________________ सुमित्र चरित्रम् // 69 // नियुक्तेन तया ताव-सागरेण खविद्यया // अचालि सारथःशून्य-पुरंप्रति नभोऽध्वना // 44 // - अर्थ-बाद राजकुमारीए संज्ञा करवाथी सागरे आकाशगामिनी विद्यावडे करीने रथने आकाशमार्गे चलाव्यो. // 44 // | निलोंठिताऽपवित्रेव / सा वेश्या रोषतो रथात् // पपात च निराधारा / धारावत्प्रस्तरोपरि // 45 // . अर्थ-पछी दुष्ट अपवित्र अने निराधार एवी ते वेश्याने रोपथी रथमांथी पाडी दीधी, तेणी पण जळधारानी पेठे पत्थरपर पडी. भग्नान्यंगानि सर्वाणि / महत्कष्टमवाप च // अत्युग्रपुण्यपापाना-मिहेव फलमाप्यते // 46 // ___अर्थ-तेना सर्व अंगो भांगी गया अने घणुं दुःख पामी. कारण के- अत्युग्र पुण्य-पापर्नु फळ अहींज प्राप्त थाय छे.' // 46 // राजादिसर्वलोकानां / दृष्टयगोचरतामगुः // सर्वेऽपि तत्क्षणेनापुः / पुरं श्रीकनकाभिध // 47 // . अर्थ-ए रथ अनुक्रमे राजा विगेरेनी दृष्टिथी अदृश्य थयो अने सर्व श्रीकनक नामना नगरे पहोंच्या. // 47 // तेषां प्रियंगुमंजर्या / गंभीरावासमध्यगं // अदर्शि श्रीसुमित्रस्य / वपुः सजलनेत्रया // 48 // ... / अर्थ-त्यां तेमने प्रियंगुमंजरीए नेत्रमाथी अश्रुधारा बहेते तेमना मित्रनुं शरीर आवासना मध्यमां गुप्त स्थाने राख्यु हतुं ते बताव्युं // 48 // . . . . . . | सुत्रामेण महाविद्या-संजीविन्या स जीवितः॥ कुमारस्तु जजागार / सुप्तोत्थित-इव क्षणात् // 49 // ....अर्थ-सुकामे संजीविनी महाविद्यावडे तेने सचेतन कर्यो, एटले कुमार पण क्षणमात्रमा सुइने उठ्यो होय तेम जाग्रत थयो. // DOOOOOOOODogaबालाlam | | // 69 // PP.Ac GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust