेए मासखमणवाळा मुनिने करावेला पारणानी अनुमोदना न करवा लाग्या. // 71 // धन्यंमन्यास्ततस्ते च / क्रमेणायुः प्रपूर्य च // षडप्येते शुभध्यानाः / कालधर्म समासदन // 72 // ___अर्थ-पोताना आत्माने धन्य माननार ते छए मनुष्यों आयु पूर्ण करीने शुभध्यानथी काळधर्म पाम्या. // 72 // त्रिदशीभूय सोधर्म-देवलोके सुखास्पदे // भुक्त्वा सोख्यानि ते स / प्रपाल्यायुश्च्युतास्ततः // 73 // __ अर्थ-अने सौधर्भ देवलोकमां देव थया. ए अत्यंत मुखवाळा स्थानमा तेओ अनेक प्रकारना सुखो भोगवीने आयु पूर्ण न थये चव्या. // 73 // स जीवः क्षेमसारस्य / भवान् जज्ञे नरेश्वर // प्रियंगुमंजरी राज्ञी। तस्याः क्षेमश्रियाः पुनः॥ 74 // * अर्थ-तेमां क्षेमसारनो जीव हे राजन् ! तमे सुमित्र थया, क्षेमश्रीनो जीव मिथंगुमंजरी नामनी तमारी राणी थइ. / / 74 / / सोममुख्याः क्रमेणैते / चत्वारोऽपि सुहृत्तमाः॥ सूराद्याः संबभूवुस्ते / प्राच्यसंबंधयोगतः // 75 // ___ अर्थ सोम प्रमुख चार मित्रो आ भवमां पण तमारा मूर विगेरे चार मित्रो पूर्वभवना संबंधने लइने थया. // 75 // - दानपुण्यानुभावेन | संपदो' जज्ञिरेऽखिलाः || युष्माकमीशा राजन् / किं न स्याद्धर्मसेवनात् // 76 // . अर्थ-दान-पुण्यना प्रभावे-तमने आ सर्व संपत्तिनी प्राप्ति थइ है राजन् ! धर्मना सेवनथी शुं शुं प्राप्त थतुं नथी ? // 76 // |||-117 // PP Ac Gunratrasur MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ त्रिम उत्कृष्टं मंगलं धर्मो / धर्मः शर्मकरः सदा // समृद्धिदः सतां धर्मों। धर्मः कर्ममलापहः // 77 // न अर्थ-धर्म उत्कृष्ट मंगळ छे, धर्म सदा सुखने करनार छे, धर्म सज्जनोने समृद्धिनो आपनार छे अने धर्म कर्ममळने दूर करनार छे. // 77 // | अतः श्रीधर्मकल्पनुः / सद्भिः सेव्यो निरंतरं // दानशीलतपोभाव-शाखः सौख्यफलप्रदः॥ 78 // ___अर्थ-माटे उत्तम जनोए धर्मरुप कल्पवृक्ष निरंतर सेवन करवा योग्य छे. ते धर्मरुप कल्पवृक्ष दान, शील, तप अने भावरुप | चार शाखावाळो छे अने सर्व प्रकारना सुखरुप फळने आपनारो छे. / / 78 / / सुरासुरनरस्फार-समृद्धिफलदायिनो // सेवनीया प्रयत्नेन | धर्माख्या कल्पवल्लरी // 79 // . अर्थ-वळी उत्तम जनोए सुर, असुर अने मनुष्यनी स्फार समृद्धिरुप फळने आपनारी धर्म नामनी कल्पवेलडी प्रयत्नवडे सेवा योग्य छे. // 79 // दासीजीवः परिभ्रम्य / दुष्टधीः स भवान् बहन् / बभूव वैरिणीनाम्ना / गणिका विजये पुरे // 8 // ___अर्थ-हे राजन् ! तमारी जे दासी हती के जेने तमे कष्ट आप्यु हतुं ते तमारा पर द्वेष वहन करती दुष्ट भावे मरण पामीने मा घणा भव संसारमा भमी, प्रांते श्री विजयनगरमां वैरिणी नामे वेश्या थइ. // 8 // . . . - तया च भवतोरीह-वैरिण्या पूर्वजन्मनः // दीयतेस्म महदुःखं / क्रियते किं न वैरिभिः // 81 // ___अर्थ-तेणे पूर्वजन्मना वैरभावथी तमने महादुःख आप्यु, केमके वैरी शं शं करतो नथी ?' / / 81 // | // 118 // P.PAc Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhal Trust
