________________ सुमित्र चरित्रम् . . // 108 // ननDDDDDDDDDDDDDOODE तत्र साधर्मिकेभ्योऽसौ / ददौ सदनकंबलान् // दिव्यवस्त्राणि सौवर्ण-सद्रनाभरणानि च // 23 // ____अर्थ-अने ते वखते दरेक साधर्मीओने रनकंबळ, दिव्य वस्त्रो तथा सुवर्णयुक्त रनोना आभरणो आपे छे. // 23 // / समं भूपसहस्रेण / कृत्वा पर्वसु पौषधं // सोपवासं ततोऽन्येयुः / पारणं चाकरोन्मुदा // 24 // '' अर्थ-पर्वदिवसे हजारो राजाओनी साथे उपवासयुक्त पोसह करे छे अने बीजे दिवसे सर्वने हर्षपूर्वक पारणा करावे छे. 24 // न्यायवल्लीवितानेंदु-रन्यायोदधिकुंभजः // मारेनिवारणं राजा / यावदाज्ञामथाकरोत् // 25 // _____ अर्थ-न्यायरूप वल्लीसमूहमां चंद्रसमान अने अन्यायरूप समुद्र माटे अगस्ति ऋषि समान ते राजाए पोताना राज्यमां मारीनुं तेमज मार एवा शब्दनु निवारण करी दीधुं. // 25 // इति पुण्यप्रभावेण | वर्धतेस्म दिने दिने // तस्य प्राज्यं लसद्राज्यं / द्वितीयाचंद्रवद्भुवि // 26 // ___ अर्थ-आ प्रमाणे पुण्यमभावथी ते राजा दिनपरदिन धर्मकार्यमा वृद्धि पामवा लाग्यो अने तेनु राज्य पण द्वितीयाना चंद्रनी जेम पृथ्वीपर वृद्धि पामतुं गयु अर्थात् घणुं वध्यु.॥२६॥... | प्रियंगुमंजरीमुख्यां-तःपुर्यस्तस्य जज्ञिरे // सहस्राणि नव स्फार-रूपलावण्यमंजुलाः // 27 // अर्थ-तथा. तेने प्रियंगुमंजरी विगेरे घणा रुपलावण्यवाळी नव हजार अंतःपुरीओ (राणीओ) थइ, // 27 // सहस्त्रमेकं भूपानां। मंत्रिणां शतपंचकं // वृंदवद्राजहंसानां / भेजे तत्पदपंकजं // 28 // DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD PPAC Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust