________________ रक्षाविधानकं भद्रे / यावसिद्धनरार्पितं // ममास्य करवालस्य / मुष्टिमध्ये प्रवर्तते // 69 // ____ अर्थ-'हे भद्रे ! ज्यां सुधी सिद्धपुरुषथी अर्पण करायेल रक्षाविधान मारा खड्गनी मुठमा रहेल छे, // 69 // तावदेतत्प्रसादेन / प्रागर्जितवृषादिव // अजेय्योऽस्मि जगन्मध्ये / सुरासुरनरैरपि // 7 // ___ अर्थ-त्यां सुधी तेना चमत्कारथी आ जगतमा सुर, असुर अने मनुष्योथी पूर्वोपार्जित धर्मथी होय तेम हुँ अजेय छु.॥७०॥ यद्येतदैवयोगेन / गच्छेद्यद्वा विनश्यति / / लगंति मेऽरिराजीव-देकदैवापदस्तदा // 71 // ___ अर्थ-जो दैवयोगे ते जाय के विनाश पामे तो मने शत्रुनी श्रेणी तेमज आपत्तिओ पण उपद्रवकारी थाय' // 71 // इत्याकान्यदा तस्याः / कुहिन्याः पुरतो ह्यदः॥ कुमारकथितं सर्व-मूचे मुग्धतया तया // 72 // अर्थ- प्रमाणे हकीकत जाण्या पछी प्रियंगुमंजरीए मुग्धपणे ते बधी वात पेली कुटिनीने कही संभळावी. // 72 / / / ज्ञात्वा जहर्ष तन्मर्म / सा निःकारणवैरिणी // अन्यदा श्रीकुमारस्य / प्रारंभे स्नपनक्रियां // 73 // ____ अर्थ-सुमित्र कुमारनो मर्म जाणीने निष्कारण वैरिणो एवी वैरिणोए अन्यदा कुमारनी स्नानक्रिया पोताने हाथे करवा मांडी. खलितैलाविले शीर्ष-मुखे श्रीकुमरस्य च // खड्गमुष्टिं ज्वलच्चुह्री-वह्रौ चिक्षेप सैधवत् // 74 // अर्थ-खळ अने तेलथी व्याप्त मुख ने मस्तकवाला कुमारने करीने ते दुष्टाए तेना खड्गनी मुठ बळता एवा चुलामां नाखी दीधी. // 74 // .. // 55 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P Ac Gunratnasur MS