________________ सुमित्र // 67 // EDDDDDDEEDDDDDDDDDDDED यं विनातःपरं प्राणान् / धर्तुं नैव क्षमा वयं // तद्वार्ता तद्वदस्माकं / प्राणरक्षणहेतवे // 33 // चरित्रम् / अर्थ-कारण के हवे पछी अमे तेना विना पाण धारण करवाने पण समर्थ नथी; तेथी तेनी वार्ता अमारा प्राणरक्षणने माटे तमे कहेवाने योग्य छो.' // 33 // अहो मबल्लभो धन्यो / यस्यैते सुहृदो वराः // अहं धन्यतमा यस्या। भर्ता स समजायत // 34 // ___अर्थ-आ प्रमाणे पोताना भरिना मित्रोना वचनो सांभळीने प्रियंगुमंजरी विचारवा लागी के-'मारा वल्लभने धन्य छे के जेना आवा मित्रो छे, बळी हु अति धन्य छु के जेने एवो पति मळ्यो छे.' // 34 // |ध्यात्वेति हृदि सावोच-त्सर्वं वृत्तं यथाभवत् // श्रुत्वोचुस्तेऽपि तच्छीधं / दर्शयास्माकमुत्तमे / / 35 / / / अर्थ-आ प्रमाणे विचारीने पछी तेणीए जेवं बन्यु हतुं तेवु सर्व वृत्तांत यथार्थ कही बताव्यु. एटले तेओ बोल्या के-'हे उत्तमे ! ते अमारा मित्रना शरीरने तमे अमने शीघ्र बतावो.' // 35 // तयोक्तं तर्हि कुर्वतु / व्योमगामि रथं ततः॥ महत्काष्ट समानाय्य / सागरस्तमचीकरत् // 36 // ___अर्थ- ते बोलो के-'तो तमे आकाशगामी रथ बनावो के जेथी आपणे शीघ्र त्यां पहोंची शकोए.' सागरे तरतज एक मोटुंब 9 काष्ट मगाबीने आकाशगामी रथ शीघ्र तैयार कर्यो. // 36 // इतश्च मासे संपूणे / स राजा मकरध्वजः॥ साडंबरः समायासी-त्तामानेतुं समुत्सुकः / / 37 // / / 67 // अर्थ-हवे अहीं महीनो पूरो थयो एटले मकरध्वज राजा पियंगुमंजरीने लइ जवा माटे उत्सुक थइ आडंबर सहित त्यां आव्यो. | // P.P.Ac Gunrainasuri MS. Jun Gum Aaradhak Trust