________________ सुमित्र चरित्रम् 86 // मंत्रिमित्रकलत्रादि-परीवारवतोऽस्य सः // धर्मलाभं तनोतिस्म / गुरुमुरुसुखप्रदं // 14 // ____ अर्थ-मंत्री, मित्रो अने स्त्रीओ विगेरे परिवारवाला एवा तेने गुरुए उत्कृष्ट सुखने आपनारो 'धर्मलाभ' आप्यो. // 14 // तथा नागरिकैः सर्वै-मयूरैः प्रावृषीव सः॥ आनंदमेदुरैरेत्य / नमश्चक्रे मुनीश्वरः // 15 // ___अर्थ-वरसादना आववाथी जेम मोर हर्षित थाय तेम गुरुमहाराजना आगमनथी अत्यंत आनंदने प्राप्त करीने सर्व नगरजनोए पण त्यां आवी आचार्यदेवने नमस्कार कर्यो. // 15 / / आसीनेषु यथास्थानं / भव्येषु सकलेष्वपि // सभायां चारुशोभायां / निवृत्ते तुमलेऽखिले // 16 // अर्थ-पछी सुंदर शोभावाळी सभामां सर्व भव्यजनो पोतपोताने योग्य स्थाने योग्य रीते बेसी गया बाद अखंड शांति पथराये छते // 16 // | गुरुणा देशनाकारि / मृद्वीमधुरया गिरा // संसारक्लेशनाशाय / शिवाशायै शरीरिणां // 17 // अर्थ-भव्यजीवोने मोक्ष प्राप्त कराववा माटे अने प्राणीमात्रना संसाररुपी दुःख-क्लेशना नाशने माटे कोमळ अने मधुर - वाणीवडे गुरुमहाराजे देशना देवानो प्रारंभ कर्यो केन। 17 // - रत्नं रोर इव प्राप्य / दुर्लभं मानुषं जनुः // ग्राह्य धर्मफलं तस्य / बुद्धिमद्भिर्विवेकिभिः // 18 // म अर्थ- हे भव्यजीवो ! रंक मनुष्य जेम चिंतामणिरत्नने दुर्लभताथी पामे तेम मनुष्यजन्म पामीने बुद्धिमान अने विवेकशाली DHODDDDDDDED DEODODODH // 86 // PR.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust