________________ सुमित्र a चरित्रम् 117 // IDDDDDDDDED | अर्थ-सोम विगेरे तेना मित्रो ते वखते त्यां आध्या. तआ ते बनेए मासखमणवाळा मुनिने करावेला पारणानी अनुमोदना न करवा लाग्या. // 71 // धन्यंमन्यास्ततस्ते च / क्रमेणायुः प्रपूर्य च // षडप्येते शुभध्यानाः / कालधर्म समासदन // 72 // ___अर्थ-पोताना आत्माने धन्य माननार ते छए मनुष्यों आयु पूर्ण करीने शुभध्यानथी काळधर्म पाम्या. // 72 // त्रिदशीभूय सोधर्म-देवलोके सुखास्पदे // भुक्त्वा सोख्यानि ते स / प्रपाल्यायुश्च्युतास्ततः // 73 // __ अर्थ-अने सौधर्भ देवलोकमां देव थया. ए अत्यंत मुखवाळा स्थानमा तेओ अनेक प्रकारना सुखो भोगवीने आयु पूर्ण न थये चव्या. // 73 // स जीवः क्षेमसारस्य / भवान् जज्ञे नरेश्वर // प्रियंगुमंजरी राज्ञी। तस्याः क्षेमश्रियाः पुनः॥ 74 // * अर्थ-तेमां क्षेमसारनो जीव हे राजन् ! तमे सुमित्र थया, क्षेमश्रीनो जीव मिथंगुमंजरी नामनी तमारी राणी थइ. / / 74 / / सोममुख्याः क्रमेणैते / चत्वारोऽपि सुहृत्तमाः॥ सूराद्याः संबभूवुस्ते / प्राच्यसंबंधयोगतः // 75 // ___ अर्थ सोम प्रमुख चार मित्रो आ भवमां पण तमारा मूर विगेरे चार मित्रो पूर्वभवना संबंधने लइने थया. // 75 // - दानपुण्यानुभावेन | संपदो' जज्ञिरेऽखिलाः || युष्माकमीशा राजन् / किं न स्याद्धर्मसेवनात् // 76 // . अर्थ-दान-पुण्यना प्रभावे-तमने आ सर्व संपत्तिनी प्राप्ति थइ है राजन् ! धर्मना सेवनथी शुं शुं प्राप्त थतुं नथी ? // 76 // |||-117 // PP Ac Gunratrasur MS Jun Gun Aaradhak Trust