________________ सुमित्र चरित्रम् 63 // इतो मासांतरेऽवश्यं / प्रर्णायामवधौ हि ते // मिलित्वा मां मिलिष्यति / समेत्य पदविद्यया // 12 // | अर्थ-ते हकीकतने पांच मास थइ गया छे. हवे एक महीनानी अंदर अवधि पूर्ण थवाथी चारे विद्याओ लइने ते जरुर | पाद-विधाथी अहीं मारी पासे आवी मने मळशे. // 12 // | विमृश्येति च सा दध्यौ / समेष्यंति सुहृद्वराः॥ विद्यया जीवयिष्यति / संजीविन्या नृपांगजं // 13 // ____ अर्थ-आ प्रमाणे पोताना भर्तारे कहेली हकीकतनुं स्मरण करीने तेणीए विचार्यु के ' हवे थोडा वखतमां ते मित्रो आवशे अने संजीविनी विद्यावडे मारा स्वामीने ते जीवाडशे, // 13 // | रक्षणीयं खशीलं च / जीवितव्यमतो मया // यतो जीवन्नरो भद्र-सहस्त्राण्यपि पश्यति // 14 // | अर्थ-तेथी त्यां सुधी मारे मारा शीलनी तेमज जीवितव्यनी रक्षा करवी जोइए. जीवतो मनुष्य हजारो कल्याणोने जोइ शके छे.. | विचार्येति समुत्पाट्य / कुमारस्य वपुर्वरं // आवासाभ्यंतरे मुक्त्वा / तया सार्धं चचाल सा // 15 // ____ अर्थ-आ प्रमाणे विचारी कुमारनु श्रेष्ठ शरीर उपाडी आवासना अंदरना निर्विघ्नकारी भागमां सारी रीते मूकीने, नोकरोने - भलामण करीने ते वेश्यानो साथे चालो. // 15 // . पुरपाश्वे क्रमेणागा-स्थिता सोद्यानकानने // ततो वर्धापयामास / नृपं केनापि कुहिनी // 16 // मा अर्थ-अनुक्रमे तेओ श्री विजयनगर नजीक आव्या अने उपवनमा रह्या. त्यारवाद ते कुहिनीए कोइनो साथे राजाने वधा // 63 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust