________________ र अर्थ- हे भाइ ! में तमारी पासे चार लक्ष द्रव्य परमात्माने साक्षी राखीने मूकेलं छे ते सत्वर आपी दो ? // 59 // श्रुत्वेति वित्थायः। शाखाभ्रष्टकपीशवत् // जज्ञे यतो जयो धर्मा-नाधर्माद्भवति क्वचित // 6 // // 95 // - अर्थ-आ प्रमाणे सांभळीने पेलो धृत शाखाभ्रष्ट थयेला वानर जेवो अने झांखा मुखवाळो थइ गयो. पछी तेबोल्यो के| 'धर्मथीज जय छे, अधर्मथी नथी.' 60 // ततो रुष्टो नृपो राज-पुरुषानादिशत्पुनः // चौरवन्मारणीयोऽसो / विगोप्य नगरेऽखिले // 61 // _____ अर्थ-आ प्रमाणेना धर्तना वचनो सांभळीने राजाए तेना पर कोपायमान थइने राजपुरुषोने हुकम कर्यो के-'आने आखा नगरमां फेरवी तेनी विगोवणा करीने चोरनी जेम मारी नाखो.' / / 61 // पतित्वा पादयोमैत्रि-सुतश्च नृपतेः पुरः // याचयित्वा महाधूतों / जीवन्निष्कासितः पुरात् // 62 // __अर्थ-ते वखते मंत्रीपुत्रे राजाना पगमां पडी याचना करीने ते महाधर्तने जीवतो छोडावी देशपार कराव्यो. // 62 // अहो बुद्धिरहो धर्मः। प्रशस्येति नरेश्वरः // मंत्रिभ्योऽदापयद्रम्म-लक्षमस्मै क्षणेन सः॥ 3 // __ अर्थ-राजाए 'अहो बुद्धि ! अहो बुद्धि ! अहो तेना धर्मनी प्रशस्यता!' एम कहीने मंत्रीओनी पासेथी तेने लाख द्रम्म तर तज अपाव्या. // 63 // I धन्योऽयं येन बुझ्ध्यासौ / मोचितः श्रेष्टिपुंगवः // सद्रव्यः सर्वलोकेभ्यः / शृण्वन्निति समाययो // 64 // DODDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD P.P.Ac Guntanasur MS. Jun Gun Aaradhak Trust