________________ त्रम IAL: अर्थ-ते वखते प्रत्यक्ष अंगधारी थइने आवेला कामदेव जेवा ते कुमारने जोइने हर्षवडे उल्लसित मनवाळी ते कन्या सुमित्र चितववा लागी के // 53 // | अहो सुकोमलो पादौ / कंकेल्लिपल्लवारुणौ // अहो कांतिभरोऽप्यस्य / नखदर्पणजः स्फुरन् // 54 // " अर्थ-अहो ! ककेल्लि वृक्षना पल्लव जेवा रक्त अने सुकोमळ आना चरणो छे. 'अहो ! आनो कांतिनो समूह नखरूपी दर्पणमां स्फुरी रह्यो छे. // 54 // अहो हस्तिकराकार-मूरुयुग्मं मनोरमं // अहो कटीतटाभोगो / नाभेश्चाहो गभीरता // 55 // ... अर्थ-अहो ! हाथीनी सुंढ जेवा मनोरम आना उरुयुग्म छे. अहो आनो कटीतटनो आभोग सुंदर छे. एनी नाभीनी गंभीरता प्रशंसनीय छे. // 55 // मष्टिग्राह्यमहो मध्यं / त्रिवलीमंडितं मृद // वक्षःस्थलेऽस्य विस्तीर्णे / कापि धन्या शयिष्यते // 56 / / अर्थ-एनो मध्य भाग (कटी) मुष्टिप्राय छे. त्रिवलीथी मंडित सुकोमळ उदर छे. विस्तिर्ण वक्षस्थळ छे के जेनी उपर कोई | धन्य स्त्री शयन करी शके तेम छे. // 56 // . . . . . दीर्घाविमौ भुंजादंडौ / गले कस्या लगिष्यतः॥ रेखाः शंखसमे तिस्रो / राजते कंठकंदले // 57 // / HI अर्थ-आना दीर्घ एवा भुजादेड छे ते कोना गळे लागशे ? शंखनी जेवा कंठरूप कंदळ उपर त्रण रेखाओ शोभी रही छे. न विद्रुमच्छदसच्छायः / स्वच्छो भात्यधरोऽप्ययं // जाने मां हृदयाद् दृष्टुं / नूनमभ्युत्थितो बहिः / 58|| 32 // P.PAC Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhak Trust