________________ सुमित्र | बेसीने अमृत जेवी मधुर वाणीवडे तेमणे अनेक भव्यजीवोने बोध को अने प्रांते भवोपग्राही चार अघाति कर्मोनो क्षय करीने न ते बने निर्वाणपदने पाम्या. // 2 // 3 // // 123 // श्रीसुमित्रप्रियंग्वादि-मंजर्योश्चरितं वरं। श्रुत्वेति दानधर्मेऽस्मिन् / यत्नः कार्यों मनीषिभिः // 4 // / अर्थ-आ सुमित्र राजा अने प्रियंगुमंजरी विगेरेनु चरित्र सांभळीने बुद्धिमान मनुष्योए दानधर्मने विषे आदर करवो. / 4 / यथा तयोर्द्वयोरेक-वारं दानप्रभावतः // स्थाने स्थानेऽभवजानु-दनो व्यसनसागरः॥५॥ तथाधारो भवेदान–मन्येषामपि संकटे // दानेऽभ्यासः सदैवातः / कर्तव्यो भव्यजंतुभिः // 6 // ____ अर्थ-तेओने एकवारनाज मुनिदानना प्रभावथी स्थाने स्थाने संकटनो समुद्र ते खाबोचीया जेवो थइ गयो, तेम अन्य प्राणिa ओने पण संकटमां आधारभूत एवा आ दानधर्मनो भव्यजनोए सदा अभ्यास करवो इष्ट छे. // 5 // 6 // प्रियंगुमंजरी राज्ञी। यथा शीलमपालयत // संकटेऽपि तथान्याभिः। पालनीयं तदुज्ज्वलं // 7 // . ____ अर्थ-प्रियंगुमंजरीए. जेम कष्टमां पण शील पाळ्यु तेम अन्य स्त्रीओए कष्टमां पण उज्वळ एवं शील पाळg. // 7 // a यथा दास्युपरि क्रोधः / कृतस्ताभ्यां भवांतरे // दुःखहेतुस्तथा नैव / कर्तव्यस्त्वपरैर्जनैः // 8 // ___ अर्थ-एकवार दासी उपर करेलो क्रोध तेमने भवांतरमा दुःख आपनार थयो एम जाणीने अन्य जनोए पण कोइनी उपर द्वेप के क्रोध न करवो. // 8 // 123 // PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust