________________ सुमित्र चरित्रम् // 70 // रूपस्थध्यानयुक्तेव / योगिनी नृपनंदिनी // यथारूपं प्रपश्यंती। पतिसर्वांगमाविशत // 50 // न अर्थ-रुपस्थ ध्यानमां लीन थयेली योगिनीनी जेवी राजपुत्री यथास्थित पतिनुं रुप जोइने पतिना सर्वांगमा प्रवेश करी गइ. | सुमित्रं सफलं दृष्ट्वा / राकाचंद्रं चकोरवत् // सूरसीधरसुत्राम-मुख्या मुमुदिरेतरां // 51 // ___अर्थ - पूर्णिमाना चंद्रने चकोर जुए तेम मुमिने आ सर्व जो. मूर, सीधर, मुत्राम ने सागर अत्यंत हर्ष पाम्या. // 51 // - सुमित्रोऽपि समालिंग-दुत्थायानंदपूरतः॥ सर्वानपि सखीन् दुःखं / क्षयं निन्ये वियोगजं // 52 // अर्थ-सुमित्रे उभा थइने ते चारे मित्रोने आलिंगन कयु. पांचे मित्रोनुं वियोगजन्य दुःख सर्वथा नाश पाम्यु. // 52 // / विहितस्नानदेवार्चान् / सूरो भोजयतेस्म तान् // अक्षीणविद्ययाहारै-रक्षयैरमृतोपमैः // 53 // अर्थ-पछी सहुए स्नान देवार्चनादि कर्यु एटले मूरे अक्षीण पात्रवाळी विद्यावडे अमृत जेवा आहारथी सर्वने भोजन कराव्यु. | सूरसीधरसुत्राम-सागरान् सुहृदोऽन्यदा // अपृच्छत्कुमरो विद्याः / कथं नीत्वा समागताः॥ 54 // ___ अर्थ-अन्यदा सुमित्रकुमारे सूर, सीधर, सुत्राम अने सागरने पूज्यु के-'तमे विद्या मेळवीने शी रीते आव्या?' // 54 // अथाख्यत्सीधरः सुष्टु / तदा तंप्रति चारुवाक् // श्रीमद्धवलराजेंद्र-कुलांभोजरवे शृणु // 55 // | अर्थ-एटले प्रथम श्रेष्ट एवो सीधर मनोहर वाणीथी बोल्यो के-हे धबलराजेंद्रना कुळरूप कमळमां रविसमान सांभळो? 55| मासद्वयमहं तत्र / भक्तिभिस्तमरंजयं // संतुष्टः स ददौ विद्यां / पदज्ञामखिलामपि // 56 // / / 70 // PP:AC Gunratnasuri M.S, Jun Gun Aaradhak Trust