________________ सुमित्र प्रसादमकरदेना-पूरितं सुविकस्वरं // भेजे भ्रमरवन्नित्यं / श्रीगुरुक्रमपंकजं // 3 // अर्थ-कृपारुपी सुगंधवडे प्रपूरित अने अत्यंत विकस्वर एवा गुरुमहाराजना चरणकमळने हुँ भ्रमरनी जेम सेQ छ // 3 // a नौमि जैनमुखांभोज-राजहंसी सरस्वतीं // यस्याः प्रसादतो रम्यं / कवित्वं कुरुते कविः॥४॥ अर्थ-जिनेश्वरना मुखरुप कमळमां राजहंसी जेवी सरस्वती के जेना प्रसादथी कविओ सारी कविताने करे छे तेने पण हुं नमुं छु. मंदामंदी भिया प्रीत्या / कुटिलप्रगुणाकृती // समं सौवकृते वंदे / तावसजनसजनौ // 5 // अर्थ-मंद अने अमंद एवा अर्थात् मुर्ख अने सुज्ञ एवा तेमज कुटिल अने सरल प्रकृतिवाळा दुर्जन अने सज्जनोने भयथी अने प्रीतिथी स्वस्थता (शांति)ने माटे समानभावे हुं प्रणाम करूं छु.॥५॥ एवं कृतनमस्कारो | धर्माख्यानमयं कियत् // भव्यजंतुप्रबोधाय / सारं शास्त्रं तनोम्यहं // 6 // P अर्थ-आ प्रमाणे नमस्कार करीने हुं भव्य प्राणीओना बोधने (ज्ञानने) माटे आ धर्माख्यानमय उत्तम चरित्रने रचवा इच्छु छु. (रचुंछु) धर्मः शर्मलतोल्लासी। धर्मः संपद्रुमांबुदः॥ धर्मः श्रेयो धराधारो / धर्मः स्वर्गापवर्गदः॥७॥ ___ अर्थ-धर्म सुखरुपी लताओने उल्लसायमान करनार छे, धर्म संपत्तिरुपी वृक्षोने मेघसमान छे, धर्म श्रेयकारी छे, धरा (पृथ्वी) नो आधारभूत छे अने धर्म स्वर्ग तेमज मोक्षने आपवावाळो छे // 7 // अतो धमोऽनिशं सेव्यः / प्राणिभिः सौख्यदः सदा // दानशीलतपोभाव-भेदात्त्वेष चतुर्विधः // 8 // P.P.Ar Gunnasur MS clamati