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________________ चरित्रम् // 2 // सुमित्र / ईदृक्पूर्वभवामृतं / स्वरूपं सकलं निजं // जज्ञे जातिस्मृतिस्तेषां / श्रुत्वा केवलिनो मुखात् // 82 // H ' अर्थ-आ प्रमाणे केवलीना मुखेथी पूर्वभव संबंधी पोतानो अनुभवेलो सर्व वृत्तांत सांभळबाथी तेने जातिस्मरण ज्ञान थयु. 82 / // 119 // विज्ञाय स्वचरित्रं तौ। यथा केवलिभाषितं // जातो संसारभीतांतः-करणो चरणोद्यतो // 83 // ___ अर्थ-ते ज्ञानवडे जेवू केवलीए कह्यु हतुं तेवू पोतानुं सर्व वृत्तांत यथास्थित जाणीने संसारथी भय पामेला अंतःकरणवाळा बने राजा-राणी चारित्र लेवाने उद्युक्त थया // 83 // तावूचतुःप्रभो कृत्वा / सौवराज्यस्य चिंतनं // आवां दीक्षां गृहीष्यावः। सत्वरं भवदंतिके // 84 // - अर्थ-तेमणे गुरुमहाराजने कह्यु के-'हे प्रभु! अमे राज्यसंबंधी घटित व्यवस्था करीने सत्वर आपनी पासे आवी दीक्षा ग्रहण कर .' / / 84 // न कार्यः प्रतिबंधो भो। इत्युक्त गुरुणाथ तो॥ नवागातां गृहं सोवं / राज्यचिंता च चक्रतुः // 85 // अर्थ-गुरुए का के-हे महानुभाव ! शुभ कार्यमा प्रतिबंध (विलंब) न करवो.' गुरुमहाराजने नमीने तेओ पोताने स्थाने आव्या अने राज्यनी योग्य व्यवस्था करी. // 85 / / ततश्चतुर्विध संघं / चतुर्गतिनिषेधकं // प्रपूज्यापूर्य दीनादि-जनान् धनसमुच्चयैः // 86 // ...अर्थ-पछी चार गतिने दूर करनार चतुर्विध संघनी यथायोग्य सेवा करीने, दीनजनोना वांछितने धनना समुच्चयवढे पूर्ण ।.करीने / / 86. // . . . // 119 / / PP A Gunnatasur MS
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________________ सुमित्र चरित्रम् // 120 // राज्ये निवेश्य तनय-मिंद्रदत्ताभिधं बलात् // केवलिनोंतिके तस्य / व्रतं जगृहतुश्च तौ॥ 87 // अर्थ-पोताना पुत्र इंद्रदत्तने आग्रहपूर्वक राज्ये स्थापन करीने बत ग्रहण करवा माटे केवली भगवंत पासे मोटा महोत्सवपूर्वक | आव्या अने. चारित्र ग्रहण कयु.॥ 87 // सुरसीधरसुत्राम-सागरैरपि संयमः॥ जगृहेऽन्यैरपि घनैः / सम्यक्त्ववतकादिकं // 88 // ___ अर्थ-सूर, सीधर सूत्राम अने सागरे पण चारित्र ग्रहण कर्यु. बीजा पण घणा मनुष्योए सम्यक्त्व अने व्रतादिक ग्रहण कर्या.८८ कतिचिद्वासरांस्तत्र / स्थित्वान्यत्र महीतले // विजहार गुरुः सर्व-साधुभिस्तु समन्वितः॥ 8 // अर्थ-पछी केटलाक दिवस त्यां रहीने केवली भगवंते बधा साधुओनी साथे त्यांथी विहार कॉ. / / 89 // तप्त्वा सुरादयस्तोत्रं / तपो गत्वा सुरालयं // महाविदेहे सत्क्षेत्रे / सिद्धिमापुरकर्मकाः // 9 // ____ अर्थ-सूरादिक चार मित्रो तीव्र तप तपीने स्वर्गे गया. तेओ महाविदेह क्षेत्रमा मनुष्य थइने कर्ममात्रनो क्षय करी सिद्धिपदने पामशे. // 9 // शिक्षयंती द्विधा शिक्षा | तो द्वावपि विजतुः॥ सार्धं श्रीगुरुणा नित्यं / तप्यमानो तपांसि च // 91 // अर्थ- हवे राजा-राणी बने श्री गुरुमहाराजनी पासेथी बने प्रकारनी शिक्षाने ग्रहण कस्ता सता तेमनी साथेज विहार करवा लाग्या अने अनेक प्रकारना तपो तपवा लाग्या. // 91 // . // 120 // Jun Gun Aaradhak Trust PP Ac Gunratasun MS
