________________ सुमित्र ORIODDEDDEDEED आपनी महेरवानीथी एक मास सुधी भिक्षुकोने दान आपवा माटे हुं अहींज रहीश, त्यारबाद योग्य एव॒ तमारुं कार्य हुकरीश.' // 21 // 22 // श्रुत्वेति नृपतिः स्नेहा-सत्रागारमकारयत् ॥रागिणः किं न कुर्वति / स्त्रीणामथे विशेषतः // 23 // __ अर्थ-आ प्रमाणे सांभळीने राजाए त्यां दानशाळा करावी आपी. प्रेमीजनो स्त्रीओने राजी करवा माटे शुं शुं करता नथी?॥२३॥ सापि तत्र स्थिता दत्ते / दीनेभ्यो दानमीप्सितं // यतो भवंति सर्वत्रा-वसरज्ञा विवेकिनः // 24 // _ अर्थ-ते पण त्यां रही सती दीन-अनाथ जनोने इच्छित दान आपवा लागी, कारण के विवेकवाळा पुरुषो हमेशां अवसरोचित जाणवावाळाज होय छे. // 24 // त्रिंशद्वर्षप्रमाणोऽभू-समासः पृथिवीपतेः / / दानपीयूषमनाया-स्तस्यास्त्रिंशत्क्षणोपमः // 25 // अर्थ-आ एक महिनो राजाने त्रीश वर्ष जेवडो थइ पडयो; ज्यारे दानरुपी अमृतमा मग्न थयेली तेमां रसयुक्त बनेली तेणीने | ते त्रीश क्षण जेटलो लाग्यो. // 25 // मासांतेऽत्र समायाता-श्चत्वारो भर्तृबांधवाः // तयोपलक्षिता भर्तु-वाक्यवृंदानुसारतः // 26 // a. . अर्थ-महिनो पूर्ण यये सते तेना पतिना चारे भाइबंधो त्यां आवी चड्या. तेओने पतिए कहेली हकीकतथी ओळखी | काढवामां आव्या. // 26 // भोजयित्वा तया भक्त्या / पृष्टा रहसि ते जगुः // वयं राजकुमारस्य / सुमित्रस्य सुहृत्तमाः॥ 27 // DOOGS DOG DOODOODDDDDDD / / 65 // PP. Ac Guntatnasur M.S Jun Gun Aaradhak Trust