________________ सुमित्र // 78 // अर्थ-सुमित्रना आवां वचनो सांभळीने ते बंधुओ विचारवा लाग्या के- अहो पुण्य ! अहो भाग्य! अहो आनी उदारता ! सर्व गुणना आधारभूत एवा आणे केबु राज्य प्राप्त कर्यु ?' आ प्रमाणे विस्मयपूर्वक विचारीने तेओ त्यां आनंदथी रह्या पछी तेओए योग्य अवसर जोइने सुमित्रने कछु के-।। 93 // 94 // तव राज्यं तदस्माकं / नात्र काचिद्विचारणा // तथापि पितृसाम्राज्ये / रतिरस्माकमेधते // 95 // .. अर्थ-'हे भ्राता ! तमारु राज्य ते अमारुंज राज्य छे, एमां कांइपण शंका करवा जेबु नथी; परंतु पिताना राज्यने माटे | अमारी आकांक्षा वृद्धि पाम्या करे छे. // 95 // अतः कुरु कृपामेहि। देहि राज्यं तदेव हि // सरित्प्रवाहवत्सैन्यैः / शत्रनुन्मूल्य वृक्षवत // 96 // . अर्थ-तेथी कृपा करीने अमने ते राज्य अपावो अने नदीनो प्रवाह जेम वृक्षोने उखेडी नाखे तेम अमारा शत्रुओने मूळथीन उखेडी नाखो. // 96 // इत्यक्तः श्रीसुमित्रोऽथ / तत्क्षणं रणकौतुकी // सैन्यसंहननाकीं। जयढक्कामवादयत // 97 // अर्थ-पोताना बंधुओनी आ प्रमाणेनी तीव्र इच्छा जाणीने युद्धना कौतुकी एवा सुमित्रे तरतज सैन्यने एकळु करनारी जयढक्का वगडावी. // 97 // तत्कालमिलिताशेष-चतुरंगचमूवृतः / / चचाल पृथिवीपालः। कंपयंस्तदिलातलं // 98 // . अर्थ- पछी तत्काळ एकत्र थयेली चतुरंग सेनावडे परवरेला तेणे पृथ्वीने कंपावता सता त्यांची प्रयाण कयु.॥ 98 // / PP.AC.Gunratnasurt M.S. Jun Gun Aaradhak Trust