________________ // 106 // सबो पुवकयाणं / कम्माणं पावए फलविवागं // अवराहेसु गुणेसु य / निमित्तमित्तं परो होइ // 11 // BIR ___अर्थ-वळी सर्वे जीवो पूर्वे करेला कर्मोना फळरूप विपाकने पामे छे. लाभमां के हानिमां अन्य तो निमित्तमात्रज थाय छे. तथापि तव वर्षाणा-मेकलक्षे गते नृप.॥ गुरोः केवलिनः पावे / दीक्षावश्यं भविष्यति // 12 // ___अर्थ-हे राजन् ! आजथी एक लाख वर्ष पछी केवळी गुरुनी पासेथी तमने अवश्य दीक्षा प्राप्त थशे, // 12 // तावत श्रावकधमोऽयं / भवताराध्यतां सुखं / / कर्मणां निर्जरानेन / भविष्यति कियत्यपि // 13 // अर्थ-त्यां सुधी हुँ कहुं छुते श्रावकधर्म तमारे सुखपूर्वक आराधबो. एथी तमारा केटलाक कर्मोनी निर्जरा थशे. // 13 // ततः श्रावकधर्म स / श्रीसुमित्रो नरेश्वरः // भार्याप्रियंगुमंजर्या / समं जग्राह हर्षतः॥ 14 // अर्थ-आ प्रमाणे गुरुमहाराजना कहेवाथी सुमित्र राजाए प्रियंगुमंजरी राणी सहित श्रावकधर्म घणा हर्षपूर्वक अंगीकार कर्यो. द्वादशवतरूपो हि / सम्यक्त्वप्रमुखो वरः // श्राद्धधर्मस्तथा साधु-धमों लेभेऽथ पूर्जनः॥१५॥ __ अर्थ-ते वखते सम्यक्त्वयुक्त बार व्रतरूप श्रावकधर्म तेमज साधुधर्म पण नगरना अनेक जनोए स्वीकार्यो. // 15 // नमस्कृत्य गुरुं राजा / प्रविवेश पुरं गृहं // जगाम सपरीवारो। विजहे श्रीगुरुस्ततः // 16 // अर्थ-राजा गुरुमहाराजने नमीने पोताना नगरमां आव्यो एटले गुरुमहाराजे पण त्यांथी अन्यत्र विहार कर्यो. // 16 // कारयामास प्रासादान् / पृथिव्यां स सहस्रशः // उत्तुंगतोरणान् शुभ्रान् / पुण्यपुंजानिव खकान् // 17 // // 106 // P.PAC Gunratnasul M.S Jun Gun Aaradhak Trust