________________ सुमित्र चरित्रम् 33 // विद्यावाळा विपनी पासे रह्यो. // 8 // शीघ्रमेव समागत्य | मीलनीयं त्वया मम // इति शिक्षा सुहृत्कणे / मंत्रवत्प्रोच्य भूपभूः // 9 // ____ अर्थ-ते वखते तारे शीघ्र आवीने मने मळवू, एम मंत्रनी जेवी शिक्षा राजपुत्रे तेना कानमां कही. // 9 // . | सगद्गदगिरादिश्य / तद्वियोगाक्षमोऽपि सः॥ ततोऽचालीद्विशालाक्षः / सूरसागरसंयुतः॥१०॥ अर्थ-गद्गद वाणीवडे तेने आज्ञा आपीने तेनो वियोग सहन करवाने अशक्त अने विशाळ नेत्रवाळो ते सुमित्रकुमार सूर ने | सागरनी संगाते त्यांथी आगळ चाल्यो. // 10 // | विलोकयन् विचित्राणि / कौतुकानि भुवस्तले // जगामैकत्र सुस्थाने / सन्निवेशसमीपगे // 11 // ___अर्थ-पृथ्वीतळ उपर अनेक प्रकारना विचित्र कौतुकोने जोता जोता तेओ एक सारा स्थानवाळा सन्निवेशनी पासे पहोंच्या. तत्रापश्यद्वयोवृद्धं / काष्टतक्षकमुत्तमं // एकमेव महत्काष्टं / घटतं वासिकाकरं // 12 // ___ अर्थ-त्यां तेमणे एक वयोवृद्ध सुतारने हाथमां बांसलो लइने एक मोटा काष्टने घडतो जोयो. // 12 // दारुणानेन किं कार्य / सूत्रधारशिरोमणे // इतिपृष्ठे समाचष्ट / खगामिस्यंदनं स तं // 13 // ___ अर्थ-तेने कुमारे पूछ्यु के-' हे सूत्रधार शिरोमणि ! आ काष्ट तमे शा माटे घडो छो?' ते बोल्यो के-'आकाशगामी | वाहन बनाववा माटे हुं घटुं छु. // 13 // %3D PP.AC.GunratnasunM.S. Jun Gun Aaradhak Trust