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________________ सुमित्र चरित्रम् 121 // प्रेरयामासतुर्गत्वा / गत्वा धर्म सुतं स्वकं // व्यसनासेवनान्नित्यं / वारयामासतुः पुनः / / 92 // अर्थ-वारंवार पोताना राज्यमा जइने पोताना पुत्रने धर्ममा प्रेरणा करवा लाग्या अने व्यसनोना सेवनथी दूर राखवा लाग्या. - कृतार्थ मन्यमानः स्वं / गुरुशिक्षाभिरन्वहं // इंद्रदत्तो नरेंद्रोऽसो / धर्मे दृढतरोऽभवत् // 93 // ____ अर्थ-आ प्रमाणे पोताना गुरुतरीके मातापिताए आपेली शिक्षावडे पाताना आत्माने धन्य मानतो इंद्रदत्त राजा धर्ममा अत्यंत | दृढ थयो. / / 93 // श्रीसुमित्रोऽथ राजर्षिः / साध्वी प्रियंगुमंजरी // खड्गधारोपमं धीरौ / व्रतं पालयतःस्म तौ॥९४॥ ___अर्थ-सुमित्र राजर्षि अने मियंगुमंजरी साध्वी बने धैर्यताथी खड्गनी धारासमान चारित्रने पाळता-हता. // 94 // अथान्यदा व्रते स्थैर्य / मत्वा श्लाघां तयोर्भृशं // पुनः पुनः सुरवात-प्रत्यक्ष वासवो व्यधात् // 95 // अर्थ-अन्यदा तेमनु चारित्रमा स्थिरपणुं जोइने देवोनी समक्ष इंद्र वारंवार तेमनी अत्यंत प्रशंसा करवा लाग्या // 15 // तत्रैकोऽसहमानस्तां / साहंकारः समाययौ / क्षोभितौ बहधा तेन / मेरुवञ्चलितौ न तो॥ 96 // अर्थ-तेने नहीं सहन करतो कोइ मिथ्यात्वी देव त्यांथी अहंकारयुक्त थइने मनुष्यलोकमां आव्यो, तेणे अनेक प्रकारे चलाबवानों प्रयत्न कर्यों पण तेओं चल्या नहीं. // 96 // . . . .... .. ... ततोऽसौ प्रकटीभूय / चलत्कुंडलयामलः ॥क्षामयित्वा-प्रशंसां च / निगयेंद्रकृतां. ययो.॥ 97 // . // 121 // Ja PP Ac Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र // 122 // अर्थ-एटले चलायमान कुंडळवाळो ते देव प्रगट थइ, खमावी, इंद्रे करेली प्रशंसानी हकीकत कहीने पोताने स्थाने गयो.।९७/ Jo चरित्रम् ततोऽस्यैव गुरोः पाश्र्थे / विनयादिगुणान्वितौ // ज्ञातागमावभूतां तौ / गीतार्थेकशिरोमणी // 98 // ___ अर्थ-त्यारपछी केवली गुरुनी पासेज आगमोनो अभ्यास करीने विनयादि गुणोवाला ते बने गीतार्थमां शिरोमणि थया.।९८|| सौम्यौ सोम इवात्यंतं / स्वर्णाद्रिरिव निश्चलौ // सर्वसहौ सुभूमीव / सदाचारौ दयापरौ॥ 99 // ___अर्थ-तेओ चंद्रनी जेवा अत्यंत सौम्य, मेरुपर्वत जेवा निश्चल, पृथ्वी जेवा सर्वसह, सदाचारमां ने दयामां तत्पर // 99 // विहायोवन्निरालंबौ / कूर्मवद्गुप्तकेंद्रियौ // वैराग्यरसनिर्मग्नौ / भग्नाभ्यंतरशात्रवौ // 20 // ____ अर्थ-आकाशनी जेम आलंबन विनाना, काचबानी जेम इंद्रियोने गोपवनारा, वैराग्यरसमां निमग्न अने अभ्यंतर शत्रुओनो नाश करनारा थया. // 10 // एकदा शुभभावेन / घातिकर्मचतुष्टये // गते क्षयं क्षणादेव / वृतौ च केवलश्रिया // 1 // अर्थ-एकदा शुभभाववडे घातिकर्मोनो क्षणमात्रमा क्षय थवाथी ते बंने केवलज्ञान पाम्या. // 1 // . | तत्कालमिलितानेक-सुरश्रेणिकृतोत्सवौ // निर्मितेशासनामर्या / कांचनाब्जे कृतासनो // 2 // चिरं प्रबोध्य भव्यौघान् / सुधामधुरया गिरा // भवोपग्राहिकर्माता-क्रमानिर्वाणमापतुः // 3 // . / अर्थ-तत्काळ अनेक देवो त्या एकत्र थया अने तेमणे तेमना ज्ञाननो महोत्सव कर्यो. ते देवोए रचेला कनककमल उपर // 122 // DOHOROOOOOOOOGADHeam *P.P.Accountainasuri M.S. un Gun Aarak Trust
