________________ ममित्र चरित्रम् // 58 // इत्थं स्नेहसुरायोगा-दिवानेकप्रकारतः // विलप्येति महादुःख-पूरिता सा मुमूर्छ च // 85 // अर्थ-आ प्रमाणे स्नेहरुप मदिराना योगथी होय तेम अनेक प्रकारना विलाप करती अने महादुःखवडे प्रपूरित थयेली ते पण मूर्छा पामी. // 85 // | तावत्तया क्षणादेव | बहुशीतोपचारतः // कृत्वा सचेतनां राज-कन्यामृचे स्फुरद्विरा // 86 // अर्थ-पछी घणा शीतोपचारवडे थोडा वखतमां राजकन्याने सचेतन करोने स्फुरायमान वाणीवडे पेली वेश्या बोली के-1८६। मूर्ख न जानासि / मत्स्वरूपं यदीदृशं // त्वदर्थ यन्मया सिद्ध-सीकोत्तर्या कृतं शृणु // 87 // - अर्थ-'अरे मूर्ती ! तुं मारा आ स्वरुपने जाणती नथी के में सिद्धसीकोत्तरीए तारा माटेज आ वधो प्रपंच रच्यो छे, तेनुं कारण सांभळ ? / / 87 // शतयोजनदूरस्थ-मितोऽस्ति विजयं पुरं // अयत्नादर्शतां याति / यद्वप्रः सुरयोषितां // 88 // ___अर्थ-अहींथी सो योजन दूर बिजयपुर नामर्नु नगर. छे, जेनो गढ देवांगनाओने रत्नविनाना आदर्श (काच) जेवो छे. // 88 // कल्पवृक्षसमैत-नरैयदेवमंदिरः॥ अप्सरस्तल्ययोषिद्भिः। समनोभिर्मनोरमं // 89 // ___ अर्थ-ते नगर कल्पवृक्ष जेबा दातारोवडे, अनेक देवमंदिरोबडे, अप्सरा जेबी स्वीओवढे अने देव जेवा मनुष्योवढे मनोरम छे. अमूल्यैः स्वच्छमधुरै-मणीभिः स्फुरदंशुभिः // सारं बिडौजसा स्वस्याः / पुरो न्यासीकृतं किल // 9 // // 58 // P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust