________________ चरित्रम् सुमित्र तेऽवोचन् सत्यमेवेदं / परमेतत्पदं विभो // दृष्टेरगोचरं केन / दृश्यते हेतुना वद // 79 // - अर्थ-कुमारोए कत्यु के-'ते साचुं छे, परंतु हे समर्थ ! दृष्टिने अगोचर एबुं ते चोरन पगलं आ पाणीमां शी रीते देखी // 17 // शकाय? ते कहे. // 79 // गुरुदत्तास्ति में विद्या / यया षण्मासकावधि // द्विपञ्चतुःपदादीनां / सर्वतः पदमीक्ष्यते // 8 // ___अर्थ-पेलो मनुष्य बोल्यो के-'मारी पासे गुरुनी आपेली विद्या छे के जेना प्रभावथी छ महीना पर्यंत द्विपद-चतुष्पदनुं पगलं सर्वत्र जोइ शकाय छे, / / 80 // | श्रुत्वेति विस्मयस्मेर-लोचनास्ते कुमारकाः // अहो चित्रमहो चित्र-मित्यवोचन् परस्परं // 81 // / ___ अर्थ-आ प्रमाणे सांभळीने विस्मित लोचनवाला ते कुमारो " अहो आश्चर्यकारक, अहो आश्चर्यकारक !" एम माहोमांहे बोलवा लाग्या. // 81 // तदारक्षकपत्रोऽव-सुमित्रप्रति सीधरः // कुमार पृच्छयतामेष / दत्ते विद्यां कथंचन // 8 // al... अर्थ-ते अवसरे कोटवाळना पुत्र सीधरे सुमित्र राजपुत्रने कयु के-'हे कुमार ! कया प्रकारे आ विद्या आपे तेम तमे पूछो. |सुमित्रो विनयेनाम-मपृच्छद्दीयते न वा // कस्मैचिद्वल्गुविधेयं / भवद्भिरुपकारिभिः // 8 // | अर्थ-मुमित्रे मित्रना आग्रहथी विनयपूर्वक पूज्यु के-"आप उपकारीथी आ विद्या कोइनें आपी शकाय तेम छे के नहि ?" IDDEOHDDDDDDDDDDDED LORDIHOODOOOD HERODE // 17 // PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust