________________ चरित्रम् सुमित्र नृपारक्षसुतौ शस्त्र-धारिणौ मिलितौ रहः // उक्त्वा मिथो रहस्यं तो। मंत्रिश्रेष्टिसुतावपि // 79 // ____ अर्थ-पछी राजा अने कोटवाळना शस्त्रधारी पुत्रो एकांतमा मळ्या अने पोतपोतानु रहस्य एकबीजाने कब्यु. मंत्री अने श्रेष्टीना पुत्रोए पण एज रीते एकवीजाने कह्यु. / / 79 // ... ततो नृपतलारक्ष-पुत्राभ्यां हि परस्परं // मंत्रितं च किमावाभ्या-मेतयोर्वणिजोरिह // 8 // .. ____ अर्थ-हवे राजा अने कोटवाळना पुत्रोए परस्पर विचार कर्यो के-'आपणे आ वणिकपुत्रोतुं काम छे? // 8 // नवभाग्यैर्लब्धयोः स्वर्ण-पुंसोर्भागः प्रदीयते // मार्यतेऽम् गतश्चारु / नो चेद्भागं हरिष्यतः॥ 81 // | अर्थ-आपणा भाग्यथी मळेला सुवर्णपुरुषमाथी तेमने भाग शा माटे देवो जोइए? माटे तेने मारी नाखीए; नहींतर तो भाग न देवो पडशे.' // 81 // | विस्मृश्येति पुरो ग्रामे-शनार्थ प्रविसृज्य तौ // वृक्षमूले न्यलीयेतां / तद्वधायासियुक्करौ // 8 // _अर्थ-आ प्रमाणे विचारीने ते बन्नेने गाममा आहारादि लेवा मोकल्या अने तेओ आवे त्यारे तेने मारी नाखवा सारं तेओ हाथमां तलवार राखीने वृक्षना मूळमां संताइ रह्या. // 82 // | तावपि प्रोचतुर्मागें / गच्छंतो भोज्यहेतवे // अन्योन्यमिति सौवर्ण-पुंसोः प्रातिरभृद्धितौ // 83 // ' अर्थ-पेला बे जणाओ पण भोजन माटे मार्गमा अन्योन्य वातो करवा लाग्या के-'आपणा पुण्यथी आपण बनेने सुवर्ण P.P.Ar Gunnanasur M.S Jun Gun Aaradhak Trust