________________ सुमित्र ||स तावत्खड्गमुत्पाट्य / विद्युइंडसहोदरं // कोणकान्निःससारेव / कंदरोदरतो हरिः // 2 // ___ अर्थ-तेज वखते विद्युतना दंड. जेवु खड्ग उंचु करीने सिंह जेम गुफामांथी बहार नीकळे तेम कुमार खूणामांथी बहार नीकल्यो. // 2 // 41 // द्वारस्थस्तमभाषिष्ट / रे पापिष्ट मदग्रतः॥ व यास्यसि नृपादीनां / हृतं चिंतामणिसमं // 3 // . ___ अर्थ-पछी द्वार पासे उभो रहीने ते बोल्यो के-'रे पापीष्ट ! हवे तुं मारी पासेथी क्या जवानो छ ? तें राजा विगेरेना चिंतामणि रत्न समान / / 3 / / जीवितं यत्त्वया तस्य / कल्मषस्यासिनामुना // समुत्तिष्ट समुत्तिष्ट / प्रायश्चित्तं ददामि ते // 4 // __अर्थ-जीवित ही छे ते पापर्नु हु आ तलवारवडे तने प्रायश्चित्त करावं छु; माटे उभो था, उभो था.'॥४॥ निशाचरोऽपि निःकपं / जापं कृत्वा घटीद्वयं // करेण कत्रिकां धृत्वा / यमजिह्वोपमामगात् // 5 // ___ अर्थ-पेलो राक्षस पण वे घडो सुधी निष्कंपपणे जाप करीने पछी यमनी जिहा जेवी की हाथमां लइने // 5 // समुत्थायोर्ध्वकेशस्तु / कुमाराभिमुखं ततः॥ कदलीकांडवत्तस्य / शिरश्चिच्छेद राजसूः॥६॥ . ___अर्थ-उंचा केशवाळो ते कुमारनी सामे थयो. तेवामां राजपुत्रे केळना कांडनी जेम तेनुं मस्तक छेदी नाख्यु.॥६॥ एवं जयं जगदनय॑मवाप चंच-द्रक्षाविधिप्रबलपुण्यचयप्रभावात् // पाणिग्रहोपकरणैः किल सानुरागं / // 41 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust