________________ सुमित्र चरित्र 113 lala ooooooo OLD IDEAADDDDIDIDIDIE A . अर्थ-" अहो भव्य लोको ! अंतर्मुखी भावनो आश्रय करीने तेमज मनोदृष्टिवडे सारी रीते जोइने असारने तजी दइ सारनो संग्रह करो? // 50 // .... अस्मिन्नसारे संसारे / सारं सर्वशरीरिणां | चिंतारत्नमिवानये / मानुष्यमतिदर्लभं // 51 // .. . अर्थ-आ असार संसारमा सर्व संसारी जीवोने चिंतामणिरत्न जेंवु अमूल्य अनेः सारभूत मनुष्यपणुं प्राप्त थ, अति al दुर्लभ छे. // 51 // ...... तत्रापि सुकुलोत्पत्ति-दीर्घमायुररोगिता. // पुण्येच्छा सुगुरोयोगः / सामग्रीयं सुदुर्लभा // 52 // ..." अर्थ-तेमां. पण सारा कुलमा उत्पत्ति, दीर्घ आयु, निरोगीपणुं, धर्म करवानी इच्छा अने सद्गुरुनो योग-आ बधी सामग्रीनी भप्राप्ति विशेष दुर्लभ छे. 11:52 / / .. . ...... ....... दुर्लभ प्राप्य सामग्री-मिमां श्रीजिनभाषितः॥धर्म एव सदाराध्यो / मनोऽभीष्टफलप्रदः।। 53 / / .. अर्थ-एवी दुर्लभ सामग्री पामीने मनोवांछित फळने आपे तेवो. जिनेश्वरभाषित धर्मज सदा सेववा योग्य छे. // 53 // प्राणिनो भवकांतारे / कृतकर्मवशेरिताः॥ वातप्रम्य इव व्यर्थ / ताम्यंति भ्रांतिसंभृताः॥ 54 // : -: अर्थ-आ.भवरूपी भयंकर अठवीमा पूर्व करेलां कर्मथी प्रेरायेला पाणीओ हरणोनी जेम भ्रांतिवड़े चोतरफ भ्रमण करता सता नव्यर्थ दुःखी थाय छे.. // 54 // सुखं सुखमिति भ्रांता। दुःखदग्धाः पदे पदे / जीवा भ्रमंति संसारे / वातोधूतपलाशवत् // 55 // DDDDDDDDDDDELEDDDDDDD // 113 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradnak Trust