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________________ सुमित्र | बेसीने अमृत जेवी मधुर वाणीवडे तेमणे अनेक भव्यजीवोने बोध को अने प्रांते भवोपग्राही चार अघाति कर्मोनो क्षय करीने न ते बने निर्वाणपदने पाम्या. // 2 // 3 // // 123 // श्रीसुमित्रप्रियंग्वादि-मंजर्योश्चरितं वरं। श्रुत्वेति दानधर्मेऽस्मिन् / यत्नः कार्यों मनीषिभिः // 4 // / अर्थ-आ सुमित्र राजा अने प्रियंगुमंजरी विगेरेनु चरित्र सांभळीने बुद्धिमान मनुष्योए दानधर्मने विषे आदर करवो. / 4 / यथा तयोर्द्वयोरेक-वारं दानप्रभावतः // स्थाने स्थानेऽभवजानु-दनो व्यसनसागरः॥५॥ तथाधारो भवेदान–मन्येषामपि संकटे // दानेऽभ्यासः सदैवातः / कर्तव्यो भव्यजंतुभिः // 6 // ____ अर्थ-तेओने एकवारनाज मुनिदानना प्रभावथी स्थाने स्थाने संकटनो समुद्र ते खाबोचीया जेवो थइ गयो, तेम अन्य प्राणिa ओने पण संकटमां आधारभूत एवा आ दानधर्मनो भव्यजनोए सदा अभ्यास करवो इष्ट छे. // 5 // 6 // प्रियंगुमंजरी राज्ञी। यथा शीलमपालयत // संकटेऽपि तथान्याभिः। पालनीयं तदुज्ज्वलं // 7 // . ____ अर्थ-प्रियंगुमंजरीए. जेम कष्टमां पण शील पाळ्यु तेम अन्य स्त्रीओए कष्टमां पण उज्वळ एवं शील पाळg. // 7 // a यथा दास्युपरि क्रोधः / कृतस्ताभ्यां भवांतरे // दुःखहेतुस्तथा नैव / कर्तव्यस्त्वपरैर्जनैः // 8 // ___ अर्थ-एकवार दासी उपर करेलो क्रोध तेमने भवांतरमा दुःख आपनार थयो एम जाणीने अन्य जनोए पण कोइनी उपर द्वेप के क्रोध न करवो. // 8 // 123 // PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सुमित्र 25 // GOODOO ED GODDDDDDDDDDD यथापालयतां तीव्र / व्रतं तौ दंपती तथा // मुक्तिसौख्यकरं नित्यं / पालनीयं विवेकिभिः // 9 // अर्थ-जेम ते दंपतीए तीव्र चारित्र पाळ्यु तेम मुक्तिसुखने आपनारुं चारित्र विवेकीजनोए निरतिचारपणे पाळवु.॥९॥ इत्थं श्रीदानधर्मप्रकटतरलसत्सुप्रभावाढ्यमुच्चैः / श्रीमत्पार्श्वप्रसादाच्छरदहनपृषत्केंदुसंवत्सरेऽहं // ज्यायःपुर्यामकार्ष नभसि वरचरित्रं सुमित्रस्य राज्ञः। पंचम्यां शुक्लपक्षे जयतु चिरतरं वाच्यमानं पृथिव्यां॥ ___अर्थ-श्री पार्श्वनाथना प्रसादथी दानधर्मना प्रगट अने श्रेष्ट एवा सुप्रभावथी अंकित थयेलुं श्री सुमित्रनृपर्नु श्रेष्ठ एवं आ चरित्र में सं. 1535 ना वर्षे श्रावण शुक्ल पंचमीए श्री महापुरी नामनी नगरीमां वनाव्यु छे, ते चरित्र पृथ्वीपर चिरकाळ पर्यंत वंचातुं सतुं जयवंतुं वत्त. इति श्रीहर्षकुंजरोपाध्यायविरचिते दानरत्नोपाख्याने सुमित्रचरित्रे गुर्वागमनपूर्वभवप्रकाशनसंयमग्रहणमुक्तिसौख्यप्रापणवर्णनो नाम तृतीयः प्रस्तावः समाप्तः // श्रीरस्तु // // इति श्रीसुमित्रचरित्रं समाप्तम् // o आ सुमित्रचारनना भाषांतरनी चोपडी मुनि श्रीवीरविजयजी महाराज पासेथी मळेल तेथी तेमनो आभार मानू छु. आ रसिक चरित्र भाषांतर सहित छपाय तो वाल-जीवोने उपयोगो थइ पढे तेथी आ ग्रंथ जामनगर निवासी शा. विठलजी हीरालाले स्वपरना श्रेयार्थे पोताना सूर्योदय प्रेसमां छापी पसिद्ध कयु छे. // 124 // PPAC Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ // इति श्रीसुमित्रचरिनं समाप्तम् // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust